शक्ति के शिखर पर भारत

By: Nov 22nd, 2017 12:04 am

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के अहम चुनाव में विश्व बिरादरी का भारत के पक्ष में लामबंद होना दुनिया के तथाकथित दारागाओं के लिए स्पष्ट संदेश है। न्यायमूर्ति भंडारी का चुनाव अघोषित ऐलान है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद सदस्य होने के नाते धौंस जमाने वाले  देशों को अब भारत की बात गंभीरता से सुननी होगी…

माना जा रहा था कि संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य-अमरीका, रूस, फ्रांस और चीन की ओर से ब्रिटेन के कैडीडेट ग्रीनवुड्स के पक्ष में हैं। ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पांचवां स्थायी देश है। इसके बावजूद भारत की जीत ने वैश्विक समुदाय को यह संकेत दिया है कि भारत अब महाशक्ति देश के तौर पर उभर रहा है। भारत यह मांग कर रहा था कि सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से फैसला लिया जाना चाहिए। किसी एक में हुए मतदान का असर दूसरे पर नहीं दिखना चाहिए और दोनों संगठनों को महत्त्व दिया जाना चाहिए। आम महासभा में भारत को प्रबल समर्थन था और भारत को ही सीट भी मिली। इससे वैश्विक शक्ति संतुलन में नए समीकरणों का संकेत मिलता है। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब ब्रिटेन की इस संस्था में कोई सीट नहीं होगी। ब्रिटिश अखबार इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में यूरोपियन यूनियन से अलग होने का फैसला लेने वाले ब्रिटेन के लिए यह परिणाम इस बात का संकेत है कि दुनिया के शक्ति संतुलन में वह अप्रांसगिक हो चुका है। इसकी वजह यह भी है कि अब यूरोपियन यूनियन के अन्य ताकतवर देश पहले की तरह उसके साथ नहीं है। दलवीर भंडारी के दोबारा निर्वाचन ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के पुराने समीकरमों को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। आमतौर पर इस संस्था में तीन ही एशियाई देश हुआ करते थे, लेकिन इस बार के चुनाव परिणामों के बाद यह आंकड़ा चार का हो गया है। यानी अब इस संस्था में भी एशियाई महाद्वीप का वर्चस्व होगा। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अब भारत, चीन, जापान और रूस एशिया का प्रतिनिधित्व करेंगे। आईसीजे के चुनाव में भारत की जीत को कुलभूषण जाधव के मामले के लिए भी महत्त्वपूर्ण बताया जा रहा था। कुछ महीनों पहले इंटरनेशनल कोर्ट ने पाकिस्तान की ओर से जाधव को फांसी की सजा सुनाने के फैसले पर रोक लगा दी थी। हालांकि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने बताया कि इन दोनों मामलों का कोई संबंध नहीं है। आईसीजे में भारत की जीत की वजह वैश्विक समुदाय से मिला समर्थन है।

भारत का समर्थन पर थैंक्स

भारत ने न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी के अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में पुनः निर्वाचन में समर्थन देने वाले देशों का मंगलवार को आभार व्यक्त किया और मतदान के पहले ब्रिटिश प्रत्याशी क्रिस्टोफर ग्रीनवुड को हटा लेने के ब्रिटेन के फैसले की सराहना की। विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम उन सभी सरकारों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इस चुनाव में भारत का समर्थन किया। बयान में कहा गया है कि ब्रिटेन ने इस चुनावी प्रक्रिया में कांटे के मुकाबले के बाद अपने उम्मीदवार को वापस बुलाने का फैसला किया। हम ब्रिटेन के इस फैसले की सराहना करते हैं। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद के 20 नवंबर को स्वतंत्र रूप से बुलाए गए अधिवेशन में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में पांचवें न्यायाधीश के चुनाव में न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी के वर्ष 2018-27 तक के लिए पुनः चुने का स्वागत करता है।

आईसीजे है 15 जजों की अदालत

आईसीजे नीदरलैंड के हेग में स्थित है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 93 के मुताबिक, यूनाइटेड नेशंस के सभी 193 मेंबर्ज देश आईसीजे में इनसाफ पाने के हकदार हैं। हालांकि, जो देश यूएन के मेंबर नहीं हैं, वे भी अपील कर सकते हैं। इसमें 15 जज होते हैं, जिनका टेन्योर नौ साल का होता है। हर तीसरे साल पांच नए जज इसमें चुने जाते हैं, दूसरे जज दूसरी बार चुने जा सकते हैं।

भंडारी को विरासत में मिली वकालत

भारत के दलवीर भंडारी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) के जज के तौर पर दोबारा चुन लिए गए हैं। जनवरी, 2012 में उनको भारत सरकार की ओर से इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपने आधिकारिक उम्मीदवार के तौर पर नामित किया गया था। 27 अप्रैल, 2012 को हुए चुनाव में भंडारी को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 122 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 58। 20 नवंबर, 2017 को उनको दोबारा आईसीजे के जज के तौर पर चुन लिया गया है। उनका मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन ब्रिटेन ने भारत के पक्ष में माहौल बनता देख ग्रीनवुड की उम्मीदवारी वापस ले ली थी। पहली अक्तूबर, 1947 को जन्मे भंडारी का संबंध वकील परिवार से रहा है। उनके पिता महावीर चंद भंडारी एवं दादा बीसीभंडारी राजस्थान बार के सदस्य थे। उन्होंने जोधपुर यूनिवर्सिटी से ह्यूमैनिटीज और लॉ में डिग्री ली। 1968 से 1970 तक उन्होंने राजस्थान हाई कोर्ट में प्रेक्टिस की। जून, 1970 में शिकागो में आयोजित एक कार्यशाला में भाग लेने गए दलवीर भंडारी ने कई देशों में अपनी सेवा प्रदान की। लॉ और जस्टिस में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए तुमकुर यूनिवर्सिटी, कर्नाटक ने डाक्टर ऑफ लॉ (एलएलडी) की डिग्री दी।

करियर

भारत लौटने के बाद श्री भंडारी 1973 से 1976 तक फिर से राजस्थान हाई कोर्ट में प्रेक्टिस की। उसके बाद 1977 में दिल्ली आ गए, जहां तरक्की करते हुए वह दिल्ली हाई कोर्ट में जज बनें। 25 जुलाई, 2004 को उनको बांबे हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। एक साल बाद वह 28 अक्तूबर, 2005 को सुप्रीम कोर्ट के जज बनें।

पद्म भूषण से हैं सम्मानित

 वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा ने मई, 2016 में उनको डाक्टर ऑफ लेटर्स की डिग्री प्रदान की।

 2014 में भारत के राष्ट्रपति ने भंडारी को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया।

 नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ, शिकागो, संयुक्त राज्य ने अपनी 150वीं जयंती का जश्न मनाने के अवसर पर अपने 16 सर्वाधिक गौरवशाली एवं प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों को चुना। उन 16 प्रतिष्ठित हस्तियों में भंडारी भी शामिल थे।

 तुमकुर यूनिवर्सिटी ने उनको डाक्टर ऑफ लॉ की डिग्री से नवाजा।

टाली थी जाधव की फांसी

जज बनने के बाद आईसीजे में अब तक जितने भी फैसले हुए हैं, उनमें जस्टिस भंडारी का स्पेशल ओपिनियन रहा है। उन्होंने समुद्री विवादों, अंटार्कटिका में हत्या, नरसंहार के अपराध, महाद्वीपीय शेल्फ के परिसीमन, न्यूक्लियर डिजार्मामेंट (परमाणु निरस्त्रीकरण), टेरर फाइनांसिंग, वॉयलेशन ऑफ यूनिवर्सल राइट्स जैसे केसों में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा, पाकिस्तान में कैद भारतीय कुलभूषण जाधव को फांसी से बचाने में भी जस्टिस भंडारी का अहम रोल था। उन्होंने 2008 के भारत-पाक समझौते का हवाला देते हुए कहा था कि पाक ने ह्यूमन राइट्स का वॉयलेशन किया है


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