हर्षवर्धन का शासनकाल था शांति और समृद्धि का

By: Nov 15th, 2017 12:03 am

यहां अधिपति ने हिमगिरि में उत्पन्न दुर्गा का पाणि-ग्रहण किया। इससे हर्ष का किसी पर्वतीय राजकुल कन्या से विवाह करने का आभास मिलता है। हर्षवर्धन का शासनकाल (606-47 ईस्वी) शांति और समृद्धि का काल था…     

पूर्व मध्यकालीन हिमाचल

घुमंतू गुज्जर मेवात (अलबेरुनी का गुजरात) से लेकर जमुना घाटी के दोनों किनारों तक की सीमा रेखा में बसे तथा उसके बाद पंजाब के साथ हिमालय की तराइयों में ऊपरी सिंधु तक बस गए। इस प्रकार हूणों तथा घुमंतू गुज्जरों के आक्रमण के परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ तथा हिमालय भूखंड छोटे-छोटे राजाओं, राणाओं और ठाकुरों के रजवाड़े में बंट गया। राणा तथा ठाकुर अपने को क्षत्रिय कहते थे, लेकिन इतिहास से उनके इस दावे की कोई निश्चित जानकारी नहीं मिली। जहां कहीं भी उनका उल्लेख मिलता है, तो केवल पुराने सामंतों तथा स्थानीय मुखिया के ही रूप में। यह स्पष्ट है कि राणा पूर्ण राजपूत युग के राजतंत्रकालीन प्राचीन राजनकों के अनुकूल थे। शिलालेखों में उनका उल्लेख सातवीं शताब्दी से लेकर दसवीं शताब्दी तक मिलता है। ठाकुरों की परिभाषा राणों से भी कठिन है। यह नाम साधारणतः हर छोटे-छोटे मुख्य शासक तथा उसके उत्तराधिकारी के लिए उपयोग में लाया जाता रहा। दूसरे शब्दों में राणा तथा आज के अधिकांश ठाकुर, राजपूत तथा ब्राह्मणों से पहले के शासकवर्ग के अवशेष मात्र हैं। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से वे उन लोगों के अनुरूप ही होने चाहिए, जिन्होंने गुप्त साम्राज्य के पतन तथा राजपूत राज्य के विकास के बीच वाले काल में पश्चिमी तथा मध्य हिमालय पर शासन किया।  सन् 606 ई. के करीब एक कर्मठ व्यक्ति का आविर्भाव हुआ। वह थानेश्वर के मौखरि वंश का हर्षवर्धन था, जो गुप्त साम्राज्य के अवशेषों तथा उसके अधीनस्थ राज्यों को एक राजतंत्र के अंदर लाया।

चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के अनुसार हर्ष अपने राज्यकाल के शुरू के छह वर्षों तक युद्ध करता रहा। इसी काल में उसने हिमालय में कुमाऊं से लेकर जम्मू तक के उन छोटे-छोटे राज्यों को भी, जिनकी प्रजातंत्रीय प्रणाली को समाप्त करके गुप्तों ने एक राजाधिपत्य स्थापित किया, अपने आधिपत्य में लिया। कावेल तथा टामस अनुदित ‘हर्षचरित’ के अनुसार हर्ष ने किसी तुषार धवल पर्वतीय प्रदेश से ‘कर’ ग्रहण किया। तुषारशैल भुवों का अर्थ बिलकुल अस्पष्ट है।

हिमाच्छादित पर्वतों के दुर्गम देश से कश्मीर, नेपाल अथवा शिवालिक श्रेणी या कांगड़ा प्रदेश के अनेक छोटे-छोटे पर्वतीय प्रदेशों में से किसी का तात्पर्य हो सकता है। इतिहास के विद्वानों में इस विषय पर बड़ा मतभेद है। डा. मुकर्जी ‘तुषार शैल’ शब्द से कश्मीर का तात्पर्य समझते हैं और डा. भगवान लाल इंद्र जी उससे नेपाल का अर्थ बताते हैं।

इसका अर्थ इस प्रकार भी किया जा सकता है कि ‘यहां अधिपति ने हिमगिरि में उत्पन्न दुर्गा का पाणि ग्रहण किया।’ इससे हर्ष का किसी पर्वतीय राजकुल कन्या से विवाह करने का आभास भी मिलता है। हर्षवर्धन का शासनकाल (606-47 ईस्वी) शांति और समृद्धि का काल माना जाता था।                     — क्रमशः


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