न्याय मांगे बिटिया

By: Dec 2nd, 2017 12:05 am

(लेखराज, केंद्रीय विश्वविघालय हिमाचल प्रदेश)

आजादी तो पिंजरे में बंद परिंदे को भी चाहिए, फिर महिला तो इनसान है, उसे आजादी क्यों न मिले? दरअसल यह सवाल मेरे मन में तब-तब  उठता है, जब शिमला के कोटखाई में बिटिया से दुष्कर्म के बाद उसकी निर्मम हत्या की रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना मेरे सामने आती है। इसी के साथ एक और सवाल पैदा होता है कि आखिर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? वक्त और मूल्यों में आए बदलाव के साथ कहीं ऐसे भी हालात से सामना हो जाता है, जहां इनसान की शक्ल में भेडि़ए घूम रहे होते हैं। इन भेडि़यों का कोई ठौर ठिकाना नहीं है। वह भेडि़या आपके साथ में बैठा साथी कर्मचारी हो सकता है, बस या मेट्रो में बैठा यात्री हो सकता है, आपका अपना कोई रिश्तेदार हो सकता है या फिर स्वयं आपका कोई अच्छा और विश्वासपात्र मित्र भी। समाज में किस वक्त कौन सा भेडि़या हमला बोल दे, इसकी कोई गारंटी नहीं। केवल समाज ही क्यों, आज तो घर में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। घर में तो सभी अपने होते हैं, जिनसे हम अपनी सुरक्षा की उम्मीद कर सकते हैं। फिर जब घर के भीतर ही किसी महिला पर यौन हमले हो सकते हैं, तो किसी पराए से क्या अपेक्षा की जा सकती है। बिटिया मामले में सुर्खियां तो खूब बनीं, धरने-प्रदर्शन भी कम नहीं हुए, फिर भी न्याय की उम्मीद अब तक काफी फीकी है। हिमाचल प्रदेश के हर कोने से बिटिया को इनसाफ की उम्मीद में लोग बैठे हैं। उम्मीद है कि सीबीआई इन उम्मीदों पर खरा उतरते हुए जल्द से जल्द जांच को अंजाम तक पहुंचाएगी।

 


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