धर्मवीर भारती : विविधता के साहित्यकार

By: Dec 24th, 2017 12:05 am

डॉ. धर्मवीर भारती (जन्म-25 दिसंबर, 1926 – मृत्यु-4 सितंबर, 1997) आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वह साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी रहे। डॉ. धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ हिंदी साहित्य के इतिहास में सदाबहार माना जाता है। उनका जन्म इलाहाबाद के अतरसुइया नामक मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री चिरंजीवलाल वर्मा और माता का नाम श्रीमती चंदादेवी था। भारती के पूर्वज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के जमींदार थे। पेड़, पौधों, फूलों और जानवरों तथा पक्षियों से प्रेम बचपन से लेकर जीवन पर्यंत रहा। संस्कार देते हुए बड़े लाड-प्यार से माता-पिता अपने दोनों बच्चों धर्मवीर और उनकी छोटी बहन वीरबाला का पालन कर रहे थे कि अचानक उनकी मां सख्त बीमार पड़ गईं। 1939 में उनकी मृत्यु हो गई।

शिक्षा

इन्हीं दिनों पाठ्य पुस्तकों के अलावा कविता पुस्तकें तथा अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का बेहद शौक जागा। इंटरमीडिएट में पढ़ रहे थे कि गांधी जी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। अंततः मामा जी के समझाने-बुझाने के बाद एक वर्ष का नुकसान करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। कोर्स की पढ़ाई के साथ-साथ उन्हीं दिनों शैली, कीट्स, वर्ड्सवर्थ, टॅनीसन, एमिली डिकिन्सन तथा अनेक फ्रांसीसी, जर्मन और स्पेन के कवियों के अंग्रेजी अनुवाद पढ़े। लेखन और पत्रकारिता स्नातक, स्नातकोत्तर की पढ़ाई ट्यूशनों के सहारे चल रही थी। उन्हीं दिनों कुछ समय श्री पद्मकांत मालवीय के साथ अभ्युदय में काम किया। इलाचंद्र जोशी के साथ संगम में भी काम किया। इन्हीं दोनों से उन्होंने पत्रकारिता के गुर सीखे थे। कुछ समय तक हिंदुस्तानी एकेडेमी में भी काम किया। उन्हीं दिनों खूब कहानियां भी लिखीं। मुर्दों का गांव तथा स्वर्ग और पृथ्वी नामक दो कहानी संग्रह छपे। स्नातक में हिंदी में सर्वाधिक अंक मिलने पर प्रख्यात चिंतामणि गोल्ड मेडल मिला। स्नातकोत्तर अंग्रेजी में करना चाहते थे, पर इस मेडल के कारण डा. धीरेंद्र वर्मा के कहने पर उन्होंने हिदी में नाम लिखा लिया। स्नातकोत्तर की पढ़ाई करते समय मार्क्सवाद का उन्होंने धुआंधार अध्ययन किया। प्रगतिशील लेखक संघ के स्थानीय मंत्री भी रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद साम्यवादियों की कट्टरता तथा देशद्रोही नीतियों से उनका मोहभंग हुआ।

शोध कार्य

डॉ. धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध कार्य चल रहा था। साथ ही साथ उस समय कई कविताएं लिखी गइर्ं जो बाद में ठंडा लोहा नामक पुस्तक के रूप में छपी। उन्हीं दिनों गुनाहों का देवता उपन्यास लिखा। साम्यवाद से मोहभंग के बाद प्रगतिवाद : एक समीक्षा नामक पुस्तक लिखी।

कविता

ठंडा लोहा (1952), सात गीत वर्ष (1959), कनुप्रिया (1959), सपना अभी भी (1993), आद्यन्त (1999)

पद्यनाटक

अंधायुग (1954)

कहानी संग्रह

मुर्दों का गांव (1946), स्वर्ग और पृथ्वी (1949), चांद और टूटे हुए लोग (1955), बंद गली का आखिरी मकान (1969)

उपन्यास

गुनाहों का देवता (1949), सूरज का सातवां घोड़ा (1952), ग्यारह सपनों का देश (प्रारंभ और समापन) 1960

निबंध

ठेले पर हिमालय (1958), कहनी अनकहनी (1970), पश्यंती (1969), साहित्य विचार और स्मृति (2003)

आलोचना

प्रगतिवाद : एक समीक्षा (1949), मानव मूल्य और साहित्य (1960)

एकांकी नाटक

नदी प्यासी थी (1954)

निधन

अंततः 4 सितंबर 1997 को नींद में ही मृत्यु को वरण कर लिया।

सम्मान एवं पुरस्कार

हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार – राजस्थान, साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता – दिल्ली, संस्था सम्मान – उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार – संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली, सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान – महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन – राजस्थान, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार – केंद्रीय हिंदी संस्थान – आगरा, राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान – बिहार सरकार।


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