हिमाचल धार्मिक सहिष्णुता और धर्म निरपेक्षता का श्रेष्ठ उदाहरण

By: Nov 15th, 2017 12:03 am

प्रदेश धार्मिक सहिष्णुता और धर्म निरपेक्षता का एक श्रेष्ठतम उदाहरण है। राज्य में लोगों ने अपनी मान्यतानुसार अपने-अपने धर्मस्थलों का निर्माण किया हुआ है। प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या जो हिंदू है, उनका अन्य धर्मों के प्रति दृष्टिकोण समानता, सहिष्णुता एवं परस्पर सहयोग का है…

धर्म निरपेक्ष राज्य :  हिमाचल प्रदेश में प्रधानतः हिंदू धर्म का प्रचलन है। यहां की 90 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू धर्म को मानती है, लेकिन सिख, बौद्ध, जैन और मुस्लिम भी छिटपुट रूप से प्रदेश के कई भागों में अवस्थित हैं। प्रदेश धार्मिक सहिष्णुता और धर्म निरपेक्षता का एक श्रेष्ठतम उदाहरण है। राज्य में लोगों ने अपनी मान्यतानुसार अपने-अपने धर्मस्थलों का निर्माण किया हुआ है।

प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या जो हिंदू है, उनका अन्य धर्मों के प्रति दृष्टिकोण समानता, सहिष्णुता एवं परस्पर सहयोग का है। सरकारी  स्तर पर न किसी धर्म को प्रश्रय दिया गया है और न ही किसी के साथ भेदभाव किया जाता है। वर्ष 1947 में जब पूरा भारत देश सांप्रदायिकता की आग में जल रहा था, तो निसंदेह हिमाचल प्रदेश के भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इस आग की लपटें दिखाई दी थीं। यद्यपि इस संबंध में कोई आधिकारिक रपट तथा संख्या उपलब्ध नहीं है, तथापि यह माना जाता है कि कुछ सौ लोग वर्तमान हिमाचल के हिस्सों में भी इस हिंसा का शिकार हुए थे। स्वतंत्रता के उपरांत भारत के पड़ोसी राज्यो में अकसर सांप्रदायिकता की आग यदा-कदा फैलती रही है तथा इस आग में हजारों लोग पिछले दशकों में अपनी जान गंवा चुके हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश इस सांप्रदायिकता से हमेशा युक्त रहा है। वर्ष 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत, प्रदेश में स्वतंत्रता के उपरांत कुछ सांप्रदायिक उन्माद सिखों के विरुद्ध पनपा था, जिसमें कई स्थानों पर धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया गया था। पंजाब में आतंकवाद के समय 1980 से 1994 तक कई ऐसी घटनाएं घटीं, जिनसे प्रदेश की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था पर कुछ प्रभाव पड़ा था।

सन् 1992 में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरने के उपरांत कुछ हिंदूवादी संगठनों ने सांप्रदायिक सद्भाव को खराब करने की कोशिश की थी, लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा अपनाई गई कठोर नीति के परिणामस्वरूप कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। हिमाचल प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव के पीछे सबसे प्रमुख कारण यहां की जनसंख्या का सहिष्णु होना माना जा सकता है।

लोग नैसर्गिक रूप से आपसी भाईचारे तथा परस्पर विकास की भावना में विश्वास रखते हैं। लोग प्रकृति प्रेमी हैं और अपनी आजीविका के प्रति अधिक संघर्षरत हैं। राजनीतिक व्यवस्था में किसी प्रकार की सांप्रदायिक भावना के लिए स्थान नहीं है। प्रदेश की राजनीति में धर्म की अपेक्षा जाति का प्रभुत्व अधिक है, लेकिन फिर भी लोग धर्म-जाति की भावनाओं से प्रेरित न होकर विकास एवं समृद्धि के आदर्श को सम्मुख रखकर चुनावों में अपनी भागीदारी निभाते हैं।

हिमाचल में धर्म और पूजा पद्धति- धर्म संस्कृति का अविभाजय अंग है, क्योंकि धार्मिक विश्वास और पूजा पद्धतियां जीवन के अन्य अंगों के साथ-साथ संस्कृति के सृजन और पनपने में सहयोग देते हैं। धर्म को किसी परिभाषा से सीमित करना संभव नहीं।         — क्रमशः


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