हिमाचली ठूंठ के आदर्श

By: Dec 8th, 2017 12:05 am

कामकाज के सरकारी नखरों में हिमाचली कार्य संस्कृति का वर्तमान दस्तूर हैरान करता है। कुछ इसी तरह का वाकया मंडी जिला के रक्तदानियों के सामने जब पेश आया, तो हिमाचल का वास्तविक चेहरा भी शर्मिंदा हुआ। आचार संहिता के नाम पर लंबी तान कर सो रही कार्य संस्कृति की कामचोरी का खुलासा, एक रक्तदान शिविर के आयोजन प्रस्ताव से हुआ। दरअसल रक्तदान शिविर का आयोजन चुनाव में प्रत्याशी रहे भूपेंद्र सिंह ने रखा था, जिसे स्वास्थ्य विभाग ने ऐन वक्त पर रद्द कर दिया। विभाग के अपने तर्क व विशेषाधिकार रहे होंगे, लेकिन आचार संहिता के नाम पर रक्तदान के खिलाफ निर्णायक होना, मानवता के आधार पर कलंक सरीखा ही है। क्या चुनावी परीक्षा के दौर में डाक्टर और मरीज का रिश्ता खत्म हो सकता है या रक्त की जरूरत ब्लड बैंक को नहीं रहती। यह एक तरह से उस उत्साह के खिलाफ फतवा है, जो समाजसेवा के आदर्श को ऊंचा करता है। क्या किसी प्रत्याशी द्वारा रक्तदान या इस प्रायोजन का शिविर लगाना अपराध जैसा हो सकता है या चुनावी आचार संहिता, सामाजिक निष्ठा को ध्वस्त कर सकती है। रक्तदानियों की वजह से कितनी जिंदगियां बच जातीं, यह अनुमान लगाना स्वास्थ्य विभाग का नैतिक धर्म है। आश्चर्य तो यह कि आचार संहिता के दौरान सबसे अधिक विज्ञापन संदेश अगर आम नागरिक को सुनाई देते हैं, तो ये भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी होते हैं। इस पर चुनाव आयोग भी अपनी हिदायतों को खंगाल कर यह स्पष्ट कर सकता है कि आचार संहिता किसी शिकारी-बाज का पहरा नहीं और न ही यह कोई अघोषित आपातकाल है। यह नागरिक अधिकारों के खिलाफ चस्पां ऐसा कोई पोस्टर भी नहीं कि स्वास्थ्य सेवाओं के नजरिए से किसी शिविर को बाधित कर दे। सबसे बड़ा प्रश्न तो यह भी है कि क्या हिमाचल के अधिकार इन तीन महीनों में पूरी तरह निष्कासित हैं। क्या समाजसेवा पर भी ताला है, तो मंडी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी से यह पूछा जाना चाहिए कि वह दिल से चुनाव अधिकारी हैं या चिकित्सकीय सेवाओं के आदर्श पुरुष। अगर किसी आपातकालीन स्थिति में अधिकतम खून की आपूर्ति करनी पड़े, तो यह महोदय बताएं कि उस समय भी आचार संहिता की घंटी बजाएंगे। यह अति पीड़ा और लज्जा का सबब है कि आचार संहिता को परिभाषित करती हिमाचली कार्य संस्कृति ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारनी शुरू कर दी है। किसी राज्य की आर्थिक, विकासात्मक, सांस्कृतिक, सामाजिक और मानवतावादी सहयोग की हर जरूरत को चुनाव आयोग या कोई अधिकारी बेडि़यों से नहीं बांध सकता। विडंबना यह है कि हिमाचल और यहां के नागरिक वर्तमान दौर में आचार संहिता की प्रताड़ना महसूस कर रहे हैं। कितनी ही परियोजनाओं के पांव बांध दिए गए हैं या सुशासन की आवश्यकताओं पर भी कड़ा पहरा जारी है। आचार संहिता की लंबी अवधि ने विभिन्न सांस्कृतिक समारोहों से जन मनोरंजन की वार्षिक रिवायत को छीन लिया, तो अब सामाजिक भूमिका पर भी शक होने लगा। हिमाचल की अपनी छवि के लिए आदर्शों का ऐसा चुनावी कारावास किसी भी तरह मंजूर नहीं कि जनता की धमनियों को रक्तदान करने से भी रोक दिया जाए। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने रक्तदान शिविर का जो चेहरा कसूरवार माना, वह दरअसल मानवतावादी होने की तासीर है। अगर कोई प्रत्याशी मतदान के बाद अपने प्रशंसकों के बीच खड़ा होकर रक्तदान करना चाहता है, तो इससे बड़ा आदर्श आयोग की निगाहों में और क्या होगा। आचार संहिता किसी सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम को अछूत बना दे, तो यह मानवीय बुनियाद के विरोध में उठाया गया कदम ही माना जाएगा।


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