कानून या ‘धमकी’ सेना !

By: Jan 20th, 2018 12:05 am

देश के संविधान पर भरोसा नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला नहीं मानेंगे। सेंसर बोर्ड की औकात नहीं है। भाजपा सरकारें राजपूत वोटों के कारण खामोश हैं, लेकिन फिल्म ‘पद्मावत’ पर पाबंदी थोप दी थी, जो असंवैधानिक कर्म था। करणी सेना के कुछ चेहरे सार्वजनिक तौर पर चीख और धमका रहे हैं। क्या अब देश ऐसे ही चलेगा? क्या गुंडे, मवाली, धमकीबाज ही अब देश चलाएंगे? सर्वोच्च न्यायालय ने चार राज्यों-हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात में ‘पद्मावत’ फिल्म पर सरकारी पाबंदी रद्द करते हुए फिल्म के प्रदर्शन को हरी झंडी दे दी है। यही नहीं, सुरक्षा का दायित्व भी राज्य सरकारों के जिम्मे तय किया है। स्थितियां नियंत्रण से बाहर होने पर केंद्र सरकार की मदद ली जा सकती है, लेकिन ‘पद्मावत’ को देश भर के थियेटरों में प्रदर्शित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म पर पाबंदी को संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन भी माना है, जिसके तहत प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता और जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट के बावजूद राजस्थान की करणी सेना के कुछ मवाली चेहरे सरेआम धमकियां दे रहे हैं-जिंदा जला देंगे, कब्रें खुदवा देंगे, सिनेमा हाल में आग लगा देंगे, सिर-नाक और धड़ काट देंगे। यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के सार्वजनिक दृश्य हैं या फिर हम किसी ‘गुंडास्तान’ में आ गए हैं? ‘पद्मावती’ फिल्म का नाम बदल कर ‘पद्मावत’ किया गया है। यह आंखों में धूल झोंकने की कवायद है। ‘पद्मावत’ हिंदी साहित्य की सूफी काव्य-धारा का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है, जिसे मलिक मोहम्मद जायसी ने लिखा था। ‘पद्मावत’ में भी महारानी पद्मावती, बादशाह अलाउद्दीन खिलजी और महारानी के जौहर की कहानी है। तो फिर करणी सेना के ‘धमकीबाज’ उस महान महाकाव्य का भी विरोध क्यों नहीं करते? ‘पद्मावत’ महाकाव्य है, इतिहास-लेखन नहीं है, लिहाजा इतिहास से हटकर कल्पना का पुट उसमें भी होगा। उसका विरोध नहीं है, क्योंकि वह फिल्म की तरह व्यापक नहीं है। सिर्फ यही नहीं, 1988 में ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक दूरदर्शन पर दिखाया गया था। उसके एक एपिसोड में भी महारानी पद्मिनी की कहानी थी। पद्मिनी होगी, तो अलाउद्दीन खिलजी भी होगा। करणी सेना ने उसका विरोध क्यों नहीं किया? कई साल पहले ‘चित्तौड़ की रानी पद्मिनी’ फिल्म बनी थी। उस दौर की प्रख्यात नायिका वैजयंतीमाला ने महारानी का किरदार निभाया था और नृत्य, गीत-संगीत के कई दृश्य फिल्माए गए थे। राजस्थान के राजपूत उस दौर में भी मौजूद होंगे, महारानी पद्मिनी तब भी राजपूतों की मां सरीखी मानी जाती होंगी, उस फिल्म पर पाबंदी क्यों नहीं लगी और मारने-काटने की धमकियां क्यों नहीं दी गईं? दक्षिण भारत में भी पद्मिनी के चरित्र पर फिल्में बनाई जा चुकी हैं। दरअसल यह प्रथमद्रष्टया राजनीतिक खेल लगता है। फिल्म बैन करने वाले चारों राज्यों में भाजपा सरकारें हैं। इस पूरे हंगामे पर प्रधानमंत्री मोदी बिलकुल खामोश रहे हैं। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी फिल्म बैन की गई है। उनके संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी क्यों नहीं आई? यदि फिल्म में इतिहास से छेड़छाड़ की जाती या आपत्तिजनक दृश्य फिल्माए गए होते, तो सेंसर बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट फिल्म-प्रदर्शन की अनुमति क्यों देते? कमोबेश उनके न्याय पर तो भरोसा करना चाहिए और एक बार फिल्म देखनी चाहिए। फैसले और विरोध उसके बाद भी किए जा सकते हैं। सरेआम धमकियां देने वाली करणी सेना क्या देश के कानून और संविधान से भी ऊपर है? दरअसल हमारे देश में विवादास्पद विषयों पर बनी फिल्मों का हिंसक और अलोकतांत्रिक विरोध एक फैशन बन गया है। इस कड़ी में ‘अशोका’, ‘गांधी’, ‘दि लीजेंड ऑफ भगत सिंह’, ‘मंगल पांडे’, ‘जोधा अकबर’, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’, ‘बाजीराव मस्तानी’ आदि फिल्मों के नाम लिए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की है कि यदि न्यायालय को ‘बैंडिट क्वीन’ और ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ सरीखी फिल्मों पर आपत्ति नहीं है और ये फिल्में रिलीज हो सकती हैं, तो फिर ‘पद्मावत’ पर क्या आपत्ति होनी चाहिए? यह फिल्म भी रिलीज क्यों नहीं हो सकती? हाल ही में इंदिरा गांधी और आपातकाल पर बनी फिल्म ‘इंदु सरकार’ का भी भारी विरोध किया गया। इन तमाम हिंसक आयोजनों के पीछे वोटों की राजनीति है। कमोबेश ‘धमकीबाज’ भीड़ इतिहास और कल्पनात्मक सृजन में फर्क तो करना सीखे। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ फिल्म को ही पाबंदी से मुक्त नहीं किया, बल्कि एक संवैधानिक संस्था के तौर पर सेंसर बोर्ड की हैसियत भी स्थापित की है। बीते कुछ अरसे से सवाल किए जा रहे थे कि यदि सेंसर बोर्ड द्वारा पास किए जाने पर भी किसी फिल्म पर राजनीतिक कारणों से पाबंदी चस्पां की जाए, तो ऐसे में सेंसर बोर्ड के क्या मायने रह जाते हैं? सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी व्याख्या भी कर दी है। दरअसल ‘धमकीबाज’ लोगों को अब यह समझ लेना चाहिए कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के मौजूदा युग में फिल्मों का विरोध बेमानी है, क्योंकि फिल्म तो लोगों के पास पहुंच चुकी है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App