कन्नौज पर गढ़वाल वंश का भी राज रहा

By: Jan 31st, 2018 12:05 am

गुर्जर प्रतिहार वंश के पतन के पश्चात कन्नौज (कइयों के अनुसार ये राठौर थे)पर कुछ काल के लिए गढ़वाल  वंश का अधिकार रहा, परंतु स्थायी तौर पर ये अपना अधिकार न जमा सके। अन्य राजपूत वंशों में चंदेल, कलचुरि, परमार, तोमर, चौहान तथा चालुक्य थे…

पूर्व मध्यकालीन हिमाचल

स्वयं-भू पुराण से वर्णित एक परंपरा के अनुसार नेपाल पर भी राजा धर्मपाल का आधिपत्य रहा। ऐसा कहा जाता है कि उस विजय के काल में राजा धर्मपाल ने प्रसिद्ध तीर्थस्थान केदार और गोकर्ण की यात्रा की थी। केदारनाथ आज भी हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थान है और गढ़वाल स्थित इस पवित्र स्थान को आज भी लोग आदर भाव से देखते हैं। दूसरा स्थान ‘गोकर्ण’ कहीं ‘भाटगांव’ के समीप भागमती नदी के किनारे वर्तमान नेपाल राज्य में है। इन स्थानों की विजय धर्मपाल की उत्तरी भारत पर विजय की द्योतक है और इसी समय उसने कुरु, मुद्रा और कीरा तथा अन्य पड़ोसी राज्यों पर भी विजय प्राप्त की। ‘गोकर्ण’ के विषय में कुछ विद्वानों का मत है कि यह स्थान नेपाल में भागमती नदी के तट पर है और यहां पर राजा धर्मपाल ने स्नान किया तथा विधिवत पूजा-अर्चना की थी। पाल वंश के पश्चात कन्नौज पर गुर्जर- प्रतिहार वंश के राजाओं का अधिकार हुआ। इन राजाओं में सबसे प्रतिभाशाली राजा नागभट्ट द्वितीय (सन् 805-33) और राजा भोग (सन् 836-62) हुए। नागभट्ट द्वितीय के ग्वालियर अभिलेख से पता चलता है कि राजा ने किरातों (हिमालय के सीमावर्ती भाग में बसने वाली जाति) के प्रदेश पर भी विजय पाई थी। गुर्जर प्रतिहार वंश के पतन के पश्चात कन्नौज(कइयों के अनुसार ये राठौर थे)पर कुछ काल के लिए गढ़वाल  वंश का अधिकार रहा, परंतु स्थायी तौर पर ये अपना अधिकार न जमा सके। अन्य राजपूत वंशों में चंदेल, कलचुरि, परमार, तोमर, चौहान तथा चालुक्य थे, जिनके राज्य बुंदेलखंड, चेदी, मालवा, दिल्ली, अजमेर आदि स्थानों में रहे। इस प्रकर जब 8वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक जहां इन राजपूतों में अपने राज्य स्थापित करने की होड़ लगी थी, वहीं दूसरी ओर पश्चिमी तथा मध्य हिमालय के प्राचीन राज्यों में भी एक बड़ा परिवर्तन और उथल-पुथल हो रही थी। ठीक इसी समय भारत में केंद्रस्थ-सर्वाधिपति (सेंट्रल पावर) राज्य न होने के कारण तथा विदेशियों के आक्रमण और लूट-खसोट के फलस्वरूप एक राजनीतिक परिवर्तन आने लगा। साथ ही साथ आपसी द्वेष भाव तथा जातीय स्वभाव के अनुसार राज्य परिवार के राजकुमारों में स्वच्छंद एवं पृथक राज्य बनाने की लालसा भी घर की गई। इन सभी कारणों के कारण केंद्रीय राज्य की सत्ता छिन्न-भिन्न होने लगी और इसी उथल-पुथल में कई स्वच्छदंता प्रेमी राजकुमार अपने साथ कुछ सैनिकों को लेकर नए राज्य, नए स्थान की खोज में निकल पड़े। कई राजवंशों में जो कि प्राचीनकाल से सत्ताभोगी थे, आपस में ही बंटवारा हो गया और इस प्रकार बड़े-बड़े राज्यों के स्थान पर छोटे तथा स्वतंत्र शासक शासन करने लगे। इस तथ्य की पुष्टि जालंधर- त्रिगर्त राज्य के बंटवारे में भलीभांति हो जाती है। इस आपसी बटवारे के कारण आगे चलकर कई छोटे-छोटे राज्य जैसे गुलेर, जसवां, सिब्बा और दत्तारपुर आदि का जन्म हुआ।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App