सिरमौर का रेणुका क्षेत्र है जमदग्नि ऋषि की क्रीड़ा स्थली

By: Jan 3rd, 2018 12:05 am

जिला सिरमौर का पवित्र स्थान रेणुका उनकी क्रीड़ा स्थली रही है, जहां वह अपनी माता रेणुका की गोद में पले-बढ़े। रेणुका गंधर्व कन्या थी, जिसका विवाह जमदग्नि ऋषि के साथ हुआ। उनकी कर्मस्थली रेणुका के नाम से जानी गई…

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यदि किसी प्रकार रस्सा अपवित्र हो जाए, तो अपवित्र करने वाला बकरे की बलि देता है। उत्सव वाले दिन रस्सा एक दुर्गम स्थल पर बांध दिया जाता है। फिर चुने गए वेदा जाति के व्यक्ति को नहला-धुला कर, उसकी देवता के रूप में पूजा कर के  जलसे के रूप में बाजों-गाजों के साथ एक लकड़ी की पीढ़ी पर बिठा दिया जाता है, जो श्रस्से से बांध दी जाती है। इसको एक अन्य रस्से से पकड़कर रखा जाता है। ठीक समय आने पर पुजारी के इशारे पर उस रस्सी को, जिससे पीढ़ी पकड़ी गई हो, काट दिया जाता है। संबंधित व्यक्ति पीढ़ी में बैठा हुआ बग्गड़ के रस्से के साथ लुढ़कता चला जाता है। जहां से पीढ़ी छोड़ी जाती है, वहां पुजारी और कुछ अन्य व्यक्ति होते हैं। बाकी दर्शक और वेदा व्यक्ति के संबंधी रस्से के निचले किनारे पर खड़े होते हैं और वे यह सब कुछ देखते रहते हैं। यदि रस्सा टूट जाए या संबंधित व्यक्ति गिर जाए तो वह यमलोक भी जा सकता है। तब भी वह देवता करके पूजा जाएगा और यदि वह ठीक-ठीक रस्से से दूसरे सिरे पर पहुंच जाए, तब भी उसकी देवता के रूप में पूजा की जाती है। उसे मंदिर में ले जाया जाता है और धन-धान्य से संपन्न कर दिया जाता है। भुंडा उत्सव की उत्पत्ति के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिलती है। कई लोग इनका संबंध परशुराम पूजा से जोड़ते हैं, तो कई काली देवी की पूजा से। यह उत्सव कुंभ की भांति 12 साल के बाद मनाया जाता है।

भुंडा उत्सव और परशुराम : महर्षि परशुराम का स्थान आदि काव्य रामायण व तुलसीकृत रामचरितमानस के महत्त्वपूर्ण पात्रों में सर्वोपरि है। महर्षि अत्यंत क्रोधी एवं घुमक्कड़ एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के योगी थे। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्र जमदग्नि ऋषि, पुत्र परशुराम के कर्म स्थल माने जाते हैं। जिला सिरमौर का पवित्र स्थान रेणुका उनकी क्रीड़ा स्थली रही है, जहां वह अपनी माता रेणुका की गोद में पले- बढ़े। रेणु का गंधर्व कन्या थी, जिसका विवाह जमदग्नि ऋषि के साथ हुआ। उनकी कर्मस्थली रेणुका के नाम से जानी गई। इस स्थान पर जल स्रोतों के दूर होने से देवी रेणुका को पानी लेने दूर जाना पड़ता था। उधर, ऋषि को पूजा के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती थी। अतः विलंब होने पर उनका क्रोध बढ़ता गया। रेणुका के लौट आने पर उन्होंने परशुराम का वध करने को कहा। पिता की आज्ञा से माता का वध करने के पश्चात परशुराम ग्लानी से भरे वन- वन भटकते हुए घने वनों में ही रम गए। शतद्रु (सतलुज) नदी के किनारे उन्हें निरंकुश शासकों के हाथों पीडि़त प्रजा के कष्टों का अनुभव हुआ। उन्हें अपनी माता को दिए वचन की भी स्मृति थी, जिसमें उन्होंने पृथ्वी से अपने शत्रु हैहय वंश को नष्ट करने का प्रण लिया था।


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