राहुल गांधी की अग्निपरीक्षा

By: Nov 27th, 2017 12:07 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस वंशवाद की संस्कृति से बाहर नहीं निकल पा रही है। राहुल गांधी के लिए आने वाली सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गुजरात में किस तरह पार्टी को जीत दिलाई जाए। वास्तव में यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी समेत कई दलों के लिए निर्णायक साबित होने वाला है। राहुल गांधी के अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तथा नरेंद्र मोदी की भी इस चुनाव में परीक्षा होने वाली है…

दुनिया भर के राजनीतिक दल अब एक ‘बंद दुकानों’ की तरह बन गए हैं। जिसे हम हाइकमान कहते हैं, पार्टी में वही सभी को निर्देश देता है। इससे अभिप्राय पार्टी के अध्यक्ष से होता है। राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय है। पार्टी इसके लिए चुनाव प्रक्रिया चला रही है। निवर्तमान पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी इसे इस रूप में देख रही हैं कि उनका पुत्र पार्टी में सर्वोच्च पद पर चयनित होगा। नब्बे के दशक में जब मैं लंदन में भारत का उच्चायुक्त था, तो मैंने ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी में बदलावों को करीब से देखा था। उस समय मारग्रेट थैचर प्रधानमंत्री थीं। लेकिन उनसे पद छोड़ने के लिए कहा गया और उन्हें पार्टी के आदेश मानने पड़े। मैंने उनसे प्रत्यक्ष रूप से पूछ लिया कि वह क्यों ऐसा कर रही हैं। उनके बच्चे दक्षिण अफ्रीका में बिजनेस कर रहे थे तथा वे इस मसले से किसी रूप से जुड़े नहीं थे। थैचर ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों को इसीलिए दूर भेजा था, ताकि उन पर वंशवाद के आरोप न लगें। इसके बावजूद जब पार्टी ने निर्णय किया कि उन्हें पद छोड़ना होगा, तो उन्होंने इस आदेश को मान लिया। जॉन मेजर उनके उत्तराधिकारी बने।

सोनिया गांधी के पक्ष में जोरदार मांग थी कि वह प्रधानमंत्री का पद संभाल लें, लेकिन उन्होंने इस पेशकश को ठुकरा दिया। इसके बजाय उन्होंने मनमोहन सिंह को यह पद सौंप दिया, जबकि उनसे ज्यादा स्वीकार्य व अनुभवी प्रणब मुखर्जी थे। यह एक खुला रहस्य था कि सरकार सोनिया गांधी के सरकारी आवास 10 जनपथ से चलेगी और इस योजना में मनमोहन सिंह पूरी तरह खांचे की तरह फिट होते थे। सरकार की सभी गोपनीय फाइलें सोनिया गांधी के आवास पर जाती थीं, जहां उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पहले उनकी जांच करते थे और बाद में सोनिया गांधी की स्वीकृति के लिए उन गोपनीय व महत्त्वपूर्ण फाइलों को उनके पास भेजा जाता था।

इसी कारण मनमोहन सिंह को घटनावश बना प्रधानमंत्री कहा जाता था तथा उनके प्रेस आफिसर ने भी इस बात को अपनी किताब में स्वीकार किया है। अखबारों में छपी रपटें भी पुष्टि करती हैं कि वह एक मुखौटा प्रधानमंत्री थे तथा उनके नाम पर 10 जनपथ से सरकार चलाई जाती थी। वास्तव में, यहां तक कि एक बार राहुल गांधी ने सजायाफ्ता कानून निर्माताओं पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बेअसर करने वाले विवादास्पद अध्यादेश की कंपलीट नॉनसेंस कह कर निंदा की थी और कहा था कि हमारी सरकार ने जो किया, वह गलत है। यह यूपीए सरकार व उसके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात थी। यह अलग बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा अन्य पार्टी सदस्यों ने उस वक्त उसका साथ दिया, जो मनमोहन सिंह ने कहा था। लेकिन तब तक जो नुकसान होना था, वह हो चुका था। कई अन्य अवसरों पर भी प्रधानमंत्री का पार्टी सदस्यों ने परिहास उड़ाया था। ये सदस्य सरकार चलाने वाले सर्किल में शामिल थे।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मनमोहन सिंह स्वयं यह महसूस करने लगे थे कि उनकी भूमिका केवल यह है कि वह प्रधानमंत्री की कुर्सी राहुल गांधी के लिए बचाए रखें। वास्तव में राहुल गांधी की पार्टी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हैरान करने वाली नहीं होगी। यह नियुक्ति इस तथ्य को पुष्ट करेगी कि कांग्रेस के पास इस बात के अलावा अब कोई अन्य विकल्प नहीं है कि वह वंशवाद पर चले और नेहरू-गांधी, जो देश में अब भी स्वीकार्य हैं, के नाम पर जनता को अपने पक्ष में करे। कांग्रेस के एक प्रभावी तबके के अनुसार प्रियंका बढेरा शायद बढि़या विकल्प होतीं, लेकिन सोनिया गांधी का विरोध करने की किसी में हिम्मत नहीं है, जिन्होंने यह तय कर लिया है कि अध्यक्ष पद राहुल गांधी को ही मिलना चाहिए। अब इस ताजपोशी के लिए तैयारियां मुकम्मल कर ली गई हैं। परंतु मिलियन डालर का सवाल तो यह है कि क्या राहुल गांधी अध्यक्ष पद संभालने के बाद पार्टी की स्थिति में सुधार के लिए कुछ कर भी पाएंगे?

मैं उन दिनों को याद करता हूं जब लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रतिस्थापित किया। मैंने तब कामराज से सवाल किया था कि उन्होंने इंदिरा को ही क्यों चुना? इस पर कामराज ने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मरने से पूर्व कहा था कि लाल बहादुर शास्त्री उनके उत्तराधिकारी होंगे। जब कामराज ने विशेष रूप से नेहरू से पूछा कि इंदिरा गांधी क्यों नहीं, तो उन्होंने कहा था कि अभी नहीं। मोरारजी देसाई, जो स्वयं एक दावेदार थे, इंदिरा गांधी के विकल्प के पक्ष में नहीं थे। इसके बजाय उन्होंने चुनाव कराने पर जोर दिया था। पार्टी अध्यक्ष व पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के विरोध के कारण मोरारजी देसाई इस दौड़ में पिछड़ गए। यह दूसरी बात है कि साथ ही कामराज को भी हाशिए पर धकेल दिया गया। मैंने कामराज से उस वक्त सवाल किया था कि उन्होंने मोरारजी देसाई के बजाय इंदिरा गांधी को प्राथमिकता क्यों दी। उस वक्त कामराज ने कहा था कि मोरारजी देसाई कठोर थे और आम सहमति में उनका विश्वास नहीं था।

राहुल गांधी उस वक्त पार्टी अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, जब कांग्रेस जनता में अपना आधार खो चुकी है। पार्टी का अभी भी विश्वास है कि राहुल गांधी गुजरात, जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने में कामयाब होंगे। पार्टी ने आंदोलनरत पाटीदारों के साथ सीटों को साझा करने की रणनीति भी इसी लक्ष्य  को ध्यान में रखकर बनाई है। हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि कांग्रेस जो अनुमान लगा रही है, उस पर राहुल गांधी कितना खरा उतरेंगे।  इससे पहले का समय देखें तो पार्टी उपाध्यक्ष के रूप में उनकी चुनावी उपलब्धियां कम ही रही हैं, जबकि वह पार्टी के मुख्य चुनाव प्रचारक थे। मध्य प्रदेश व हरियाणा में वह विफल रहे हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ के बावजूद कांगे्रस वहां चुनाव नहीं जीत पाई। अन्य शब्दों में कहें तो वह पार्टी का भाग्य अब तक चमका नहीं सके हैं। इसका एक कारण तो इसे ही माना जाएगा कि समय के साथ जो परिपक्वता राहुल गांधी में आनी चाहिए थी, वह अब तक देखने को नहीं मिली है।

इसके बावजूद दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस वंशवाद की संस्कृति से बाहर नहीं निकल पा रही है। राहुल गांधी के लिए आने वाली सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गुजरात में किस तरह पार्टी को जीत दिलाई जाए। वास्तव में यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी समेत कई दलों के लिए निर्णायक साबित होने वाला है। राहुल गांधी के अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी इस चुनाव में परीक्षा होने वाली है। भाजपा इस चुनाव को जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी, क्योंकि दो साल बाद आने वाले लोकसभा चुनाव पर इस चुनाव का गहरा असर पड़ने वाला है। इसी चुनाव से पता चलेगा कि हवा किस ओर बहने जा रही है। हालांकि यह भी सच है कि अभी जो दो साल का समय है, वह एक लंबा समय है। तब तक कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए राहुल गांधी के पास काफी समय है। यह भी सच है कि कोई भी सरकार जनता की बढ़ती अपेक्षाओं व सभी मांगों को पूरा नहीं कर सकती है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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