द्वारका धाम

By: Dec 16th, 2017 12:07 am

गुजरात के अहमदाबाद से लगभग 380 किमी. की दूरी पर स्थित है द्वारका। द्वारका हिंदुओं की आस्था के प्रसिद्ध केंद्र चार धामों में से एक है। जिसे द्वारकापुरी कहा जाता है और सातपुरियों में शामिल किया जाता है। यह वही द्वारका है,जिसे मथुरा छोड़ने के बाद स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपने हाथों से बसाया था। द्वारका आज भी हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए एक महान तीर्थ है। आइए जानते हैं भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका में स्थित उनके धाम के बारे में।

द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास

माना जाता है कि लगभग पांच हजार साल पहले जब भगवान श्री कृष्ण ने द्वारका नगरी को बसाया था, तो उसमें जिस स्थान पर उनका निजी महल यानी हरि गृह था, वहीं पर द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण हुआ। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के अपने धाम गमन करने के पश्चात ही उनके द्वारा बसाई गई द्वारका नगरी भी समुद्र में समा गई थी। लगभग 2500 वर्ष पूर्व उनके प्रपौत्र वज्रनाभ ने निर्माण करवाया था, जिसका कालांतर में विस्तार और जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर के वर्तमान स्वरूप को 16वीं शताब्दी के आसपास का बताया जाता है।

द्वारकाधीश मंदिर की शोभा

वास्तु कला के नजरिए से भी द्वारकाधीश मंदिर को बहुत ही उत्कृष्ट माना जाता है। मंदिर एक परकोटे से घिरा है। मंदिर की चारों दिशाओं में चार द्वार हैं, जिनमें उत्तर और दक्षिण में स्थित मोक्ष और स्वर्ग द्वार आकर्षक हैं। मंदिर सात मंजिला है, जिसके शिखर की ऊंचाई 235 मीटर है।  मंदिर के शिखर पर लहराती धर्म ध्वजा को देखकर दूर से ही श्री कृष्ण के भक्त उनके सामने अपना शीश झुका लेते हैं। यह ध्वजा लगभग 84 फुट लंबी है, जिसमें विभिन्न प्रकार के आकर्षक रंग देखने वाले को मोह लेते हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री कृष्ण की शयामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा है, जो चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। भगवान हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए हैं। यहां इन्हें रणछोड़ जी भी कहा जाता है।

रणछोड़ जी मंदिर- रणछोड़ जी मंदिर गुजरात राज्य के द्वारका नगर में स्थित है। कहा जाता है कृष्ण के भवन के स्थान पर ही रणछोड़ जी का मूल मंदिर है। यह परकोटे के अंदर घिरा हुआ है और सात मंजिला है। इसके उच्च शिखर पर संभवतः संसार की सबसे विशाल ध्वजा लहराती है। यह ध्वजा पूरे एक थान कपड़े से बनती है। द्वारकापुरी महाभारत के समय तक तीर्थों में परिगणित नहीं थी। रणछोड़ जी मंदिर को त्रैलोक्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

ऐतिहासिक उल्लेख- जैन सूत्र अंतकृतदशांग में द्वारवती के 12 योजन लंबे, 9 योजन चौड़े विस्तार का उल्लेख है तथा इसे कुबेर द्वारा निर्मित बताया गया है और इसके वैभव और सौंदर्य के कारण इसकी तुलना अलका से की गई है। रैवतक पर्वत को नगर के उत्तर-पूर्व में स्थित बताया गया है। पर्वत के शिखर पर नंदन वन का उल्लेख है।


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