नाट्य जगत के नायाब किरदार केदार

By: Dec 6th, 2017 12:14 am

जीवन ने जो कुछ भी दिया उसे जिंदीदिली के साथ स्वीकार किया। मां के संघर्ष को देखते हुए जीवन में कुछ अलग कर गुजरने की तमन्ना बनी। इसी दौरान रूपेश भीमटा जी से मुलाकात हुई और यहीं से शुरू हुआ उनके रंगमंच का सफर। अगर आज रंगमंच के क्षेत्र में जो कुछ भी हासिल कर पाया हूं, वह सब उन्हीं के आशीर्वाद से संभव हो पाया है…

नाट्य निर्देशन के क्षेत्र में राष्ट्रीय संगीत अकादमी दिल्ली द्वारा देश का सर्वोच्च उस्ताद बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार हासिल करने वाले केदार ठाकुर की कहानी उनके व परिवार के उस संघर्ष की दास्तां को बयां करती है। शिमला जिला की पिछड़ी तहसील कुपवी के चलायण गांव में बिलम सिंह व शांति देवी के घर 1980 में पैदा हुए केदार ठाकुर के गांव का कोई भी शख्स थियेटर की एबीसी तक नहीं जानता था। दूसरी कक्षा में पढ़ते थे केदार ठाकुर कि एक दिन अचानक पिता भरे-पूरे परिवार को छोड़कर दुनिया से रुख्सत हो गए। सभी भाई बहन छोटे ही थे। ऐसे में मां शांति देवी के कांधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आन पड़ी, लेकिन इसे केदार ठाकुर के मां की संघर्ष की गाथा ही कहा जाएगा कि उनके द्वारा किए गए निरंतर संघर्ष की ही वजह से आज सभी अच्छे मुकाम पर हैं। वह कहते हैं कि  हमने डटकर संघर्ष किया है और जिंदगी की आंख में आंख डालकर ही उसे जीने का प्रयास किया है। जीवन के इस संघर्ष में कई कड़वे घूंट पिए, लेकिन कभी किसी भी कार्य को न नहीं कहा। जीवन ने जो कुछ भी दिया उसे जिंदीदिली के साथ स्वीकार किया। मां के संघर्ष को देखते हुए जीवन में कुछ अलग कर गुजरने की तमन्ना बनी। इसी दौरान रूपेश भीमटा जी से मुलाकात हुई और यहीं से शुरू हुआ उनके रंगमंच का सफर। अगर आज रंगमंच के क्षेत्र में जो कुछ भी हासिल कर पाया हूं, वह सब उन्हीं के आशीर्वाद से संभव हो पाया है। रंगमंच की गतिविधियों में आगे बढ़ता रहा। मसलन इसी को जिंदगी का ध्येय मान लिया। स्कूल में भी हमेशा रंगमंच की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा। इसके बाद जब कालेज पहुंचे तो वहां पर योगेश रांटा व श्वेतांग इंतिकूर ने प्रोमोट किया। कालेज के दिनों में रूपेश भीमटा, राजेंद्र शर्मा, जीवन भारद्वाज, भूषण शर्मा व शिवानी कपूर के साथ संकल्प थियेटर ग्रुप में प्रवेश किया। यहां से अपने सफर को आगे बढ़ाते हुए हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान एवं नाट्य अकादमी मंडी के माध्यम से राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली नाट्य प्रशिक्षण में देश के चुनिंदा रंगकर्मियों संग प्रशिक्षण हासिल किया। इस प्रशिक्षण को हासिल करने वाले वह प्रदेश के पहले रंगकर्मी बने। उनके लिए मायानगरी के रास्ते खुले थे, पर उन्होंने हिमाचल में रंगमंच को जीवित बनाने का निर्णय लिया।

32 नाटकों में किया अभिनय

केदार ठाकुर द्वारा अभी तक करीब 32 नाटकों में अभिनय किया गया। जिसमें मेकबेथ, पावर ऑफ डार्कनेस, बालचरितम, राजा मांगे पसीना, टोबा टेक सिंह प्रमुख हैं।

27 नाटकों को निर्देशित किया

वह अब तक 27 नाटक निर्देशित कर चुके हैं। जिनमें गिद्ध, तलधर, डा. फाउस्टस, दि रोबोट एंड दि मोथ, एक्ट्रेस, दि पैरट्स टे्रनिंग,  मरीचिका, फितरती चोर, दादा जी का किल्टा, जलपरी, मीडिया, लाईन-लाईन और लाईन और सबसे बड़ा रुपया मुख्य हैं।

सर्वश्रेष्ठ रंगकर्मियों संग कर चुके हैं काम

25 नाट्य कार्यशालाओं में प्रशिक्षक के रूप में कार्य करने सहित लगभग 40 बाल नाटक मंचित कर चुके हैं। देश के सर्वश्रेष्ठ रंगकर्मियों आलोक चैटर्जी, सत्याव्रत राऊत, सुमन कुमार, टॉम अल्टर व सूर्य मोहन संग काम कर चुके हैं।

इन फिल्मों व टीवी सीरियलों में किया है काम

केदार ठाकुर बॉलीवुड फिल्म मैरीकॉम के साथ ही जीटीवी के सीरियल टाईम बम, गे्रट स्टोरी ऑफ दलाईलामा सहित  शार्ट फिल्म राम भरोसे में काम कर चुके हैं। यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव गोवा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म आंकी जा चुकी है। जिसके तहत उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है।

जब रू-ब-रू हुए…

हिमाचल के लिए मुंबई या दिल्ली जाने पर विचार नहीं किया…

रंगमंच की तरफ  पहला कदम?

राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला लालपानी से रंगमंच के क्षेत्र में पहला कदम रखा और फिर यहीं से शुरू हुआ एक सुहाना सफर।

कोई खास वजह कि आप इस दिशा में चल पड़े?

रंगमंच के क्षेत्र में जाने के आकर्षण का कारण इस विधा की संप्रेषण की ताकत है। यही वजह है कि मैंने इस दिशा में ही अपना सफर शुरू करने की ठानी।

पहली पहचान कहां से मिली और ऐसा कौन सा रोल रहा, जो आपके लिए ही था?

एक रंगकर्मी के रूप में पहली पहचान कालेज समय में किए गए नाटकों से मिली। इसके साथ ही संकल्प थियेटर ग्रुप में भी काम करना शुरू किया। नाटक मृगतृष्णा का देवसोम का चरित्र सबसे पसंदीदा रहा। यह नाटक विख्यात निर्देशक सत्याव्रत राउत के निर्देशन में किया था।

अभिनय यात्रा का सुखद एहसास और जहां भविष्य के विराम नजर आते हैं?

रंगमंच की अभी तक की यात्रा सुखद रही है। हालांकि कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन कहते हैं न कि कठिन परिस्थितियों में खुद को साबित करना ही दृढ़संकल्प होता है। अगर ऐसी परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने के रास्ते कहीं कांटों से भरे नजर आते हैं तो वहां कई बार भविष्य के विराम नजर आते हैं।

अभिनय और निर्देशन के बीच आपकी प्रतिबद्धता व सहजता?

एक अभिनेता के रूप में मंच पर पहला कदम सबसे रोमांचक होता है। प्रत्येक किरदार की अलग-अलग पृष्ठभूमि और उसके साथ पूरी श्रद्धा से तल्लीन होना ही अभिनय की पराकाष्ठा है। बडे़ झूठ को सच की तरह पेश करना ही अभिनय कला का मूल सार है। सत्यता के भ्रम से भविष्य की उड़ान देवसोम के चरित्र से ही उत्पन्न है।

ऐसा कौन सा नाटक है, जिसकी पृष्ठभूमि में आप खुद को खोजते हैं?

स्वदेश दीपक के नाटक कालकोठरी के रजत का चरित्र एक रंगकर्मी के तौर पर खुद को खोजता नजर आता हूं। जबकि बतौर इंसा चरण दास चोर लगता है, प्रभावित करता नजर आता है।

कलाकार को व्यक्तित्व में ओढ़ना या मंच पर यथार्थ बन जाना, किन बातों पर निर्भर करता है?

कलाकारों का व्यक्तित्व वास्तविक जीवन में ओढ़ा हुआ नहीं होना चाहिए। वह सरल हो तो ही उत्तम है। जबकि मंच पर यथार्थ बनकर उभरना ही सफल अभिनय है। मेरे  शब्दकोश में ओढ़ना नही है। न ही अभिनय में और न ही निर्देशन में मेरा औजार आत्मसात करना है न की ओढ़ना।

हिमाचल में रंगमंच को कहां पाते हैं और ऐसे में रंगकर्मी का अस्तित्व?

हिमाचल का रंगमंच संभावनाएं होते हुए भी देश के रंगमंच में कहीं नहीं दिखता है। यह कड़वा है, लेकिन सत्य है। इसकी जिम्मेदारी किसकी है। सरकार के सभी संस्थान जो इसके प्रति प्रतिबद्धता से काम नहीं कर पाए हैं। दूसरी जिम्मेदारी स्वयं रंगकर्मियों की है, जिन्हें अवसर मिल भी जाएं तो वे सिर्फ फीस को ही ध्यान में न रखकर अपना लक्ष्य बनाएं। तभी हम प्रदेश की संभावनाओं से न्याय कर पाएंगे।

भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग से आपकी अपेक्षा या यू कहें कि हिमाचल में रंगमंच को क्या चाहिए?

भाषा एवं संस्कृति विभाग को दृढ़ इच्छाशक्ति से राज्य के रंगमंच के उत्थान पर कार्य करना होगा, ताकि मनोहर सिंह जैसी प्रतिभाओं को सामने लाया जा सके। नहीं तो उनके पास पलायन के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचता है।

आपके पसंदीदा रंगकर्मी और ऐसा कौन सा नाटक है, जिसे दर्शक के रूप में सर्वश्रेष्ठ माना?

मेरे पसंदीदा रंगकर्मी रतन थियाम हैं। उनका नाटक चक्रव्यूह को दर्शक की तरह देखना पसंद है।

कोई ऐसा थियेटर जहां दर्शक के सामने नाटक खुद एक समीक्षा बन जाता है?

कोई भी लोक नाटक हो, वह लोगों के करीब होने के कारण सीधा संप्रेषित होता है। अतः लोकनाटक ही स्वयं समीक्षा भी है।

बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार तक की यात्रा को कैसे देखते हैं?

बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार तक का सफर अथक परिश्रम, विश्वास, रचनात्मक सोच, कठोर अनुशासन व निरंतर संघर्ष से भरा है।

हिमाचल के लिए क्या करना चाहते हैं। यहां के रंगकर्मी जिन्हें आप पसंद करते हैं?

हिमाचल के लिए जो संभव हो सकेगा, वह करूंगा। हिमाचल की खातिर मुंबई या दिल्ली का विचार मन में भी आने नहीं दिया। मौके मिलते रहे, तो अपनी पूरी ताकत हिमाचल के लिए झोंक दूंगा।

कोई सपना। किसी नाटक का डायलॉग जो आपके किरदार की व्याख्या करता हो?

यहां के रंगमंच के लिए जो सपना देखता हूं वह कठिन है, किंतु असंभव नहीं है।  मेरा सपना है कि यहां का युवा पलायन के लिए मजबूर न हो। एक बच्चा था जिसकी टांगे नहीं थी और बनना चाहता था वह एक अभिनेता। कालकोठरी नाटक यह डायलॉग मेरे किरदार की ही व्याख्या करता है।

—कुलभूषण चब्बा, बिलासपुर


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