राहुल स्वीकार्य, लेकिन डगर कठिन

By: Dec 25th, 2017 12:07 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

वंशवाद के लग रहे आरोपों के प्रति राहुल गांधी सचेत हैं। कांग्रेस ने अपनी प्रासंगिकता खोई है। उसे अभी कठोर परिश्रम करना होगा और लोगों में यह विश्वास जगाना होगा कि वह एक बेहतर विकल्प दे सकती है। नोटबंदी के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी भी देश में स्वीकार्य हैं। लोग सोचते हैं कि भले ही उन्हें कई तरह की असुविधाएं झेलनी पड़ीं, लेकिन भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए कठोर पग उनकी भलाई के लिए ही हैं…

चुनाव के शोर-शराबे में कांग्रेस की निवर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी की भूमिका का मूल्यांकन नहीं हो सका। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुकाबला नरेंद्र मोदी व राहुल गांधी के बीच था, लेकिन मुख्य प्रतिद्वंद्विता कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के बीच थी। यहां सोनिया गांधी प्रासंगिक थीं। सभी मतदान सर्वेक्षकों ने गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की। यह भविष्यवाणी सच साबित हुई है। गुजरात में भाजपा ने 99 तथा कांग्रेस ने 80 सीटें जीती। जीत के अंतर के अलावा कोई हैरानी नहीं हुई। इस चुनाव में जो मुख्य बात नोट की गई, वह है कांग्रेस की अंकतालिका में सुधार। जो पार्टी पिछले कुछ सालों में गुमनामी के साए में खोती जा रही थी, वह एकदम प्रासंगिक हो गई। दोनों दलों के मध्य जीती गई सीटों का अंतर काफी कम हुआ है। इसका मतलब यह है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अर्थपूर्ण टक्कर देने जा रहे हैं। इस बात का श्रेय सोनिया गांधी को जाना चाहिए, जिन्होंने एक बार फिर पार्टी में नई जान डाली है। वर्ष 2004 में जब सोनिया गांधी ने आम चुनाव जीता था, तो संसद के केंद्रीय कक्ष में उभरा परिदृश्य मुझे अभी भी याद है। कांग्रेस के सदस्य चाहते थे कि सोनिया गांधी सरकार का नेतृत्व करें, लेकिन वह ऐसा करने से हिचकिचाती रही। संभव है कि उनके दिमाग में वह दुष्प्रचार घुस गया हो कि वह इटली से हैं। अपने स्तर पर वह इस बात के प्रति सचेत थीं कि उन पर चस्पां इतालवी ठप्पा उनके पुत्र राहुल गांधी की संभावनाओं को बुरे ढंग से प्रभावित कर सकता है। उन्होंने काफी सोच-विचार के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह को आगे कर दिया, क्योंकि उनकी कोई राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा नहीं थी।

मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में 10 वर्ष का कार्यकाल इवेंटलैस रहा। भारत सरकार की मुख्य फाइलें पहले स्वीकृति के लिए सोनिया गांधी के पास जाती थीं, उसके बाद मनमोहन सिंह उन पर हस्ताक्षर मात्र करते थे। सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल सभी प्रकार के निर्णय लेते थे। मीडिया सलाहकार संजय बरुआ ने अपनी किताब ‘दि एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में इस बात की पुष्टि की है। सोनिया गांधी वह आरोप जानती हैं, जो कि उनके खिलाफ लगाया गया था। लेकिन अगर उन्हें अपने पुत्र राहुल गांधी के लिए सीट बचा कर रखनी थी, तो उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। मनमोहन सिंह ने हालांकि इस आरोप को स्वीकार नहीं किया। सोनिया गांधी की हुई आलोचना पर जब उनसे पूछा गया, तो भी उन्होंने मात्र इतना कहा कि भावी पीढ़ी फैसला करेगी। यह सच है कि आज की कांग्रेस के पास सोनिया गांधी की सास इंदिरा गांधी की मुहर है। इसके बावजूद सोनिया गांधी वह शख्स हैं, जिन्होंने पार्टी को संगठित व अविभाजित बनाए रखा। अन्यथा यह कई गुटों में विभाजित हो गई होती। पार्टी के सभी गुटों ने उनका नेतृत्व स्वीकार किया। वह वास्तव में सभी गुटों के लिए मीटिंग प्वाइंट की तरह थीं। पार्टी में उनके नेतृत्व के लिए कोई चुनौती पेश नहीं आई। जिस आसानी से उन्होंने अपने पुत्र राहुल गांधी को अपनी सीट पर विराजमान किया, उससे एक बार फिर से लगता है कि वास्तव में सोनिया ही कांग्रेस पार्टी हैं।

वंशवाद के लग रहे आरोपों के प्रति राहुल गांधी सचेत हैं। उन्होंने खुले रूप से स्वीकार किया है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए कोई दूसरा बढि़या रास्ता हो सकता है। यह भी हो सकता है कि राहुल गांधी के बाद पार्टी में वंशवाद खत्म हो जाए। कांग्रेस के साथ समस्या भी यही है कि यह कभी वंशवाद की सीमा से बाहर नहीं आ पाई। पार्टी में अब वंशवाद के प्रति आसक्ति भी कम होती जा रही है। यह बात सच है कि राहुल गांधी को कुलीन वंश का होने का कोई घमंड नहीं है तथा वह ईमानदारी से अपने पड़नाना जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं। सोनिया गांधी की पुत्री प्रियंका बढेरा का जनता के साथ अच्छा संपर्क है। यह संभवतः इसलिए है कि वह जनता को इंदिरा गांधी की याद दिलाती हैं, जिनके विचारों की कद्र अब भी कांगे्रस में है। यह सभी बातें सत्य हैं, लेकिन कांग्रेस ने अपनी प्रासंगिकता खोई है। उसे अभी कठोर परिश्रम करना होगा और लोगों में यह विश्वास जगाना होगा कि वह एक बेहतर विकल्प दे सकती है। नोटबंदी के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी भी देश में स्वीकार्य हैं। लोग सोचते हैं कि भले ही उन्हें कई तरह की असुविधाएं झेलनी पड़ीं, लेकिन भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए कठोर पग उनकी भलाई के लिए ही हैं। भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर करना कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। सबसे बड़ी समस्या यह है कि पंथनिरपेक्षता अब उतनी आकर्षक अवधारणा नहीं रह गई है, जैसी यह कभी पहले होती थी। लोग अब हिंदुत्व की विचारधारा से प्रभावित होने लगे हैं। वास्तव में आज देश में नम्र हिंदुत्व दिखाई दे रहा है। कांग्रेस जिस चुनौती का आज सामना कर रही है, वह यह है कि उसे यह बताने में कोई लाभ नहीं मिल रहा है कि भारत आज भी लोकतांत्रिक व पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है। ये सभी बातें वर्ष 2019 के आम चुनाव को प्रभावित कर सकती हैं तथा देश सहित कांग्रेस को भी निर्देशित कर सकती हैं।

कांग्रेस की समस्या यह भी है कि जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से उसने पंजाब के अलावा कोई चुनाव नहीं जीता है। गुजरात में भाजपा अपनी सत्ता कायम रखने में सफल रही है। इससे उदारवादी व पंथनिरपेक्ष ताकतों की चिंताएं बढ़नी स्वाभाविक है। भाजपा उत्तरोत्तर मजबूत हो रही है, जबकि कांग्रेस की ताकत में कमी आ रही है। चुनाव के दौरान राहुल गांधी देश भर में घूमे। उनका लोगों के बड़े हुजूम ने स्वागत भी किया। सोनिया गांधी इस अवसर पर उनके साथ नहीं थीं। इसका मतलब यह है कि लोगों ने राहुल गांधी को कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार कर लिया है। राहुल गांधी के आत्म-विश्वास में भी बढ़ोतरी हुई है। वह अब जनता को आत्मविश्वास के साथ संबोधित करते हैं। सोनिया गांधी अपने आप को बधाई दे सकती हैं कि जब वह कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो वहां उनके लिए आम सहमति थी। यह सच है कि उन पर भी वंशवाद का ठप्पा था, लेकिन निर्णयों में कहीं भी तानाशाही तरीके के दर्शन नहीं हुए। राहुल गांधी ने पार्टी कैडर के साथ काम किया है। वह देश भर में कई जगह गए हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जमीन पर बैठे। उन्होंने उन समस्याओं पर चिंतन किया जिनका सामना कांग्रेस को आज करना पड़ रहा है। राहुल को वे असुविधाएं नहीं झेलनी पड़ेंगी, जो आम कार्यकर्ता को झेलनी पड़ती हैं। परंतु उन्हें कांग्रेस के उन मूल्यों का संवर्द्धन करना है जो वह पिछले 150 वर्षों से कायम रखे हुए है। इससे कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए उनका सम्मान बढ़ेगा। यह एक कठिन यात्रा होगी, लेकिन इसे राहुल को तय करना ही होगा, अगर उन्हें ऊंचाई पर पहुंचना है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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