उरमिग है मीरंग का स्थानीय देवता
मीरंग किन्नौर में सतलुज नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। उरमिग यहां का स्थानीय देवता है। तीन भवन देवता को समर्पित हैं। ये थ्वरिंग, ग्रामंग और शिलिंग में विद्यमान हैं। प्रायः ये खाली होते हैं क्योंकि किले में देवता की तिजोरी रहती है…
मणिमहेश
मणिमहेश चंबा जिले में है, जो एक झील, पवित्र कैलाश पर्वत तथा एक प्राचीन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। शिखर शैली में बना मंदिर हिमाचल प्रदेश के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। लक्ष्मी देवी को यहां महिषासुर मर्दिनी (महषि असुर का वध करने वाली) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनका पीतल का बुत राजा मेरुवर्मन के मुख्य कलाकार गुग्गा द्वारा बनाया गया था। हजारों लोग जन्माष्टमी के 15 दिन बाद इसके पवित्र जल में स्नान करने के लिए इस स्थान की यात्रा करते हैं। इस अवसर पर चंबा से छड़ी यात्रा शुरू होती है।
मार्कंडा
यह बिलासपुर से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। एक विश्वास के अनुसार एक सुरंग मारर्कंडा और ब्यास गुफाओं को जोड़ती है। ब्यास और मार्कंडा ऋषि इस रास्ते से एक- दूसरे के पास आते-जाते थे। यहां एक प्राकृतिक पानी का चश्मा है, जहां विवाहित दंपत्ति इसके पवित्र जल में स्नान करने आते हैं। ऐसा विश्वास है कि इससे बांझपन और बच्चों के रोगों का इलाज होता है।
मीरंग
यह किन्नौर में सतलुज नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। उरमिग यहां का स्थानीय देवता है। तीन भवन देवता को समर्पित हैं। ये थ्वरिंग, ग्रामंग और शिलिंग में विद्यमान हैं। प्रायः ये खाली होते हैं क्योंकि किला में देवता की तिजोरी रहती है। जब कभी भी कोई पवित्र दिन आता है, तो तिजोरी ऊपर लिखित स्थानों में लाई जाती है। इस तिजोरी में 18 मुख हैं, जो चांदी, सोने और पीतल के बने हैं। यह 18 मुख महाभारत के 18 दिन के महान संघर्ष को प्रस्तुत करते हैं।
मनाली
यह कुल्लू से 40 किलोमीटर दूर लेह को जाने वाले राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घाटी के अंत में उत्तर की ओर स्थित है। भू परिदृश्य उत्तेजक और चित्ताकर्षक है क्योंकि इसकी रेखाएं चारों ओर क्षितिज से जुड़ी हैं। हर तरफ बर्फ से ढकी चोटियां, स्वच्छ जल लिए ब्यास नदी एक तरफ नगर के बीच घूमती हुई तथा दूसरी ओर देवदार और चीड़ के वृक्ष, छोटे समतल खेत और फलों के बागीचे दिखाई देते हैं।
मानगढ़
यह सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील में है। यहां एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जिसका संबंध पांडवों से है। यह मंदिर सियालकोट के राजा रसालू ने बनाया था।
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