वर्ष 2017 : साहित्य पर शिथिलता हावी

By: Jan 7th, 2018 12:05 am

-डा. सुशील कुमार ‘फुल्ल’

–गतांक से आगे…

हर वर्ष खुशवंत सिंह की याद में आयोजित होने वाले कसौली लिट फेस्ट में भी हर साल खास-खास लोग ही भाग लेते हैं, जबकि इसमें हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर आदि प्रांतों से भी सृजनकर्मियों को आमंत्रित किया जाना चाहिए। इसमें हिमाचल साहित्य अकादमी एवं प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से भी लेखकों की भागीदारी हो सकती है। हिमाचली लेखकों को एक बड़ा मंच मिल सकता है। केंद्रीय साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा भी कभी-कभार साहित्यिक कार्यक्रम यहां-वहां आयोजित होते हैं, लेकिन कभी कोई विशाल लेखक सम्मेलन आयोजित नहीं करवा पाया। शिमला के गेयटी थियेटर में साहित्यिक एवं रंगमंचीय आयोजनों की धूम वर्ष भर चलती रही, लेकिन इसकी आहट चंबा, कांगड़ा, मंडी, सिरमौर तथा अन्य जिलों तक भी पहुंचनी चाहिए। वर्ष 2017 में भी शिमला में पुस्तकों का लोकार्पण, संस्थाओं द्वारा एक-दूसरे की पीठ थपथपाना, लिखना-लिखवाना जारी रहा, जो शिमला की जीवंतता को रेखांकित करता है। प्रदेश में अन्य स्थानों पर भी साहित्यिक संस्थाएं गतिशील रहीं, परंतु मैं व्यक्तिगत रूप से यह महसूस करता हूं कि अधिकतर शिथिलता व्याप्त रही। फिर भी फेसबुक पर कुछ लोग अधिक सक्रिय रहे, कागज पर कम। समाचार पत्रों के रविवारीय पृष्ठों में भी ज्यादा उछलकूद दिखाई नहीं दी, क्लासिक हो गई कहानियों का पुनर्प्रकाशन ही हावी रहा। हां, जनसत्ता ने रविवारी सत्ता तथा दिव्य हिमाचल ने प्रतिबिंब के माध्यम से अपने रूप-स्वरूप को बनाए रखा। कुछ और भी अपवाद हो सकते हैं, लेकिन अधिकांशतः उदासीनता ही हावी रही। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर ही लेखक कुंदन बनते हैं। चंडीगढ़ में आयोजित पंजाबी प्रगतिशील संघ का वार्षिक सम्मेलन भी वर्ष की उपलब्धि रहा। इसमें हिमाचल से भी जनवादी एवं प्रगतिशील लेखकों ने सक्रिय भाग लिया। ‘शिखर’ ने अपना वार्षिक सम्मेलन इस बार पालमपुर में आयोजित किया, जिसमें मुरारी शर्मा और गौरीनाथ को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर शिखर पत्रिका का नया अंक भी वितरित किया गया। वर्ष 2017 में ही ‘रचना’ का साहित्यकार ज्ञान कोष विशेषांक, ‘सेतु’ तथा इरावती के अंक भी उल्लेखनीय रहे। बाणेश्वरी अपनी अदा से निरंतर निकल रही है। हिमप्रस्थ, हिमभारती, सोमसी, विपाशा पत्रिकाओं ने भी देश-प्रदेश के लेखकों को निरंतर प्रोत्साहित किया है। सन् 1992 में स्थगित कर दी गई पत्रिकाओं के लिए अनुदान योजना को हिमाचल कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी ने पुनः चालू किया है, जिससे कतिपय पत्रिकाओं को संजीवनी मिलेगी। हिमाचली लेखकों की किताबें तो कुछ न कुछ हर वर्ष छपती हैं और इस वर्ष भी संस्कृति, कथा, लोककथा, उपन्यास, कविता आदि की छिटपुट पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, परंतु कोई खास बवंडर पैदा करने में सक्षम नहीं दिखीं। हां, स्थानीय स्तर पर परस्पर स्तुति-प्रस्तुति से ही लोग संतुष्ट हो गए, परंतु यह भी निश्चित है कि समय पाकर इनका मूल्यांकन भी होगा। अभी तो सृजन की छटपटाहट ही जान पड़ती है। इस वर्ष में भी प्रकाशन सबसे बड़ी समस्या रहा है, क्योंकि प्रकाशक कविता प्रकाशन के लिए खासकर, दूसरी विधाओं के लिए आमतौर पर, सहयोग राशि मांगने लगे हैं। आशा करनी चाहिए कि हिमाचल में भी कभी कोई प्रकाशन संस्थान जन्म लेगा, जो नए-पुराने लेखकों की धरोहर बचाने में प्रयत्नशील होगा। या जुगाड़ में ही सृजनात्मकता अंतिम सांस लेगी? दिसंबर 2017 में वरिष्ठ कवि, विनम्र इनसान तेज राम शर्मा का परलोक गमन सृजनकर्मियों को उदासी से भर गया।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App