बेधड़क इस क्षेत्र में उतरें

By: Jan 24th, 2018 12:07 am

सुरेंद्र लिहाण अग्रणी मौनपालक  इच्छी, कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

मौनपालन में करियर से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने सुरेंद्र लिहाण से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश…

मधुमक्खी पालन में करियर का क्या स्कोप है?

मौनपालन में बड़ी संभावनाएं हैं। हिमाचल सरकार अगर मार्केटिंग और शहद का समर्थन मूल्य घोषित कर दे, तो इस कारोबार से हजारों युवा जुड़ेंगे। स्वरोजगार का यह बहुत ही बेहतर विकल्प है। इससे जुड़कर युवा लाखों रुपए कमा सकते हैं।

इस फील्ड में उतरने वाले युवाओं के लिए कितना पढ़ा- लिखा होना जरूरी है?

मैट्रिक पास युवा यह कारोबार कर सकते हैं। इसकी सबसे पहली शर्त यह है कि दौड़-धूप की क्षमता होनी चाहिए। हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान तक जाना अनिवार्य होता है। जैसे-जैसे आप इस फील्ड में उतरते जाएंगे, वैसे- वैसे आपका अनुभव भी बढ़ता जाएगा और आमदनी भी।

क्या मौनपालन में कोई विशेष कोर्स किए जा सकते हैं?

प्रदेश में जगह-जगह हार्टिकल्चर और खादी ग्रामोद्योग के जरिए ट्रेनिंग होती है। सबसे जरूरी प्रैक्टिकल नॉलेज का होना है। बिना प्रैक्टिकल नॉलेज के इस क्षेत्र में सफल हो पाना संभव नहीं है।

आमदनी इस क्षेत्र में कितनी होती है, सालाना या मासिक?

आमदनी निश्चित नहीं है, यह मौसम और फूल की पैदावार पर निर्भर है, लेकिन इतना तय है कि 80 से 100 बॉक्स वाला व्यवसायी आसानी से परिवार चला सकता है।

इस व्यवसाय के  विभिन्न हिस्से क्या हैं और उनमें रोजगार की क्या संभावनाएं हैं?

शहद के चार मुख्य सीजन हैं। अभी सरसों चल रहा है। इसके अलावा सफेदा,लीची और कांगड़ा जिला का  मल्टी (कई सारे फूलों का शहद एक साथ) होता है। अमूमन  ये सभी फूल पर निर्भर हैं, फिर भी मल्टी को लोग खूब पसंद करते हैं। हिमाचल सरकार इसे सहेजे, तो इसमें रोजगार की बड़ी संभावनाएं हैं।

जो युवा इस फील्ड को चुनना चाहते हैं, उनमें क्या विशेष गुण होने चाहिए?

यात्रा करने की क्षमता होनी चाहिए, क्योंकि सीजन बदलते ही माइग्रेशन करनी पड़ती है। इसके लिए फुल टाइम देना पड़ेगा। कोई इसे साइड बिजनेस की तरह अपनाना चाहता है, तो वह उसकी भूल होगी।

मौनपालन में  किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

शहद की मार्केटिंग नहीं हो पाती। दिन-रात की कड़ी मेहनत के बाद हासिल शहद को निजी कंपनियों को सस्ते दाम में बेचना पड़ता है। हिमाचल से ही राजस्थान तक फारम को ले जाने में हजारों रुपए माइग्रेशन पर खर्च हो जाते हैं। हिमाचल सरकार आज तक शहद का न्यूनतम मूल्य तक तय नहीं कर पाई है।

कोई नई जानकारी जो आप पाठकों से साझा करना चाहते हों?

पहले हाथ से मधुमक्खियों को फीडिंग करनी पड़ती थी,लेकिन अब हाइटेक फीडर आ गए हैं। शहद निकालने की मशीनें भी आधुनिक हैं। इससे खर्च जरूर बढ़ता है,लेकिन आसानी होती है। सबसे जरूरी यह कि नए कारोबारी उत्तर प्रदेश कतई न जाएं ,क्योंकि वहां अब लूटपाट ज्यादा है।

जो युवा मौनपालन में करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए प्रेरणा संदेश के साथ कोई टिप्स जो आप देना चाहें?

बेधड़क इस व्यवसाय को अपनाएं। नौजवान मेरा यकीन करें,इस कारोबार में यदि वे एक लाख रुपए का निवेश करते हैं,तो घाटे की स्थिति में भी सवा लाख वापस जरूर मिलेगा।

– जीवन ऋषि, मटौर


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