आर्थिक मोर्चे पर खुशखबरी

By: Dec 2nd, 2017 12:05 am

यह सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए ही खुशखबरी नहीं है, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर देश भर के लिए ‘अच्छे दिनों’ की खबर है। आखिर जीडीपी की लुढ़कती विकास दर का सिलसिला टूटा है। जुलाई-सितंबर, 2017 की तिमाही के दौरान विकास दर 6.3 फीसदी आंकी गई है, जबकि अपै्रल-जून की तिमाही में 5.7 फीसदी थी। तब हो हल्ला मचा था कि नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था की दुर्गति हुई है, लेकिन जुलाई में जीएसटी लागू कर दिया गया, लिहाजा आकलन किए जाने लगे कि जीडीपी विकास दर में अभी पतन का दौर जारी रहेगा। अंततः तमाम आकलन और आशंकाएं गलत साबित हुईं और विकास दर का नया आंकड़ा सामने आया है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शेष दो तिमाहियों में विकास दर सात से साढ़े सात फीसदी रही, तो पिछली भरपाई भी की जा सकेगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली का मानना है कि तीसरी-चौथी तिमाही में भी विकास दर बढ़ेगी। जीएसटी और नोटबंदी के असर पीछे छूट गए हैं। अब पहले जैसी ही विकास दर की ओर देश बढ़ चुका है। प्रधानमंत्री मोदी का भी भावुक बयान आया है-बेहतर सुधारों के लिए कोई भी राजनीतिक कीमत चुकाने को तैयार हूं। यह विकास दर तब सामने आई है, जब गुजरात चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का बहुत कुछ दांव पर लगा है। बेशक जीएसटी की ‘गब्बर सिंह टैक्स’ सरीखी व्याख्याएं न थमें, लेकिन आम जनता में भ्रांतियां दूर होंगी। जीएसटी और नोटबंदी के कारण जिस आर्थिक मंदी के कयास लगाए जा रहे थे, इस नई विकास दर से वे समाप्त हो जाएंगे। आर्थिक विशेषज्ञ अतुल सिंह का मानना है कि जीडीपी के बेहतर नतीजे यह बताते हैं कि नोटबंदी का असर अब खत्म हो गया है। कंपनियों ने निवेश करना शुरू कर दिया है। इससे वृद्धि के साथ रोजगार को भी बढ़त मिलना तय है। दरअसल जीडीपी की विकास दर लुढ़कने का जो सिलसिला जुलाई-सितंबर, 2016 से शुरू हुआ था, वह अपै्रल-जून, 2017 तक जारी रहा। कमोबेश पांच बार की गिरावट का क्रम तो टूटेगा। लेकिन 2016 में तब विकास दर साढ़े सात फीसदी थी और फिलहाल 6.3 फीसदी तक ही पहुंच पाई है। यानी विकास का एक लंबा रास्ता अभी तय किया जाना शेष है। क्रिसिल रेटिंग एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी का कहना है कि इस तिमाही में विनिर्माण, खनन और विद्युत तीनों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। यह सुधार की दिशा में है, जो जारी रहेगा। ऐसे हालात में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल का आकलन है कि अर्थव्यवस्था में तेजी के जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे विकास दर सात फीसदी तक आराम से पहुंच सकती है। कांग्रेस इस राष्ट्रीय बढ़ोतरी को भी ‘आंकड़ों की बाजीगरी’ करार दे रही है, लेकिन यह भारत की 2.3 खरब डालर अर्थव्यवस्था की विकास दर का सच है। वित्त मंत्रालय का खुलासा है कि इस दौरान विनिर्माण क्षेत्र में 1.2 से 7.68 फीसदी तक का उछाल आया है। वाणिज्य-उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु का आकलन है कि यह बढ़ोतरी 20 फीसदी तक पहुंच सकती है। हालांकि कृषि में बढ़ोतरी बेहद कम 1.7 फीसदी देखी गई है। तथ्य यह भी है कि आठ ढांचागत क्षेत्रों में विकास दर घटकर 4.7 फीसदी आंकी गई है। दरअसल यह सीमेंट, इस्पात और रिफाइनरी क्षेत्रों के कमजोर प्रदर्शन से बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर कम हुई है। बीते साल इसी महीने में यह विकास दर 7.1 फीसदी थी। बुनियादी उद्योगों में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली आते हैं। लेकिन अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि औद्योगिक क्षेत्र के गति पकड़ने से हम वापसी की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि व्यवसाय ने भी जीएसटी को अपना लिया है। आज औसत मुद्रा-स्फीति सरकारी रिकार्ड के मुताबिक दो-तीन फीसदी के करीब है, लेकिन प्याज, टमाटर आम खुदरा बाजार में 70-80 रुपए किलो बिक रहे हैं। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान इन कीमतों को लेकर खुद को असहाय मान रहे हैं। जिन कारखानों पर नोटबंदी और जीएसटी के कारण ताले पड़ गए थे, क्या वे अब खुल जाएंगे या उन स्थितियों को मिला कर ही विकास दर 6.3 फीसदी आंकी गई है। देश के आम आदमी, आम कारोबारी, आम उपभोक्ता को उस अर्थशास्त्र का ज्ञान नहीं है, जिसके मद्देनजर जीडीपी की विकास दर का आकलन किया जाता है। लेकिन खुशखबरी ऐसी है, जिस पर फिलहाल तालियां बजाई जानी चाहिएं। खुशखबरी की शुरुआत वहां से हुई थी, जब भारत में व्यापार करने की आसानी के मद्देनजर 130 से उछलकर 100वां स्थान हासिल किया गया था। यह किसी का निजी नहीं, बल्कि विश्व बैंक का आकलन था। फिर दुनिया की सबसे बड़ी रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज’ ने 13 लंबे सालों के बाद भारत की अर्थव्यवस्था की रेटिंग में सुधार किया। हालांकि एस एंड पी एजेंसी ने रेटिंग में सुधार नहीं किया, लेकिन अर्थव्यवस्था को ‘स्थिर’ करार दिया। ‘मूडीज’ ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत की विकास दर 6.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है और 2018 में वह 7.5 फीसदी तक जा सकती है। क्या आर्थिक मोर्चे की इस खुशखबरी का स्वागत नहीं किया जाना चाहिए?


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