माननीयों की संपत्ति में ‘अज्ञात’ वृद्धि

By: Nov 29th, 2017 12:05 am

नीलम सूद

लेखिका, पालमपुर से हैं

सत्ता के सिंहासन को छूते ही राजनेताओं की संपत्ति में आश्चर्यजनक ढंग से वृद्धि होना आरंभ हो जाती है और फिर वह कुर्सी पर बैठते ही बेतहाशा बढ़ती जाती है। हैरानी यह कि किसी राजनीतिक दल ने इस संदर्भ में पारदर्शिता लाने की कोई पहल अब तक नहीं की है। केंद्र सरकार भी ऐसे किसी चुनाव सुधार के मूड में नजर नहीं आती है…

सत्ता के सिंहासन को छूते ही राजनेताओं की संपत्ति में आश्चर्यजनक ढंग से वृद्धि होना आरंभ हो जाती है और फिर वह कुर्सी पर बैठते ही बेतहाशा बढ़ती जाती है। बीते कुछ वर्षों से हमारे लोकतंत्र को नासूर बन छलनी करती यह समस्या न केवल आमजन को विचलित किए हुए है, अपितु माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी कुछेक स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा दायर याचिकाओं को गंभीरता से लेते हुए नेताओं की संपत्ति की जांच हेतु केंद्र सरकार को त्वरित अदालतें गठित करने के निर्देश दिए। इसके विपरीत केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायलय को दिए अपने जवाब में कहा कि वह नेताओं की संपत्ति की जांच हेतु केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की कार्य प्रणाली से संतुष्ट है। अतः अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ने वाले लगभग 300 प्रत्याशियों को पंचकूला स्थित केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के दफ्तर द्वारा आयकर संबंधी नोटिस भेजे जा चुके हैं। इसके अलावा इन्हें आयकर आयुक्त के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है, परंतु यहां सवाल आय का नहीं अपितु आय के स्रोत का है। हैरानी यह कि किसी राजनीतिक दल ने इस संदर्भ में पारदर्शिता लाने की कोई पहल अब तक नहीं की है। केंद्र सरकार भी ऐसे किसी चुनाव सुधार के मूड में नजर नहीं आती है। इसके विपरीत माननीय उच्चतम न्यायालय एवं केंद्रीय निर्वाचन आयोग चाहते हैं कि चुनावी उम्मीदवारों की आय के स्रोत को भी सार्वजनिक करने का प्रावधान किया जाना चाहिए। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा सांसदों एवं विधायकों की आय संबंधी जांच में यह तथ्य उजागर होता है कि उनकी आय में बढ़ोतरी का कारण अन्य व्यापारिक गतिविधियां हैं। शीर्ष न्यायालय के अनुसार सार्वजनिक जीवन जी रहे लोगों के लिहाज से ये गतिविधियां सही नहीं हैं, क्योंकि एक जनप्रतिनिधि जनता का सेवक होने के साथ अन्य कोई कार्य कर ही नहीं सकता। वैसे भी उसका अधिकतर समय जनता की समस्याओं को सुनने और सुलझाने में व्यतीत होता है। इसके अतिरिक्त उसे इस कार्य हेतु वेतन-भत्ते और उसके बाद पेंशन भी मिलती है। अतः गलत ढंग से कमाई गई दौलत को ‘अन्य स्रोतों से आय’ पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की मुहर से न जनता और न ही शीर्ष अदालत संतुष्ट है। पांच वर्षों के भीतर जनप्रतिनिधियों की आय में 500 से लेकर 2100 प्रतिशत की वृद्धि को विभिन्न तर्कों द्वारा न्यायसंगत बनाने की कला में माहिर अधिवक्ता एवं चार्टर्ड अकाउंटेंट भी तो केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के राडार पर होने चाहिएं। केंद्र सरकार से गुजारिश है कि छोटे व मझौले व्यापारियों और इन अति विशिष्ट व्यक्तियों को एक ही तराजू में न तोला जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इन जनप्रतिनिधियों के लिए अलग से त्वरित कोर्ट की व्यवस्था होनी ही चाहिए। यहां इनके द्वारा रिटर्निंग आफिसर के सम्मुख प्रस्तुत किए गए हल्फनामे में संपत्तियों के विषय में दी गई जानकारी की समीक्षा एवं मूल्यांकन होना चाहिए, ताकि झूठे शपथ पत्र दाखिल करने वालों पर उचित कार्रवाई हो और उन्हें कड़ा दंड मिले।

चुनावों के दौरान सत्ता पक्ष एवं विपक्ष द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर जनता को बहकाना व गुमराह करना आम बात है। प्रदेश विधानसभा के लिए हाल ही में संपन्न हुए चुनावों के दौरान भी यह प्रवृत्ति सहज रूप में देखने को मिली, परंतु इस सच्चाई से भी जनता अनभिज्ञ नहीं है कि भ्रष्टाचार द्वारा संपत्ति अर्जित करने की प्रतिस्पर्धा में कोई भी कम नहीं है। कहीं 2019 में होने वाले आम चुनावों पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की स्वायत्तता पर केंद्रीय जांच ब्यूरो की तरह ही शंका हावी न हो जाए और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड भी सरकारी तोता बनकर न रह जाए। यूपीए और खासकर यूपीए-दो के कार्यकाल में एक के बाद एक बड़े घाटाले का पर्दाफाश हुआ। उस पूरे प्रकरण में जनता का कांग्रेस के प्रति मोहभंग होने लगा था। 2014 के आम चुनाव के आते-आते लोगों में पनपा यह आक्रोश अपने चरम पर था। कांग्रेस के लंबे शासनकाल व भ्रष्टाचार से ऊब चुकी जनता ने मोदी सरकार को अप्रत्याशित बहुमत से जीत हासिल करवाई थी। अतः नरेंद्र मोदी सरकार से जनता की अपेक्षाएं भी उतनी ही अधिक हैं। हिमाचली नेताओं की बेतहाशा बढ़ती संपत्तियों की जांच किसी निष्पक्ष निष्कर्ष तक पहुंचे, ऐसी उम्मीद किसी भी सूरत में धूमिल न हो। अगर जीएसटी व नोटबंदी की बात न भी करें, तो भी सीबीआई में 4000 करोड़ के हवाला कारोबार में संलिप्तता के बावजूद गुजरात कैडर के आफिसर आस्थाना की नियुक्ति एवं ऐसे ही कई दमनकारी उदाहरण कहीं सरकार के गले की फांस न बन जाएं, जो केंद्र सरकार की कार्य प्रणाली को कठघरे में खड़ा कर दें। उस स्थिति से निकल पाना फिर वर्तमान  केंद्र सरकार के लिए भी आसान नहीं होगा। अतः केंद्र सरकार को यह मान कर चलना चाहिए कि 2019 के आम चुनावों से पहले विभिन्न सामाजिक संगठन, पत्रकार व उच्च पदों पर तैनात असंतुष्ट अधिकारी मिलकर एक बार फिर कोई बड़ा आंदोलन न खड़ा कर दें, जो देश की दशा और दिशा को बदलने में अपनी अहम भूमिका निभा जाए।

ई-मेल : ravindersoodplp@gmail.com

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लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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