शब्दवृत्ति

By: Oct 12th, 2017 12:05 am

शुद्ध दीपावली

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

शुद्ध दिवाली हो चली, दिल्ली की इस साल,

न्यायालय सर्वोच्च ने, अद्भुत किया कमाल।

अद्भुत किया कमाल, चैन की सांसें लेंगे,

बिना दम घुटे, खील, मिठाई सब बांटेंगे।

आतिश आग लगाएगी, क्यों बिठाया गोद?

पंगे लेना छोड़ दो, कब्र रहे क्यों खोद?

कब्र रहे क्यों खोद, भुनोगे बैंगन जैसे,

तुम ही होंगे नहीं, करोगे क्या फिर पैसे।

आगजनी होती सदा, होती भागमभाग,

घर, दुकान, गौ जल-भुनी, पशुशाला है खाक।

पशु-पक्षी भी घुट रहे, त्याग रहे संसार,

ड्रैगन फूला जा रहा, फलता है व्यापार।

सांस चाहिए जहर, डाक्टर शर्मा बोल,

ये बम चिंबलहार में, रहे अधिक विष घोल।

वायु प्रदूषण दूर हो, दिल्ली ले अब सांस,

इंद्रप्रस्थ हो हरित अब, ध्वनि घटने की आस।

नकली मावा बिक रहा, नकली बिकता दूध,

ये नकली इनसान हैं, कोर्ट वसूले सूद।

हाथ जोड़ सत्येंद्र अब, करता है अनुरोध,

आतिशबाजी का करें, घर-घर सभी विरोध।


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