पर्जन्य : हर भाव, हर रस की अभिव्यक्ति

By: Dec 17th, 2017 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

* पुस्तक का नाम : पर्जन्य

* लेखक का नाम : डॉ. आरके गुप्ता

* कुल पृष्ठ : 80

* मूल्य : 150 रुपए

* प्रकाशक : पार्वती प्रकाशन, इंदौर

सुंदरनगर से संबंधित प्रतिष्ठित लेखक डॉ. आरके गुप्ता का कविता संग्रह ‘पर्जन्य’ प्रकाशित हुआ है। इस कविता संग्रह में कुल 57 कविताएं रोचकता के साथ सृजित की गई हैं। इनका प्रथम काव्य संग्रह गुलदस्ता वर्ष 2014 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद वर्ष 2015 में इनका निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ। करीब 60 वर्षों तक जीवन-यापन के दायित्वों में उलझे रहे आरके गुप्ता अब लेखन को काफी समय दे रहे हैं। आलोच्य कविता संग्रह ‘पर्जन्य’ में समेटी गई कविताओं में रसों की अलग-अलग धारा प्रवाहित होती है। कहीं संवेदना का भाव है, तो कहीं निराशा उपजती दिखती है। कहीं व्यवस्था पर चोट है, तो कहीं उसकी खिल्ली उड़ाई गई है। कहीं हास्य-व्यंग्य है, तो कहीं गंभीर चिंतन भी झलकता है। कहीं आस है, तो कहीं परिहास। कुछ कविताओं के विषय विचित्र हैं, लेकिन साथ ही उसमें एक सोच भी झलकती है।

एक सैनिक नामक कविता के माध्यम से शहीदों को आदरांजलि दी गई है। कविताएं आकार में काफी छोटी हैं, पर कवि की सोच व कल्पना का दायरा काफी बड़ा लगता है। साधारण भाषा में लिखी गई कविताएं, लगता है हर किसी को समझ में आएंगी। कविताओं के माध्यम से जो भाव जगाने की कोशिश कवि ने की है, उसका पाठक पर निश्चय ही प्रभाव पड़ेगा। पाठन के दौरान अनुभव होता है कि कवि ने कविताएं लिखते समय जरूर मेहनत की है। अनमोल जीवन नामक कविता में कवि दूसरों के लिए जीने वाले लोगों के जीवन को अनमोल बताते हुए कहते हैं कि जीवन का असल सार यही है। कालजयी कवि नामक कविता में कवि जहां कल्पना की उड़ान भरते दिखते हैं, वहीं सर्वधर्म समभाव की सुंदर कामना भी करते हैं। छींक नामक कविता का विषय विचित्र लगता है, लेकिन इसके माध्यम से कवि यह जतलाने में सफल रहे हैं कि बड़ा हो या छोटा, सभी इससे समान रूप से परेशान होते हैं।

छींक का जहां बिल्ली के रास्ता काटने से साम्य है, वहीं यह डकार व पाद की तरह अद्भुत कृत्य है। काहे नहीं बन जाते राष्ट्रपति नामक कविता में कवि ने इस बात पर कटाक्ष किया है कि राजनेताओं के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की कोई शर्त नहीं है। इसके कारण अयोग्य भी कई बार बड़े पद पा लेते हैं जो कुशल प्रशासन के लिए ठीक नहीं है। इस कविता में कवि ने समान रूप से सभी दलों पर प्रहार किया है।

पेट नामक कविता बताती है कि भले ही आम लोग काम करते-करते थक जाएं और पेट को कोसने लगें,  लेकिन यह एक ऐसा सकारात्मक अंग है जो जगत को सार्थक और मेहनती बनाता है। अच्छे दिन के माध्यम से कवि ने निराशा जाहिर की है और इसकी संकल्पना को सियासी इच्छा से कहीं ज्यादा पवित्र बताने की कोशिश की है। मेरे देश की धरती में भी निराशा का भाव है और जहां कभी हीरे-जवाहरात उगते थे, वहां अब नफरत की खेती शुरू हो जाने को हमारे राष्ट्र के लिए घातक बताया गया है। थूक जैसे घिन्न पैदा करने वाले विषय पर कलम चलाते हुए कवि ने फिर निराशा जाहिर की है। वास्तव में गरीब तो प्यासा ही रहता है, तो उसके यहां थूक कहां से होगा जिसे निगल कर वह चाटने लगे। वास्तव में थूक तो वहां है जहां महंगे मिनरल वाटर की खपत होती है। ऐसे ही लोग निगल कर थूक चाटते हैं अथवा चाट कर थूकते हैं। यहां अमीरों के प्रति नफरत नहीं है, बल्कि उनके ढकोसलों पर कटाक्ष किया गया है। कवि की सीख है कि अपने ही ऊपर थूकने से बचना चाहिए। मां की याद में

कवि ने ममता का महत्त्व बखूबी दर्शाया है। नहीं चाहिए अच्छे दिन के माध्यम से फिर कवि ने निराशा जाहिर की है और अच्छे दिनों के सियासी नारे को जमकर घेरा है। वास्तव में जिस शासन में सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को इस दुनिया से ही उठवा लिया जाता है, उस शासन में अच्छे दिनों की संकल्पना की ही नहीं जा सकती।

…और कटाक्ष यह है कि ऐसे अच्छे दिन नहीं चाहिएं।

इसी तरह ‘पर्जन्य’ में धरती की कोख को जख्मी करने वालों को चेतावनी है कि वे अब बस करें, नहीं तो सृष्टि की पहली संतान पर्जन्य के कोप का सामना करना पड़ेगा। चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ को नया रूप व कलेवर देते हुए कवि ने कविता के रूप में पेश किया है। थोड़ा सा आदमी इनसान को नैतिक सीख देती है, तो हां वही बच्चा एक मजदूरिन मां की लाचारी को दर्शाती हुई संवेदना जगाती है। संजीवनी कविता, सियासत व भगवान के कुत्ते नामक कहायिं भी रोचक व अच्छी लग रही हैं। संग्रह की अन्य कविताएं लिखने में भी मेहनत की गई लगती है।

-फीचर डेस्क


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