महिलाओं का दखल सार्वजनिक क्षेत्र में बढ़ा है

By: Nov 5th, 2017 12:05 am

परिचय

* नाम : मीनाक्षी एफ पाल, शिमला

* कृतियां  : शार्ट स्टोरीज आफ हिमाचल प्रदेश (अनुवाद), सीढ़ीदार खेत की चैली (द्विभाषीय कविताएं), हिंदी कहानियों तथा कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद, विविध विषयों पर अकादमिक पुस्तकें, विविध संगोष्ठियों व चर्चाओं में भागीदारी

* पुरस्कार : हिमाचल प्रदेश की लोक कथाओं के अंग्रेजी अनुवाद के लिए हिमाचल प्रदेश भाषा कला संस्कृति अकादमी सम्मान से सम्मानित

लेखनी एकांत मांगती है, लेकिन लिखने के लिए संसार और लिखे हुए के लिए समाज की अपेक्षा रहती है। इसी भीतर-बाहर, निज-सार्वजनिक, साहित्यिक-व्यावहारिक और कला प्रेम-जिम्मेदारियों की उधेड़बुन में लेखक सामंजस्य बनाने के लगभग असफल यत्न में व्यस्त रहते हैं। यद्यपि लेखनी एक महिला के हाथ में हो तो हजार इंद्रधनुषी धागों के सिरे उससे लिपटे ही होते हैं, जो उसके जीवन को सुंदर और बहुरंगी बनाते हुए भी कहीं न कहीं उसका हाथ बांधे भी रखते हैं। उसकी लेखनी इन्हीं धागों से उभरे दृश्यों, भावनाओं और रिश्तों को कागज पर सहजता से उकेरती है, पर इन्हीं तक सीमित कतई नहीं रहती।

मानव जीवन का शायद ही कोई पहलू हो जिसे नारी मन ने देखा-समझा न हो। मर्मस्पर्शी और कोमल विषय-वस्तुओं के साथ ही युद्ध, महामारी, राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंधों, सामाजिक न्याय, परमाणु शक्ति और वाणिज्य जैसे जटिल विषयों पर महिला लेखकों ने पैनी और गहरी साहित्यिक रचनाएं और समालोचनाएं प्रकाशित की हैं। समय के साथ-साथ महिलाओं का दखल सार्वजनिक क्षेत्र में बढ़ा है और उसी के साथ लेखकों का परिलक्षित क्षेत्र भी।

हिमाचल में जन्मे-बढ़े लेखकों पर निस्संदेह पहाड़ का रंग जमना था और जम कर चढ़ा भी है। हिमालय के अटल अनंत स्वरूप के साथ ही चलायमान और गतिमान पहाड़ी नदियों सा यथार्थ भी उनकी स्याही में ढला है। अपनी विराट विरासत लिए एक पहाड़ी होने का गर्व छिछली परंपराओं और बाजार से उत्पन्न संकट से लड़ने के निश्चय से जुड़ा हुआ है। पहाड़ के लेखक शांत भी हैं और बेचैन भी, सरल भी हैं और नुकीले भी, आस्थावान भी हैं और आलोचनात्मक भी। और यही इनकी पहचान है।

अपनी खिड़की-ड्योढ़ी पर बैठी लेखक सामने खड़े बूढ़े पेड़ की खोखली होती जड़ों से अनजान नहीं, बल्कि वह तो उसके दर्द में शामिल है, क्योंकि कहीं न कहीं पेड़ का दर्द उसका अपना है। कवि का सुर व्याकुल परिंदों के स्वर से अकसर मिल जाता है :

छोड़ गए/सब कोंपल/ओस, बहारें/भूल गए सब/संगी साथी/फल-फूल/और बयारें/पर टूटे पंख/एक तन्हा पाखी/पेड़ के गिर्द/मंडराता है/और निरंतर/उस तरु का/जौहर गीत/सुनाता है

जब भी कोई एक बीज पहाड़ के गर्भ से अंकुरित होता है तो पेड़ और कवि आशा की नई शीतल-मंद वायु में हिलोरें लेते हैं। दोनों ही खुद को आने वाली पीढि़यों की आंखों में कुछ कम दोषी पाते हैं। स्त्री विमर्श में पहाड़ की महिलाओं का सबसे बड़ा योगदान उनकी अदम्य जिजीविषा है जो यहां के लोक और साहित्य में बखूबी उभरकर सामने आती है। विमर्श से अधिक यह प्रवृत्ति और मनोभाव जीवन पर प्रभाव डालती है। प्रदेश की स्थापना से अब तक हिमाचल की महिला लेखकों की यही चेतनावान जिजीविषा समकालीन लेखकों की साहित्यिक बपौती है।

सांस्कृतिक अध्ययन के इस दौर में हर एक सृजनात्मक कृति को समग्र रूप से अवलोकित किया जाता है और यह स्त्री विमर्श का दायरे के विस्तार के लिए उपयोगी है। अब समय यह है कि सामान्यतः लेखक को किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं रह जाती, जब तक और जहां तक वह स्वयं किसी विशेष समाज, समुदाय, मनोरथ अथवा सिद्धांत से खुद को जोड़ना  न चाहे :

मुझसे संयम चाहने से पहले

अपनी सीमा रेखा दिखाओ

हां हो सकती हूं मैं शांत गंभीर

तुम भी अगर इनसान बन जाओ।

हिमाचल प्रदेश के छोटे से राज्य में महिला लेखकों की एक बड़ी सूची है। यह हमारे लिए गर्व की बात है, पर प्रायः इसमें नामित कलमें भारतीय साहित्यिक समाज की मुख्यधारा से अलग और प्रदेश के पुरुष लेखकों के जालक्रम से कुछ दूरी पर दिखाई देती हैं। हालांकि कलम खुद में संपूर्ण होती है और उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं, लेकिन यह शाश्वत सत्य है कि कृत्य को पाठक ही परिपूर्ण करते हैं। ‘प्रतिबिंब’ जैसे प्रयास लेखनी और पाठक में सेतु का कार्य करते हैं, इसलिए ‘दिव्य हिमाचल’ और चंद्ररेखा जी को साधुवाद कि उन्होंने महिला लेखक केंद्रित शृंखला के समयुचित महत्त्व को पहचाना और उसे समालोचना सहित प्रकाशित किया।         -मीनाक्षी एफ पाल, शिमला

 


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