अध्यात्मिक विकास को रॉकेट जैसा संवेग चाहिए

By: Feb 3rd, 2018 12:10 am

लोगों को मनचाही चीज इसलिए नहीं मिलती कि वे उसकी कामना करते हैं, बल्कि इसलिए मिलती है कि वे अपनी जिंदगी के साथ सही चीजें करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी में जो भी चाहता है, चाहे वह आध्यात्मिक हो या भौतिक, उसे वह चीज सिर्फ इसलिए नहीं मिल जाती क्योंकि वह उसकी कामना करता है, बल्कि इसलिए मिलती है कि वह उसे पाने के लिए सही दिशा में काम करता है। इच्छाएं तो सिर्फ दिशा तय करती हैं। अगर मुझे पहाड़ पर चढ़ना है तो मुझे उसी रास्ते पर चलना होगा, किसी और रास्ते पर चलकर मैं पहाड़ नहीं चढ़ सकता। इच्छाएं सिर्फ आपको सही दिशा दे सकती हैं, लेकिन ये आपको वहां पहुंचा नहीं सकतीं। कैसे रॉकेट छोड़े जाते हैं, आपने तो देखा होगा। छोड़े जाने से पहले वे ढेर सारा शोर करते हैं, गर्मी पैदा करते हैं, पर कहीं नहीं जाते। इस शोर करने में ही वे सैकड़ों टन ईंधन फूंक देते हैं। उसके बाद थोड़ी सी गति होती है और फिर देखते ही देखते वह उड़नछू हो जाता है। लेकिन जब वे तैयारी कर रहे होते हैं तो इस दौरान उसमें ईंधन जल रहा होता है, मान लीजिए हजारों गैलन तेल हर घंटे फुंक रहा होता है। वास्तव में यह इससे कहीं ज्यादा होता है, मैं सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूं। अगर एक हजार गैलन की अपेक्षा इसमें नौ सौ गैलन ईंधन डाला जाए तो यह यूं ही जल कर खत्म हो जाएगा। जब एक हजार गैलन तक ईंधन जलाना होता है तो वे इसकी दर दो हजार गैलन ईंधन कर देते हैं। जब दो हजार गैलन ईंधन जल रहा होता है तो वह उसकी दर दो हजार गैलन से ज्यादा कर देंगे, क्योंकि तभी वह छूटेगा। दरअसल, किसी भी प्रक्रिया में एक चीज जड़ता होती है और दूसरी गति। जड़ता आती है पुराने बोझ या वजन की वजह से। लेकिन जब आप पुराने बोझ से ज्यादा जोर लगा देते हैं तो उसमें गति होने लगती है। एक बार जब गति शुरू हो जाती है तो फिर उसमें वेग आने लगता है। जब वजन में गति आ जाती है तो विज्ञान की भाषा में इसे संवेग कहते हैं। यह संवेग अपने आप में एक तोहफा है। अब यह पुराना बोझ एक तरह से मदद करने लगता है, क्योंकि अगर वजन नहीं होता तो संवेग भी नहीं होता। तो जो चीज एक समस्या थी, वही अब सहायक हो गई है।

मुझे गति पकड़ने में पच्चीस साल लगे

मैं जब अपनी जिंदगी की ओर मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगभग ढाई या तीन महीने की उम्र से अपनी जिंदगी का हर दिन याद है। उसी समय से हर चीज मुझे बताती थी कि मुझे क्या करना चाहिए, लेकिन मैं इतना स्मार्ट था कि सुनता ही नहीं था। मेरे विचार और तर्क खुद को इतना स्मार्ट समझते थे कि ये किसी की सुनना ही नहीं चाहते थे। इसलिए चीजें पच्चीस सालों तक टलती गईं। इस दौरान मेरे साथ जो भी घटित हुआ, उसे मैंने अपने तर्कों और दलीलों के खांचे में बैठाने की कोशिश की और जो चीजें मेरे खांचे में नहीं बैठीं, उन्हें मैंने खारिज कर दिया। उस समय मेरे साथ कई चीजें घटित हुईं। आज जब मैं मुड़कर उनकी तरफ देखता हूं तो मुझे समझ में आता है कि तब हर चीज मुझे एक ही दिशा में ढकेलती थी, लेकिन मैं उन्हें अपने तर्कों की कसौटी पर जांचने की कोशिश करता था। जब वे उन कसौटियों पर खरी नहीं उतरती थीं तो मैं उन्हें ‘यह अच्छी नहीं, वह अच्छी नहीं’ कह कर खारिज कर दिया करता था। पच्चीस साल लग गए मेरे भीतर कुछ गति आने में, एक संवेग हासिल करने में।

आश्रम की गतिविधियों का उद्देश्य

आश्रम में कुछ लोग ऐसे होंगे जो बिल्कुल गुलामों के मालिक जैसे लगेंगे। वे आपको लगातार बताते रहते होंगे कि आपको क्या करना चाहिए। अगर आप उन्हें देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि उन्हें खुद ही नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं, फिर भी वे हरदम आपको हिदायत देते रहेंगे। जब ये लोग आपसे कुछ कहते हैं तो आप सहज रूप से उस पर अमल करते हैं। ऐसा क्यों? क्या वे सही हैं या आप गलत हैं? नहीं, आप सही हैं, फिर भी वे अपनी जगह हैं। यही सबसे बड़ा फर्क है। आपको जो दिया जाता है, उसे आप करते हैं। आज आप आश्रम की रसोई में कुछ कर रहे हैं, कल वे आपको अभिलेखागार (आर्काइव्स) में लगा देंगे। अभिलेखागार में आप बेहतरीन काम कर रहे होंगे, लेकिन वे आपको वहां से निकाल कर टॉयलेट की सफाई में लगा देंगे। ऐसा लगता है कि वह आपके साथ बदले की भावना से काम करवा रहे हैं। हालांकि वे यह सब किसी बदले की भावना से नहीं करवा रहे, बल्कि आश्रम की रचना ही इस मकसद से हुई है कि आपको कहीं एक जगह बसने या टिकने न दिया जाए। तो मैं चाहता हूं कि आप आश्रम की व्यवस्था के पीछे छिपे मतलब को समझें और इस जगह का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाएं।

आग को भड़कने दें

जानने की आग में जलना अच्छा है, क्योंकि अगर आपमें जानने की आग नहीं होगी तो आप आगे नहीं बढ़ेंगे। तो आप जान लें कि एक रॉकेट की तरह जब यह जले तो इसे ठंडा न होने दें। इसे और जलने दें। इसे आपको उस सीमा तक जलाना होगा, जहां वह बल पैदा हो सके, जो आपके पुराने बोझों से ज्यादा हो और तभी उसमें गति आएगी। और जब गति आएगी तो आपके बोझ संवेग पैदा करेंगे। अगर आपमें पर्याप्त संवेग पैदा हो गया तो यह किसी भी बाधा को पार कर जाएगा। इसे रोकिए मत, इसे होने दीजिए। यह उस आग को बुझाने का नहीं, बल्कि इसे और भड़काने और ज्यादा भड़काने का वक्त है।          -सद्गुरु जग्गी वासुदेव


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App