सिर्फ बाहरी नहीं, भीतर के दीप भी जलें

By: Oct 20th, 2017 12:03 am

ललित गर्ग

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, भीतर के भी जलने चाहिएं। दीया कहीं भी जले, उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं जीवन की सार्थक दिशाएं खोज लेती हैं…

दीपावली रोशनी का पर्व है। दीया प्रकाश का प्रतीक है और तमस को दूर करता है। यही दीया हमारे जीवन में रोशनी के अलावा हमारे लिए जीवन की सीख है और जीवन निर्वाह का साधन भी। दीया भले मिट्टी का हो, मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है और लक्ष्य तक पहुंचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है, जब भीतर का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज उपलब्ध प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश की रही है। दिवाली पर्व एक और पर्याय अनेक हैं। इस पर्व का प्रत्येक भारतीय उल्लास एवं उमंग से स्वागत करता है। दीपावली पर्व हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की गौरव गाथा है। भगवान महावीर का निर्वाण दिवस-दीपावली, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का आसुरी शक्तियों पर विजय के पश्चात अयोध्या आगमन का ज्योति दिवस-दीपावली, तंत्रोपासना एवं शक्ति की आराधक मां काली की उपासना का पर्व-दीपावली, धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना का पर्व-दीपावली, ऋद्धि-सिद्धि, श्री और समृद्धि का पर्व-दीपावली, आनंदोत्सव का प्रतीक वात्सायन का शृंगारोत्सव-दीपावली, ज्योति से ज्योति जलाने का पर्व-दीपावली। प्रत्येक भारतीय की रग-रग में यह पर्व रच-बस गया है।

जिन महापुरुषों ने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दिवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष्य में दिवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया। यह बात सच है कि मनुष्य का रुझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा, न कभी मांगा। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल, इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन सा दीप है, जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करे, सार्थक नहीं हुआ करती। आचरण से पहले ज्ञान को, चरित्र पालन से पूर्व समन्वयको आवश्यक माना है। ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया-ज्ञान प्रकाशकर है। अंधकार हमारे अज्ञान, दुराचरण, दुष्ट प्रवृत्तियों, आलस्य, विनाश और हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। जब मनुष्य के भीतर असद प्रवृत्ति का जन्म होता है, तब चारों ओर वातावरण में कालिमा व्याप्त हो जाती है। अंधकार ही अंधकार नजर आने लगता है। अंधकार में भटके मानव का क्रंदन सुनकर करुणा की देवी का हृदय पिघल जाता है। ऐसे समय में मनुष्य को सद्मार्ग दिखा सके, ऐसा प्रकाश स्तंभ चाहिए। इन स्थितियों में हर मानव का यही स्वर होता है कि प्रभु!

हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। बुराइयों से अच्छाइयों की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। इस प्रकार हम प्रकाश के प्रति, सदाचार के प्रति, अमरत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए आदर्श जीवन जीने का संकल्प करते हैं। प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का, ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतर्चेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदास ने कहा था-बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म साक्षात्कार का पर्व है। यह हमारे आभामंडल को विशुद्ध और पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश देने का पर्व है। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है, फिर भी यह तो मानना ही होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है। हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है, वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है।

ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है, तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूर्च्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिएं। दीया कहीं भी जले, उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं जीवन की सार्थक दिशाएं खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं। दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है।


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