लकीरों से बाहर सरकार-3

By: Jan 6th, 2018 12:05 am

इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल में भाजपा सरकार भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक बेडि़यों से बाहर निकल कर अपने सोच के दायरे का विस्तार करना चाह रही है। हिमाचल की छवि भी जिस लकीर पर खड़ी है, उससे बाहर खींचने और सींचने की जरूरत है। मसलन प्रदेश के प्रवेश द्वारों के साथ-साथ हर शहर, पर्यटन व धार्मिक स्थल के प्रवेश को आकर्षण के साथ पेश करना होगा। नगर निकायों की भूमिका में पर्यटन की अहमियत बढ़ाते हुए, नागरिक सुविधाओं में इजाफा करने की मांग पूरी करनी होगी। शहरी विकास के मायनों और शहरीकरण की व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन की जरूरत है। हम केवल नगर निकाय बना देने से शहरीकरण की जरूरतें पूरी नहीं कर सकते, अलबत्ता शहरी खाके में एक मॉडल का गठन करना होगा। शहरी विकास की परिधि में गांव एवं नगर योजना कानून में भारी बदलाव की आवश्यकता है। अगले दो-तीन दशकों की योजना-परियोजना में समूचे हिमाचल का पूर्ण नियोजन आवश्यक हो जाता है। इसके लिए घाटियों की ओर तथा सड़कों के छोर पर नव निर्माण प्रतिबंधित करना पड़ेगा या कुछ दूरी पर ही इसकी अनुमति देनी होगी। प्रदेश में वाहनों के बढ़ते दबाव को देखते हुए कम से कम छह ट्रांसपोर्ट नगर स्थापित करके सड़कों के किनारे वाहन वर्कशाप तथा इसी प्रकार की गतिविधियों को व्यवस्थित करना होगा। नेरचौक, बरमाणा, गगल, बीबीएन, परवाणू, कुल्लू-मनाली, ऊना तथा कालाअंब जैसे स्थानों पर परिवहन नगरों की स्थापना आवश्यक हो चुकी है। इसी तरह कुछ शहरी विकास परियोजनाओं को दो-तीन शहरों के क्लस्टर के रूप में विस्तार देना होगा। उदाहरण के लिए सोलन-शिमला के बीच कर्मचारी नगर का विकास करके राजधानी की भीड़ कम की जा सकती है, जबकि कुछ कार्यालय, अदालतें तथा आवासीय बस्तियां स्थापित करके यातायात गतिविधियां भी सीमित की जा सकती हैं। इसी तरह के कर्मचारी नगर धर्मशाला-पालमपुर, मंडी-सुंदरनगर, नादौन-हमीरपुर के बीच स्थापित किए जा सकते हैं। प्रदेश के हर गांव की महत्त्वाकांक्षा शहरी जीवन शैली को अंगीकार कर रही है और यह प्रति व्यक्ति आय में हो रही वृद्धि के रूप में प्रकट हो रही है। ऐसे में एक साथ सारे प्रदेश को कम से कम आधा दर्जन शहरी विकास प्राधिकरणों के माध्यम से नियोजित किया जा सकता है। इनके माध्यम से सार्वजनिक परिवहन सेवाओं, सीवरेज सुविधाओं, आधुनिक बाजारों, आवासीय बस्तियों, रज्जु मार्गों तथा नागरिक सुविधाओं का नया रोड मैप तैयार होगा। प्रदेश के हर शहर में लैंड बैंक स्थापित करने की आवश्यकता इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि विकास या तो अतिक्रमण की खाल है या नियमों की अनदेखी का घालमेल बन चुका है। हर शहर में खुली या सार्वजनिक जगह घट रही है, अतः भूमि बैंक स्थापित करके अगले कुछ दशकों का खाका सुदृढ़ करना होगा। हर शहर की चारों दिशाओं में कम से कम चार सामुदायिक मैदान विकसित करके इनका उपयोग व्यापारिक, सांस्कृतिक, सम्मेलनों तथा धार्मिक समारोहों के लिए हो पाएगा। शहरी भूमि बैंक बनाने के लिए शहरी निकायों का विस्तार आवश्यक हो जाता है। अगर पालमपुर नगर परिषद के वर्तमान आकार को कम से कम बीस किलोमीटर दायरे तक फैला दें, तो इसकी सीमा में आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों की जमीन पर भूमि बैंक भी एक बड़ा रूप ले लेगा। शहरी नालों का चैनेलाइजेशन अगर कुछ व्यापारिक-बैंकिंग संस्थानों के साथ मिलकर करें, तो अतिरिक्त जमीन उपलब्ध होगी और इस तरह बैंकिंग स्क्वायर, पार्किंग कम शॉपिंग कांप्लेक्स या मनोरंजन पार्क स्थापित हो सकते हैं। हिमाचल के प्रशासनिक शहरों में बिखरे कार्यालयों को संयुक्त परिसरों में स्थानांतरित करते हुए उपलब्ध जमीन का भूमि बैंक के तहत इस्तेमाल हो सकता है। सरकारी संपत्तियों की देखरेख व इनका विकास विभागीय न होकर अगर राज्य एस्टेट अथारिटी के तहत किया जाए, तो निश्चित रूप से वर्तमान ढांचे का सदुपयोग करते हुए भविष्य के लिए किफायती कदम उठाए जा सकते हैं।


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