बंदरों ने सताए नौहराधार के किसान-बागबान

By: Nov 24th, 2017 12:05 am

 नौहराधार — नौहराधार क्षेत्रों की विभिन्न पंचायतों में बंदरों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा है। कई वर्षों से बंदरों की दस्तक ने किसानों व बागबानों की नींद हराम कर रखी है। लोग बंदरों के भारी उत्पात व हमलों के कारण बहुत ज्यादा परेशानियों व असुविधाओं के बीच डर के साए में जीवन यापन कर रहे हैं। बंदरों के आतंक से तंग आकर ज्यादातर किसानों व बागबानों ने इससे किनारा करते हुए खेतीबाड़ी को तौबा कर अन्य कार्यों में जुटकर आजीविका का साधन बनाया है। बंदरों की संख्या में हुई भारी वृद्धि व वन विभाग की गलत नीति के कारण गत वर्षों से बंदरों का जंगलों से शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन हुआ है, क्योंकि वन विभाग ने जंगलों में फलदार पौधों की जगह चीड़ के वृक्षों को लगाने में ज्यादा तरजीह दी है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों में 10-15 साल पहले खेतों में पक्की व गेहूं की फसल खूब लहलहाती थी आज उन क्षेत्रों में बंदरों के आतंक के चलते कई बीघा भूमि बंजर पड़ चुकी है। रामायण में वर्णित हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे वानर ऐसे खुरापाती हुए कि किसानों की इनके आतंक के कारण दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। पहले वानर देव को खुश करने के लिए लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही वह मुंह मोड़ने लगे हैं। यही नहीं बंदर अब मनुष्यों पर भी जानलेवा हमला कर रहे हैं। बंदरों के हमलों में अब तक दर्जनों से भी अधिक महिलाओं व बच्चे घायल हुए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बंदरों के आतंक के चलते उपजाऊ कृषि योग्य भूमि बंजर हो चुकी है। किसानों ने मक्की, गेहूं की फसल उगाना बिलकुल कम कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि बंदरों से परेशान होकर अब किसान उसी भू-भाग में फसलें उगा रहे हैं जहां पर आसानी से फसलों की निगरानी हो सके। भू-भाग में भी अब फसलें बचाना मुश्किल हो गया है। उन क्षेत्रों में भी दिन भर बंदरों की निगरानी करनी पड़ती है। कहीं भूले से निगरानी कम हुई तो उत्पाती बंदर चंद पलों में ही पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है, जिससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बंदर गांव की गलियों व छतों पर दिन भर उछलते रहते हैं। एक तरह मौसम की मार तो दूसरी तरफ जंगली जानवरों से परेशान आखिर किसानों के हितों का कब  सरकार सोचेगी। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि बंदरों की जनसंख्या वृद्धि रोकने हेतु कारगर उपाय किए जाएं, ताकि इन जंगली जानवरों के उत्पाद से निजात मिल सके।


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