यह नक्शा पर्यटन का नहीं

By: Dec 11th, 2017 12:05 am

हिमाचल में पर्यटन के घौंसले में पलते नशे ने जिन स्थानों को बदनाम किया है, उनमें कसोल का जिक्र चिंता से होने लगा है। अपराध की शरण और बदनाम लोगों की बस्ती बनते पर्यटन के रास्ते, हिमाचल की इन्हीं मंजिलों की शिनाख्त अगर आईबी कर रही है, तो संदिग्ध सैलानियों के वेश पर सतर्क होना लाजिमी है। उत्तर प्रदेश में पकड़े आतंकी की जुबान जो उगल रही है, उसके कारण कसोल की छांव में आशंकाओं का जमावड़ा होता है। इसी तस्वीर के दूसरे हिस्से में अगर देखें तो कसोल अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में ऐसा डेस्टिनेशन बन गया है, जहां क्षमता से अधिक आर्थिकी का दोहन संभव है। बिना किसी योजना-परियोजना विकसित होते हिमाचली पर्यटक स्थलों में उल्लंघन की जिस परिपाटी का नाम कसोल है, उसे इस नजरिए से भी देखना होगा कि प्रदेश में कायदे-कानून को किस हद तक गच्चा दिया जा सकता है। अब जब मामला माननीय हाई कोर्ट के संज्ञान में आया, तो इलाके के साठ होटलों में से 44 हर तरह के दोष की बुनियाद पर खड़े हैं। हम कसोल की होटल बस्ती में अपमानित होते पर्यटन को देख सकते हैं। किस तरह टीसीपी कानून मजाक बन चुका है, इसे भी हम कसोल की अवैध निर्माण गतिविधियों में संलिप्त पाएंगे। हैरानी यह भी कि हिमाचल में पर्यटन के मायने कसोल में लुका-छिपी करते हुए घिनौने मंजर की गवाही बन चुके हैं। यह नक्शा पर्यटन का हो ही नहीं सकता, जो कसोल को वर्तमान संदर्भों में चिन्हित कर रहा है। पुलिस की मानें तो सारे कुल्लू जिला में मादक पदार्थ अधिनियम के तहत दर्ज हो रहे मामलों में दस फीसदी इजाफा हो गया, तो इससे हटकर एक सबूत यह भी कि नौ सौ चौबीस बीघा जमीन पर भांग और चरस की खेती नष्ट कर भी, मलाणा क्रीम का जिक्र अंतरराष्ट्रीय नशे के कुख्यात पन्नों पर होता है। हैरानी यह कि हिमाचल के अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के मानक अफीम, चरस और अन्य नशीले पदार्थ तय कर रहे हैं। इजरायलियों की बढ़ती तादाद में रेव या फुलमून पार्टियों का लब्बोलुआब यही कि पूरे मनोरंजन को जंगल राग बना दे। जाहिर है जहां पर्यटन की स्पष्ट नीति यह सुनिश्चित न करती हो कि प्रदेश के लिए इसकी आवश्यक शर्तें, अधोसंरचना व परिभाषा क्या रहेगी, सारा माजरा केवल लूट बन जाएगा। हो भी यही रहा है। पिछले दशक से पर्यटक स्थल बेआबरू होकर हिमाचली चरित्र का गलत प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान जल, जंगल, घाटी, नदी और हिमाचली परंपराओं का अतिक्रमण भी धड़ल्ले से हुआ। यही वजह है कि जब राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल प्रश्न उठा रहा है, तो हिमाचली आचरण का गुण-दोष सामने आ रहा है। अगर एक पूर्व मंत्री की पत्नी के होटल की मंजिलें किसी तय सीमा का उल्लंघन कर सकती हैं, तो इसका अर्थ स्पष्ट है और यह भी कि शहर एवं ग्राम योजना कानून सिर्फ एक खिलौना बन चुका है। पिछले तीन दशकों से किसी कानून की सबसे अधिक धज्जियां उड़ीं, तो यह टीसीपी अधिनियम का कमजोर पक्ष ही रहा है। नगर नियोजन के पैमाने जिस तरह टूटे, उसी का नतीजा है कि आज नवनिर्माण अपराधी बनकर अपनी जांच करवा रहा है। एनजीटी के राडार पर कुल्लू-मनाली की करीब सत्तरह सौ होटल इकाइयां इस वजह से आई हैं, क्योंकि पर्यटन का मसौदा गुनहगार हो चला है। बाकायदा एक समिति गठित करके इस बात का पता लगाया जाएगा कि पर्यावरण के खिलाफ और बिना वांछित अनुमति के कितने होटल चल रहे हैं। यह अब तक का सबसे कड़ा फरमान है और इसके तहत मानकों की अवहेलना करने वाली होटल इकाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। जाहिर तौर पर कुल्लू-मनाली की तरह ही हिमाचल के शेष पर्यटक स्थलों की तहजीब में आई उच्छृंखलता के खिलाफ निकट भविष्य में कार्रवाई अभियान आगे बढ़ेगा। ऐसे में अगर हिमाचली विकास को भविष्य के आईने में पुख्ता करना है, तो सारे प्रदेश को नगर एवं ग्राम योजना कानून के दायरे में लाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि व्यापारिक या निजी निर्माण के दायरे किसी भी तरह पर्वतीय विकास के मॉडल का उल्लंघन न करें। हिमाचल को एनजीटी व अदालती निर्देशों पर गहन चिंतन करते हुए निर्माण की आचार संहिता को स्पष्ट करते हुए, इस पर अमल करने का संकल्प लेना ही पड़ेगा।


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