वाई-फाई छोडि़ए, लाई-फाई लीजिए

By: Jan 13th, 2018 12:02 am

आईआईटी छात्र सोलंकी की तकनीक से सौ गुना फास्ट चलेगा इंटरनेट आईआईटी बांबे और आईआईआईटी हैदराबाद में रोबोट के साथ खेलने वाले इंजीनियरिंग के छात्र सोलंकी रिसर्च की दुनिया में अलग ही कारनामा कर दिखाया है। साल 2012 में सोलंकी ने व्यक्तिगत प्रोप्रायटरशिप वाले बिजनस का पंजीकरण करवाया, जो लाइट फिडेलिटी (लाई-फाई) तकनीक वाले क्षेत्र में काम करने वाली थी। आज के समय में इंटरनेट रेडियो वेव्स के जरिए चलता है और वाई-फाई इन वेव्स का इस्तेमाल डाटा ट्रांसमिट करने में करता है या इंटरनेट स्पीड बढ़ाने में। लाई-फाई ऐसी तकनीक है, जो डाटा ट्रांसमिशन को सपोर्ट करता है या प्रकाश का इस्तेमाल कर इंटरनेट की स्पीड बढ़ाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के प्रोफेसर हेराल्ड हास ने 2011 के टेड ग्लोबल टॉक में इस अविष्कार के बारे में जानकारी दी थी। यह तकनीक नेटवर्क, मोबाइल हाई-स्पीड कम्युनिकेशन के लिए एलईडी बल्ब का इस्तेमाल करती था। इसमें सबसे अनूठी बात यह है कि लाई-फाई के जरिए इंटरनेट स्पीड वाई-फाई की तुलना में 100 गुनी ज्यादा तेज हो जाएगी। विएलमन्नी रिसर्च एंड डिवेलपमेंट (इंडिया) के फाउंडर एवं सीईओ सोलंकी ने कहा, जब मैं लाई-फाई तकनीक की जांच-परख कर रहा था तो मैंने इसे बड़ा ही रोमांचक पाया। मैंने इस पर एक दोस्त के साथ काम करना शुरू किया और मुझे बड़ा अच्छा परिणाम मिला। 2013 की गर्मियों तक सोलंकी ने इस तकनीक के प्रोटोटाइप पर काम करना शुरू कर दिया। उन्हें उम्मीद थी कि इस क्रांतिकारी तकनीक को काफी समर्थन मिलेगा। 27 वर्षीय सोलंकी ने कहा, मैं लाइट के जरिए डाटा ट्रांसमिट करने में सफल हो गया और शुरू में मैंने सोचा कि हमें किसी लाइटिंग कंपनी के पास जाना चाहिए, क्योंकि इस तकनीक में एलईडी बल्ब शामिल था। हालांकि किसी ने भी इसमें रुचि नहीं दिखाई। तब मैं फंड जुटाने निवेशकों के पास पहुंचा, पर निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में सोलंकी ने विभिन्न कंपनियों में प्रोडक्ट कंसल्टिंग की नौकरी करनी शुरू की। 2014 में उन्हें इस्तोनिया में बुल्डइट हार्डवेयर कंपनी में काम करने का मौका मिला। उन्होंने कहा, यहां उनके आइडिया को पंख लगे, उन्होंने कुछ पैसे जुटाए और अपने प्रोडक्ट को इंप्रूव किया और फिर से निवेशकों से संपर्क साधा।  2015 की गर्मियों तक सोलंकी भारत वापस आ गए, क्योंकि वह देश में अपनी आरएंडडी टीम बनाना चाहते थे। सोलंकी ने कहा, इस्तोनिया छोटा सा देश है और वहां इंजीनियरिंग से जुड़े संसाधन काफी कम थे। 2015 के अंत तक और 2016 के शुरुआत में हमें यूरोपीय निवेशकों से फंड मिला और कुछ क्लाइंट बनाने में भी हम सफल रहे। यह तकनीक कैसे काम करती है इस पर विएलमन्नी ने दो अलग-अलग डिवाइस बनाए। एक डिवाइस इंडोर के लिए था और एक आउटडोर के लिए। इंडोर डिवाइस में एक एक्सेस प्वाइंट और एक डोंगल होता है। लाई-फाई एक्सेस प्वॉइंट भी वाई-फाई की तरह ही होता है, जिसमें राउटर होता है। सोलंकी ने कहा, हम लाई-फाई एक्सेस प्वाइंट में लाइट के सोर्स के पास प्लग लगाते हैं, यानी जहां एलईडी होता है। राउटर को एलईडी और एलईडी ड्राइवर के बीच प्लग किया जाता है। हमारे पास एक यूएसबी डोंगल भी होता है, जिसके जरिए लैपटॉप, डेस्कटॉप या स्मार्ट डिवाइस से भी कनेक्ट किया जा सकता है। आउटडोर के लिए कंपनी के पास अलग डिवाइस होता है। सितंबर, 2017 में विएलमन्नी ने एयरक्राफ्ट इंटिरियो एक्सपो बोस्टन में प्रोडक्ट का सॉफ्ट लांच किया। इसी साल से विएलम्नी के इस प्रोडक्ट में लोगों की रुचि बढ़ने लगी और भारतीय बाजार से भी इसको लेकर लोग रुचि दिखाने लगे हैं।


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