लोहड़ी और इसकी कथा

By: Jan 7th, 2018 12:05 am

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है।  यह देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके, रीति-रिवाज से मनाया जाता है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर इस त्योहार का उल्लास रहता है। रात में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए जाते हैं…

ऐसे मनाते हैं लोहड़ी का उत्सव

लोहड़ी के शाम को जब सूरज ढल जाता है तो घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। महिला और पुरुष सज-संवर कर अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। क्योंकि अग्नि ही इस पर्व के मुख्य देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहुति भी अलाव में चढ़ाई जाती है।

और सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं।  यह पंजाबियों के मुख्य त्योहारों में से एक है।

सुंदर मुंदरिए।

तेरा कैन बेचारा,

दुल्ला भट्टी वाला,

दुल्ले धी ब्याही,

सेर शक्कर आई,

कुड़ी दे बोझे पाई।

कुड़ी दा लाल पटारा, हो

यह मकर-संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। इस त्योहार का सीधा संबंध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है। सूर्य  आग व शक्ति के कारक हैं, इसलिए इनके त्योहार पर अग्नि की पूजा तो होनी ही है। किसान इसे रबी की फसल आने पर अपने देवों को प्रसन्न करते हुए मनाते हैं।

लड़कियां निम्न गीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं

पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी हाथी

उत्ते जौं तेरे पुत्त पोत्रे नौ!

नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई

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टेर नी मां टेर नी

लाल चरखा फेर नी!

बुड्ढी सांस लैंदी है

उत्तों रात पैंदी है

अंदर बट्टे न खड़काओ

सान्नू दूरों न डराओ!

चारक दाने खिल्लां दे

पाथी लैके हिल्लांगे

कोठे उत्ते मोर सान्नू

पाथी देके तोर! सान्नू

****

कंडा कंडा नी कुड़ीया

कंडा सी

इस कंडे दे नाल कलीरा सी

जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी,

पा माई पा

काले कुत्ते नू वी पा

काला कुत्ता दवे वधाइयां

तेरियां जीवन मझियां गाईयां,

मझियां गाईयां दित्ता दुध,

तेरे जीवन सके पुत्त,

सक्के पुत्तां दी वदाई,

वोटी छम छम करदी आई।

यदि अपेक्षाकृत लोहड़ी नहीं मिलती या कोई लोहड़ी नहीं देता तो लड़कियां भी अपनी नाराजगी गीत द्वारा इस प्रकार प्रदर्शित करती हैं…

साड़े पैरां हेठ रोड, सानूं छेती-छेती तोर

साड़े पैरां हेठ दहीं असीं मिलना वी नईं।

साड़े पैरां हेठ परात सानूं उत्तों पै गई रात

जैसे पंजाब में प्रायः बोलियां गाने का प्रचलन है,उसी प्रकार लोहड़ी पर भी रिश्ते दारों को निशाना बनाकर बोलियां कहीं जाती हैं जैसे मां, बाप, नाना, नानी इत्यादि से लोहड़ी लेने का लोहड़ी की बोलियां जैसे गीत गाए जाते हैं।

क्यों उड़ती है खिचड़ी पर गुड्डी

मकर संक्रांति पर्व का इंतजार केवल दान-पुण्य के लिए ही नहीं होता, बल्कि गजक-मूंगफली और पंतग उड़ाने के लिए भी होता है। क्योंकि इस दिन उन्हें दिल खोलकर पतंग उड़ाने का मौका जो मिलता है। बड़े-बूढ़े भी इस दिन बच्चों को पतंग उड़ाने से रोकते नहीं है। उत्तर भारत में पंतग को गु्ड्डी कहते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि इस पर्व पर पतंग उड़ाने का रिवाज क्यों हैं।

पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक

पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है, संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वे शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है।

नई सोच और शक्ति

पतंग उड़ाने से दिल खुश और दिमाग संतुलित रहता है, उसे ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इनसान को नई सोच और शक्ति देता है इस कारण पुराने जमाने से लोग पतंग उड़ा रहे हैं।

सूरज की रोशनी के लिए

सर्दी के दिनों में सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है इस कारण भी लोग पतंग उड़ाते हैं। ऐसा माना जाता है मकर संक्रांति के दिन से सूरज देवता प्रसन्न होते हैं। इस कारण लोग घंटों सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाते हैं, इस बहाने उनके शरीर में सीधे सूरज देवता की रोशनी और गर्मी पहुंचती है, जो उन्हें सीधे तौर पर विटामिन डी देती है और खांसी, जुकाम से बचाती है।


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