राजपूताना सम्मान व गौरव पर चोट

By: Nov 24th, 2017 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

पद्मिनी का चित्रांकन ध्यान से होना चाहिए था और इस चरित्र को गौरव दिया जाना चाहिए था। अगर ऐसा किया गया होता तो यह फिल्म राजपूतों के साथ-साथ सभी भारतीयों के गौरव की एक गाथा बन गई होती। शायद निर्देशक का असमंजस यह रहा होगा कि इस तरह के प्रणय वाले दृश्य पति के साथ दिखाने के बजाय आक्रांता के साथ दिखाना ज्यादा कलात्मक रहेगा। यह भी आरोप लग रहे हैं कि फिल्म निर्माण के पीछे एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना रहा है…

कोई भी भारतीय ऐसा नहीं होगा, जो महाराणा प्रताप और रानी पद्मावती को न जानता हो। ये दोनों प्रसिद्ध राजपूत राजवंश के सम्मान व गौरव के आधार स्तंभ रहे हैं। इन दोनों को राजस्थान में सम्मान के साथ पूजा जाता है। देश के अन्य अधिकतर क्षेत्रों में भी इन्हें सम्मान की नजरों से देखा जाता है। राजपूत वे लोग हैं, जो अपनी साहसिक क्षमता व वीरता के लिए जाने जाते हैं। इन्होंने इतिहास के एक लंबे कालखंड में विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेते हुए गौरवमयी बलिदान की एक अलग गाथा लिखी है। एक बार गिरफ्त में आए एक राजपूत ने सम्राट, जिसने उसके घोड़े को लेकर सवाल किया था, से कहा कि राजपूत कभी भी महिलाओं व घोड़ों पर तलवार नहीं चलाते। इससे पहले कि सम्राट उसे पकड़ पाता, वह किले की दीवार को फांद कर अपने घोड़े समेत निकल गया तथा उसका पीछा कर रही सेना भी उसे नहीं पकड़ पाई। इस तरह राजपूत जहां बहादुर होते हैं, वहीं वे संवेदनशील तथा आत्म गौरव का सम्मान करने वाले भी होते हैं।

इतिहास पौराणिक कथाओं व साहसी कार्यों से भरा पड़ा है। जब स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की बात आती है, तो सभी भारतीय महाराणा प्रताप का स्मरण करते हैं। उन्होंने मुगल शासक अकबर की शक्ति को चुनौती दी थी और अकबर को राजपूत रियासत की स्वतंत्रता कायम रखने के लिए उनसे समझौता करना पड़ा था। संजय लीला भंसाली एक निपुण फिल्म निर्देशक हैं, जिन्होंने विश्व स्तर की बढि़या फिल्में बनाकर रिकार्ड कायम किया है। परंतु कोई यह नहीं जानता कि वह पहले बनाई गई फिल्म जोधा अकबर के परिणाम को कैसे भूल गए। इस फिल्म ने भी राजपूतों के गौरव पर एक तरह से चोट ही की थी। उस फिल्म में हालांकि किसी के गौरव को ठेस पहुंचाने के लिए भौंडा प्रयास नहीं किया गया था। लेकिन इस बार उन्होंने राजस्थान के पूर्व राजपूत शासक राजा रतन सिंह के किले पर अलाउद्दीन खिलजी के हमले को इस तरह दर्शाया है जैसे उनका लक्ष्य केवल पैसा कमाना रहा है।

पद्मावती के मामले में इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश हुई है, जिससे वीरता के लिए माने जाने वाले राजपूतों के गौरव को ठेस पहुंची है। गौरव की प्रतिमूर्ति रही पद्मावती की भूमिका दीपिका पादुकोण ने संवेदनहीनता से निभाई है, जबकि खिलजी की रोमांटिक छवि पेश की गई है। फिल्म को शृंगारिकता के बल पर बेचने की कोशिश हुई है, जो एक फिल्म निर्माता के लिए कोई गलत बात नहीं है। लेकिन इस मामले में रानी के गांभीर्य व सम्मान-गौरव पर चोट हुई है, जबकि इतिहास बताता है कि रानी पद्मावती ने अपने पति राजा रतन सिंह के दुश्मन के हाथों पकड़े जाने पर रियासत की हजारों महिलाओं सहित जौहर कर लिया था। आत्म-बलिदान की इस गौरव गाथा पर फिल्म में एक तरह से सवाल उठाया गया है, आक्रांता के सामने रानी को नाचते दिखाना कहीं न कहीं राजपूतों के गौरव पर चोट है। अब तथाकथित पंथनिरपेक्ष लोग कई तरह के सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि इतिहास में इस तरह की कोई भी घटना नहीं हुई तथा फिल्म केवल कल्पना पर आधारित है। ऐसे लोगों से मेरे कुछ सवाल हैं : 1. मलिक मोहम्मद जायसी ने कहानी का उल्लेख किया है, हालांकि इसे काल्पनिक कहा जा सकता है। 2. अमीर खुसरो ने चित्तौड़ पर खिलजी के हमले का उल्लेख किया है। हालांकि उन्होंने रानी की कहानी प्रत्यक्ष रूप में नहीं दी है, लेकिन शेबा की रानी का उल्लेख किया है जिसकी तुलना रूपात्मक तौर पर पद्मावती से की जा सकती है। 3. ख्वाजा उल फतुल्लाह पुष्टि करते हैं कि खिलजी ने पद्मिनी को पाने के लिए हमला किया था। 4. कर्नल टॉड ने राजस्थान के राजपूतों पर एक परंपरागत पत्रिका लिखी है। इसमें वह राजपूतों के चरित्र की प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि समर्पण में फेयर सेक्स सभ्यता का एक मापदंड माना जाना चाहिए तथा इसमें राजपूतों की हस्ती अव्वल है। राजपूतों की भावना उदात्त है और वे महिलाओं की शिष्टता से मजाक को गंभीरता से लेते हैं तथा इसे वह कभी माफ नहीं करते। राजपूतों के चरित्र की यह इबारत वास्तव में एक मूल्यवान प्रशस्ति है। इसी के साथ चित्तौड़ में रानी के लिए हुए युद्ध का भी लेखक ब्यौरा देते हैं। जब भंसाली ने इस राजवंश से जुड़े दृश्य फिल्माए, तो उन्हें संवेदना का ध्यान रखना चाहिए था और यह देखना चाहिए था कि इस राजवंश में महिलाओं से कैसा व्यवहार होता है। इसके अलावा उन्हें इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए था कि रानी पद्मावती ने ऐश्वर्य के जीवन को ठुकरा कर राजपूतों के गौरव के लिए आत्म-बलिदान तक कर दिया था। आक्रांता के सामने रानी को नाचते तथा उससे प्यार करते दिखाना वास्तव में घिनौना है। फिल्म की दृष्टि से निर्देशक ने बढि़या काम किया है, क्योंकि बढि़या फिल्में बनाने का उनका रिकार्ड भी रहा है। इस मामले में उन्होंने गलती की है, अगर उनकी तुलना बाजीराव मस्तानी से की जाए, जिसमें मराठा समुदाय के गौरव को आदरांजलि दी गई है। पद्मिनी का चित्रांकन ध्यान से होना चाहिए था और इस चरित्र को गौरव दिया जाना चाहिए था। अगर ऐसा किया गया होता तो यह फिल्म राजपूतों के साथ-साथ सभी भारतीयों के गौरव की एक गाथा बन गई होती। शायद निर्देशक का असमंजस यह रहा होगा कि इस तरह के प्रणय वाले दृश्य पति के साथ दिखाने के बजाय आक्रांता के साथ दिखाना ज्यादा कलात्मक रहेगा। यह भी आरोप लग रहे हैं कि फिल्म निर्माण के पीछे एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना रहा है। इसीलिए सेंसर बोर्ड से जुड़ी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी नहीं की गईं तथा प्रमाण पत्र के बिना फिल्म के कुछ हिस्से दिखाए गए। यह भी चिंताजनक है कि अब इसका हर जगह विरोध हो रहा है और फिल्म बनाने वाले स्पष्टीकरण देने के लिए प्रदर्शनकारियों को बुला नहीं रहे हैं। इस तरह के भारी विरोध प्रदर्शनों के बीच अब एक ही रास्ता बचा है कि प्रदर्शनकारियों के संदेह दूर किए जाएं, विवादास्पद सीन हटा दिए जाएं, उसी के बाद फिल्म प्रदर्शित की जाए।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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