निबंध प्रतियोगिता

By: Nov 15th, 2017 12:05 am

निम्न तीन निबंधों को श्रेष्ठ चुना गया हमारा विषय था

आगामी विस चुनावों का क्या हो एजेंडा

प्रथम

आशीष बहल चुवाड़ी, चंबा

हिमाचल प्रदेश की गिनती देश के सम्पन्न राज्यों में की जाती है। गांव में वसे इस राज्य में जीवन स्तर अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक बेहतर है। कारण है यहां के मेहनतकश नागरिक। हिमाचल प्रदेश की कुछ विशेष जरूरतें भी हैं क्योंकि यह एक पहाड़ी और ग्रामीण राज्य है और पहाड़ में जिंदगी जटिल होती है इसलिए हिमाचल में हुए विधानसभा चुनावों में अपनी कुछ विशेष जरूरतों की तरफ  सरकार बनने के बाद कुछ मुख्य मुद्दों की ओर ध्यान देना आवश्यक है। मेरा मानना है कि हिमाचल में मुख्यतः पर्यटन, सड़क, स्वास्थ्य और रोजगार पर अधिक जोर देना चाहिए और इसी एजेंडे पर सभी राजनीतिक दलों को काम करना चाहिए। ये सर्व विदित है कि हिमाचल में पर्यटन की आसीम सम्भावनाएं हैं। कुदरत ने हिमाचल को बेपनाह खूबसूरती बख्शी है। यहां के पहाड़, नदियां और झीलें किसी का भी मन मोह लेती हैं। हिमाचल में पर्यटन बढ़ने से जो सबसे बड़ा फायदा होगा, वह है युवाओं को रोजगार मिलना। यहां का युवा व्यापार, टूरिस्ट गाइड और ट्रैवेल एजेंसी खोल कर अपना रोजगार अर्जित कर सकता है इसलिए जो भी सरकार बने उसे हिमाचल के पर्यटन को राज्य के विकास से जोड़ने का कार्य करना चाहिए। हिमाचल में सड़क मार्ग का खस्ता हाल भी पर्यटन के पहिये पर रोक लगाता है। इसलिए सड़क मार्ग को दुरुस्त करना भी आगामी सरकार का मुख्य एजेंडा हो। हिमाचल में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी बहुत अभाव देखने को मिलता है। हिमाचल में लगभग 70 लाख की आबादी को मात्र दो ही बड़े अस्पताल टांडा में और शिमला में उपलब्ध हैं, जबकि बिलासपुर में एम्स का इंतजार हो रहा है। यही कारण है कि यहां पर मरीजों को छोटे मोटे इलाज के लिए भी प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। इसलिए यहां के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, इस को भी मुख्य एजेंडे में लाना अति आवश्यक है। हिमाचल में बेरोजगारी भी अब मुख्य समस्या बनती जा रही है क्योंकि हिमाचल के युवा पढ़ लिख कर भी रोजगार पाने में असफल हो रहा है। यहां शिक्षा का स्तर बेहतर है परंतु उस योग्यता के आधार पर उसे रोजगार नही मिल पा रहा और इसीलिए युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन कर रहा है। जिससे उसकी पढ़ाई और योग्यता का लाभ हिमाचल को नही मिलता। आने वाली सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना होगा कि हिमाचल में रोजगार के अवसर मुहैया करवाए जाएं।

द्वितीय

शिवानी कुमारी घुमारवीं, बिलासपुर

हिमाचल प्रदेश एक विकासशील, समृद्ध, शांत राज्य है। आजादी के बाद से ही हिमाचल तेजी से उन्नति कर रहा है। सरकारें चाहे जिस भी राजनीतिक पार्टी से रही हों, हिमाचल विकास की ओर अग्रसर है। हाल ही में  विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, तो प्रश्न उठना भी स्वभाविक है कि प्रदेश में आने वाली सरकार का क्या एजेंडा होगा। हर राजनीतिक पार्टी ‘विकास’ को एक प्रमुख एजेंडा बनाकर चुनाव में उतरी थी। आचार संहिता लागू होने से पहले बड़ी-बड़ी योजनाओं का शिलान्यास कर दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी भी बिलासपुर जिला में बनने वाले एम्स, ऊना में ट्रिपल आईटी व एक स्टील प्लाट जो कंदरोड़ी में बनेगा, उसका शिलान्यास करके गए । परंतु क्या इस बार का चुनाव सिर्फ विकास को एजेंडा बनाकर लड़ा गया। यह कहना सही नहीं है। बीते कुछ वर्षों से प्रदेश में ‘कानून-व्यवस्था’ पूरी तरह से बिगड़ गई है। हिमाचल एक शांतिप्रिय राज्य है, परंतु प्रदेश में इन दिनों कानून-व्यवस्था जो कि किसी भी राज्य की शांति का मूल आधार होती है, उसका स्तर घटता जा रहा है। प्रदेश में बिटिया रेप-मर्डर कांड ने समूचे प्रदेश को सोचने पर मजबूर किया है कि क्या ये वही देवभूमि है, जहां पर देवियों की पूजा की जाती है। राज्य में चोरी-डकैती, माफियाराज का बोलबाला है। कानून के रखवाले स्वयं सीबीआई द्वारा शिकंजे में फंस चुके हैं, जोकि प्रदेश में कानून व्यवस्था के स्तर को दर्शाता है।इस बार का चुनाव कानून व्यवस्था, सुरक्षा, रोजगार आदि को एजेंडा बनाकर लड़ा जाना चाहिए था। प्रदेश में नए-नए कालेज, कौशल विकास केंद्र खोले जा रहे हैं, जिससे युवाओं के कौशल में वृद्धि हो रही है, परंतु रोजगार को बढ़ाने में अभी बहुत कुछ करना बाकी है। आने वाली सरकार को नई नौकरियां लानी होंगी, जिससे प्रदेश में हो रही बेरोजगारी समस्या से निपटा जा सके। हिमाचल एक कृषि प्रधान राज्य भी है। प्रदेश के 71 फीसदी जनसंख्या को कृषि से रोजगार मिलता है। प्रदेश में बागबानों में गहरा असंतोष है, जो कि राज्य के विकास की दृष्टि से भी चिंता का विषय है। पर्यटन के क्षेत्र में भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है। इसलिए आने वाली सरकार को चाहिए कि वह पर्यटन स्थलों को भी महत्त्व दे। पर्यटकों की सुख-सुविधाओं व सुरक्षा का ध्यान रखे। राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि वे चुनावों के दौरान केवल वादों का घोषणापत्र तैयार न करें, बल्कि प्रदेश में रोजगार, सुरक्षा व शांति का माहौल बनाने का भी जिम्मा उठाएं, क्योंकि अब एक शांतिप्रिय राज्य की कानून व्यवस्था में सेंध लग गई है। सरकार चाहे जिस पार्टी की हो अब सरकार को अपने नागरिकों की सुरक्षा विशेषकर महिला वर्ग की सुरक्षा सुनिश्चित करवानी होगी, रोजगार, कृषि में बढ़ोतरी करनी होगी, तभी हिमाचल प्रदेश सचमुच में विकास करेगा।

तृतीय

अल्का नेगी संतोष कॉटेज, शिमला

कहने को तो हमें स्वतंत्र हुए 70 वर्ष बीत गए, लेकिन आज भी हम अपनी धारणाआें, पिछड़ी सोच में उलझे हुए हैं। आज कुछ ऐसे ही काम करने वालों को हम अपना समाज और देश चलाने की बागडोर सौंप देते हैं ओर यही क्रम अब फिर शुरू हो गया है, क्योंकि हिमाचल में चुनाव संपन्न हो चुके हैं। चुनावी वादे भी खूब किए गए हैं। सभी नेताओं ने डटकर चुनावी दंगल में हिस्सा लिया।  हमें तो यह भी अंदाजा नहीं है कि कौन नेता कब किसका साथ छोड़ कर किसके गले लग गया। हर बार मतदाता मत देते समय यह सोचता है कि इस बार उसके सपने सच होंगे, लेकिन अगर ऐसा होता तो फिर हिमाचल में एक बार कांग्रेस और अगली बार भाजपा की सरकार का क्रम नहीं चलता। अगर सरकार काम करने वाली है तो एजेंडे बनाने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि अगर हम आम जनता से रू-ब-रू होते हैं तो उनकी समस्याओं का भंडार ही इतना है कि सब एजेंडे धरे के धरे रह जाते हैं। आखिर बात भी सही है, क्यांकि एजेंडे भी तो उन्हीं के लिए बनाए गए हैं अगर उन्हीं की समस्याओं को सुलझा कर काम किया जाए तो विकास होना तो निश्चित है। सबसे पहले बात की जाए सक्षम युवा योजना जो आज का महत्त्वपूर्ण विषय है, क्योंकि 1000 रुपए बेरोजगारी भत्ता उनकी समस्याओं का समाधान नहीं है। स्मार्ट सिटी हिमाचल को इस लिस्ट का हिस्सा बनाना। स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना, आए दिन समाचार पत्रों में यह खबर आती है कि सही स्वास्थ्य सुविधा न होने के कारण मरीजों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, शिक्षा व खेलकूद के स्तर को बढ़ाना, आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना। हर जिला मुख्यालय में महिला थाना खोलना, ताकि बिना किसी झिझक के वह अपनी परेशानियां साझा कर सके। सड़कों को सुदृढ़ करने की ओर कार्य करना, ताकि आम आदमी की थोड़ी सी तो आशा जागृत हो सके। चुनावी मैदान में उतरने वाले हर उम्मीदवार ने अपने-अपने एजेंडे जनता के सामने रखे हैं। अब देखना है कि सरकार बनने के बाद ये एजेंडे कितने फीसदी पूरे होते हैं। अब ऐसा नहीं चलेगा कि चुनावों में तो वादे कर लो और चुनाव जीतते ही जनता से आंखें फेर लो। अब जनता जागरूक हो चुकी है। अब वह नेताओं के झांसे में आने वाली नहीं है। यह कोई आखिरी चुनाव नहीं था। पांच साल तो पलक झपकते ही बीत जाते हैं। और अगर इस बार भी इन नेताओं ने जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश की, तो जनता सबक सिखाना भी जानती है। अगर वह सरकार बनाना जानती है, तो गिराना भी जानती है।


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