‘ब्रांड मोदी’ की जीत !

By: Dec 16th, 2017 12:05 am

हिमाचल और गुजरात में चुनाव संपन्न हो चुके हैं। अब 18 दिसंबर को अधिकृत जनादेश सामने आएगा, लेकिन एग्जिट पोल के जरिए जिन अनुमानों के संकेत मिले हैं, वे बेमानी नहीं हैं। लोकतांत्रिक चुनाव में सर्वे और एग्जिट पोल का अपना महत्त्व है। सवाल किए जा सकते हैं कि वोटिंग पूरी होने के बाद तुरंत एग्जिट पोल के अनुमान कैसे दिए जा सकते हैं? लिहाजा हम साफ कर दें कि एक वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर चुनींदा मतदाताओं से बातचीत कर अनुमान तय किए जाते हैं। वे अनुमान गलत भी साबित हुए हैं, लेकिन कई अनुमान सटीक भी रहे हैं। मतदान के बाद के ये अनुमान एक ठोस राजनीतिक विश्लेषण का आधार भी देते हैं। टीवी चैनलों पर जितने भी पोल प्रसारित किए गए हैं, उनका एक साझा निष्कर्ष है कि हिमाचल में भाजपा प्रचंड बहुमत हासिल करती लग रही है और कांग्रेस बहुत पिछड़ सकती है। जनादेश तीन-चौथाई भाजपा के पक्ष में हो सकता है। गुजरात में भी भाजपा 110 से 135 सीटों के बीच जनादेश हासिल कर एक बार फिर सरकार बनाने की स्थिति में लग रही है। यदि गुजरात में भाजपा की 22 सालों तक लगातार सत्ता के बावजूद इस बार भी बहुमत मिलता है, तो वह भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक राजनीतिक उपलब्धि होगी। साबित हो जाएगा कि 2022 तक गुजरात में भाजपा का ही शासन रहेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव भी इसी बीच होंगे, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा आने वाले डेढ़ सालों में अपनी आर्थिक नीतियों और आम आदमी से जुड़े कार्यक्रमों को पूरी शिद्दत से लागू करेंगे। उन्हें मेहनत करना और उनींदा रहना भी आता है। यदि उस स्तर पर भाजपा अपने संगठित और व्यापक काडर के साथ काम करने में कामयाब रहती है, तो 2019 के फाइनल में भी राहुल गांधी की कांग्रेस और तिनका-तिनका विपक्ष कोई मजबूत चुनौती पेश नहीं कर पाएंगे। कमोबेश गुजरात के चुनाव ने साबित कर दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी की ‘हवा’ अब भी बरकरार है। हालांकि पार्टी स्तर पर भाजपा के संदर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता। भाजपा गुजरात में अत्यंत बचाव की मुद्रा में थी। सौराष्ट्र और कच्छ में कांग्रेस की स्पष्ट बढ़त के आसार दिखाई दिए हैं। चुनाव विश्लेषकों का निष्कर्ष है कि अहमदाबाद और सूरत में भाजपा के पक्ष में बंपर वोटिंग के मद्देनजर एक बार फिर बहुमती जीत के आसार हैं। निश्चित तौर पर यह जीत ‘ब्रांड मोदी’ के हिस्से की जीत होगी, क्योंकि चुनावी परिदृश्य प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार और भावुक आह्वानों के बाद ही बदला। अकसर टीवी चैनलों पर भीड़ का एक हिस्सा यह कहते सुना जा सकता था-हम तो सिर्फ मोदी को जानते हैं, लिहाजा वोट उन्हीं के नाम पर पड़ेगा। हिमाचल में भी प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद ही प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया था। बहरहाल 22 साल की सरकार के बावजूद भाजपा का छठी बार गुजरात में सरकार बनाने की संभावना एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक हासिल कहा जा सकता है। अब यह भी माना जाने लगेगा कि गुजरात भाजपा का गढ़ बन गया है। एग्जिट पोल में ऐसे संकेत भी सामने आए हैं कि हार्दिक पटेल और दो अन्य युवा खिलंदड़े पूरी तरह नाकाम साबित हो सकते हैं। करीब 55 फीसदी पटेल वोटरों ने भाजपा के पक्ष में मत दिया है। अगड़ी जातियों में करीब 58 फीसदी, आदिवासियों में करीब 52 फीसदी मत भाजपा को मिलते नजर आ रहे हैं। यानी कांग्रेस ने ‘भानुमती का कुनबा’ जोड़ने की जो कोशिश की थी, वह नाकाम होती लग रही है। हैरानी यह है कि 11-15 फीसदी मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट दिए हैं। पटेलों के आरक्षण का जो मुद्दा राहुल गांधी और युवा खिलंदड़ों ने खूब जोर-शोर से उठाया था, उसके खिलाफ अन्य युवा वर्ग ने भाजपा का समर्थन किया है, ऐसे संकेत पोल में सामने आए हैं। लेकिन 18-25 साल के युवाओं में ज्यादातर ने कांग्रेस को समर्थन दिया है, लेकिन उससे अधिक आयु-वर्ग के युवा भाजपा के साथ रहे। बेशक रोजगार का मुद्दा अहम रहा होगा। इन एग्जिट पोलों से यह भी स्पष्ट होता लग रहा है कि भाजपा ‘अश्वमेध यज्ञ’ की तरह चुनाव लड़ती है, जबकि कांग्रेस को यह चुनावी हुनर सीखना है। एक ही राज्य में लगातार छठी बार सत्ता हासिल करना कोई अटकलबाजी या आंकड़ेबाजी नहीं कही जा सकती। यदि चुनाव नतीजे इसी तर्ज पर आते हैं, तो मानना पड़ेगा कि जीएसटी या ‘गब्बर सिंह टैक्स’ का जुमला असरहीन रहा। प्रधानमंत्री मोदी गुजराती व्यापारियों को यह समझाने में सफल रहे कि जीएसटी ‘घर का मामला’ है, उसे बाद में देख लेंगे और आवश्यक सुधार भी किए जा सकते हैं। यदि चुनाव नतीजे भी ऐसे ही आए, तो यह भी साबित हो जाएगा कि मशरूम खिलाने, चुनावी या फैंसी हिंदू बनने या विकास को पागल करार देने से ही चुनाव नहीं जीते जा सकते। इन मायनों में राहुल गांधी 57 रैलियां करने और करीब 20,000 किलोमीटर की यात्रा करने अथवा 28 बार मंदिरों में दर्शन और पूजा-पाठ करने के बावजूद नाकाम होते लग रहे हैं। इस पर अब उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद गहरा मंथन करना पड़ेगा तथा चुनाव की पूरी रणनीति बदलते हुए अपने सलाहकार भी बदलने होंगे।

 


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