बालकृष्ण शर्मा : प्रगतिशीलता के कवि

By: Dec 3rd, 2017 12:05 am

बालकृष्ण शर्मा नवीन (जन्म – 8 दिसंबर, 1897 ई., भयाना ग्राम, ग्वालियर; मृत्यु – 29 अप्रैल, 1960) हिंदी जगत् के कवि, गद्यकार और अद्वितीय वक्ता थे। हिंदी साहित्य में प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन के पिता श्री जमनालाल शर्मा वैष्णव धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ श्रीनाथ द्वारा में रहते थे। वहां शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उनकी मां उन्हें ग्वालियर राज्य के शाजापुर स्थान में ले आईं। यहां से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत उन्होंने उज्जैन से दसवीं और कानपुर से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके उपरांत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, श्रीमती एनी बेसेंट एवं श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने पढ़ना छोड़ दिया। शाजापुर से अंग्रेजी मिडिल पास करके वह उज्जैन के माधव कॉलेज में प्रविष्ट हुए। उनको राजनीतिक वातावरण ने शीघ्र ही आकृष्ट किया और इसी से वह 1916 ई. के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन को देखने के लिए चले आए।

व्यावहारिक राजनीति

सन् 1920 ई. में बालकृष्ण शर्मा जब बीए फाइनल में पढ़ रहे थे, गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन के आह्वान पर वह कॉलेज छोड़कर व्यावहारिक राजनीति के क्षेत्र में आ गए। 29 अप्रैल, 1960 ई. को अपने मृत्युपर्यंत वह देश की व्यावहारिक राजनीति से बराबर सक्रिय रूप से संबद्ध रहे। भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य के रूप में हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार कराने में उनका बड़ा योगदान रहा है। 1952 ई. से लेकर अपनी मृत्यु तक वह भारतीय संसद के भी सदस्य रहे। सन् 1955 ई. में स्थापित राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण कार्य रहा।

व्यक्तित्व

नवीन जी स्वभाव से अत्यंत उदार, फक्कड़, आवेशी, किंतु मस्त तबीयत के आदमी थे। अभिमान और छल से बहुत दूर थे। बचपन के वैष्णव संस्कार उनमें जीवनपर्यंत बने रहे। जहां तक उनके लेखक-कवि व्यक्तित्व का प्रश्न है, लेखन की ओर उनकी रुचि इंदौर से ही थी, परंतु व्यवस्थित लेखन 1917 ई. में गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आने के बाद प्रारंभ हुआ।

पत्रकारिता में भूमिका

गणेशशंकर विद्यार्थी से संपर्क का सहज परिणाम था कि वह उस समय के महत्त्वपूर्ण पत्र ‘प्रताप’ से संबद्ध हो गए थे। 1931 ई. में गणेशशंकर विद्यार्थी की मृत्यु के पश्चात् कई वर्षों तक वह इसके प्रधान संपादक के रूप में भी कार्य करते रहे। हिंदी की राष्ट्रीय काव्य धारा को आगे बढ़ाने वाली पत्रिका ‘प्रभा’ का संपादन भी उन्होंने 1921-1923 ई. में किया था। इन पत्रों में लिखी गई उनकी संपादकीय टिप्पणियां अपनी निर्भीकता, खरेपन और कठोर शैली के लिए स्मरणीय हैं।

कृतियां

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा ने ही कवियों की चिर-उपेक्षिता ‘उर्मिला’ का लेखन उनसे 1921 ई. में प्रारंभ कराया, जो पूरा सन् 1934 ई. में हुआ एवं प्रकाशित सन् 1957 ई. में हुआ। इस काव्य में द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, स्थूल नैतिकता या प्रयोजन स्पष्ट देखे जा सकते हैं। सन् 1930 ई. तक वह यद्यपि कवि रूप में यशस्वी हो चुके थे, परंतु पहला कविता संग्रह ‘कुंकुम’ 1936 ई. में प्रकाशित हुआ। इस गीत संग्रह का मूल स्वर यौवन के पहले उद्दाम प्रणयावेग एवं प्रखर राष्ट्रीयता का है। स्वतंत्रता संग्राम का सबसे कठिन एवं व्यस्त समय आ जाने के कारण नवीन बराबर उसी में उलझे रहे। कविताएं उन्होंने बराबर लिखीं, परंतु उनको संकलित कर प्रकाशित कराने की ओर ध्यान नहीं रहा। लंबे अंतराल के पश्चात् 1951 ई. में रश्मि रेखा तथा अपलक, 1952 ई. में क्वासि संग्रह प्रकाशित हुआ। विनोबा और भूदान पर लिखी उनकी कतिपय प्रशस्तियां एवं उद्बोधनों का एक संग्रह ‘विनोबा स्तवन’ सन् 1955 ई. में प्रकाशित हुआ।

भाषा

ब्रजभाषा नवीन की मातृभाषा थी। उनके प्रत्येक ग्रंथ में ब्रजभाषा के भी कतिपय गीत या छंद मिलते हैं। ब्रजभाषा में नवीन भाव-संवेदना की अभिव्यक्ति का प्रयास कर उन्होंने ब्रजभाषा के आधुनिक साहित्य को समृद्ध किया। उर्मिला का एक संपूर्ण सर्ग ही ब्रजभाषा में है। परंतु उनका ब्रजभाषा मोह खड़ी बोली के परिनिष्ठित प्रयोगों के मध्य आ प्रकट होता है।

काव्य

हिंदी काव्य धारा की द्विवेदी युग के पश्चात् जो परिणति छायावाद से हुई है, नवीन उसके अंतर्गत नहीं आते। राजनीति के कठोर यथार्थ में उनके लिए शायद यह संभव नहीं था कि वैसी भावुकता, तरलता, अतींद्रियता एवं कल्पना के पंख वह बांधते, परंतु इस बात को याद रखना होगा कि उनका काव्य भी स्वच्छंदतावादी (मनोरंजक) आंदोलन का ही प्रकाश है।

पुरस्कार

बालकृष्ण शर्मा नवीन को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन् 1960 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु

बालकृष्ण शर्मा नवीन का निधन 29 अप्रैल, 1960 ई. को हुआ।


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