अभी दूर है समावेशी विकास का लक्ष्य

By: Feb 7th, 2018 12:05 am

ललित गर्ग

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

चालू वित्त वर्ष में आर्थिक क्षेत्र में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन इन सब स्थितियों के बावजूद मोदी एवं जेटली देश को स्थिरता की तरफ ले जाते दिखाई पड़ रहे हैं। लेकिन कटु सत्य यह भी है कि हमारा देश समावेशी विकास के मामले में आज भी कई विकासशील देशों से काफी पीछे है। अंतरराष्ट्रीय समूह ऑक्सफेम ने दावोस में हुए विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन से ठीक पहले जो समावेशी विकास सूचकांक जारी किया, उसमें चीन, ब्राजील और रूस तो हमसे आगे हैं ही, हम पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पीछे हैं…

भारत भविष्य की आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहा है और उस दिशा में आगे बढ़ भी रहा है। लोकसभा में प्रस्तुत किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में देश की अर्थव्यवस्था का जो नक्शा प्रस्तुत हुआ है, वह इस मायने में उम्मीद की छांव देने वाला है। सकल विकास वृद्धि दर के मोर्चे पर भारत तेजी से प्रगति करने वाले देशों के समूह की अगली पंक्ति में खड़ा हुआ है। चालू वित्त वर्ष में आर्थिक क्षेत्र में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन इन सब स्थितियों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली देश को स्थिरता की तरफ ले जाते दिखाई पड़ रहे हैं। लेकिन कटु सत्य यह भी है कि हमारा देश समावेशी विकास के मामले में आज भी कई विकासशील देशों से काफी पीछे है। अंतरराष्ट्रीय समूह ऑक्सफेम ने दावोस में हुए विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन से ठीक पहले जो समावेशी विकास सूचकांक जारी किया, उसमें चीन, ब्राजील और रूस तो हमसे आगे हैं ही, हम पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों से भी पीछे हैं। भारत बासठवें नंबर पर है। विकास का यह पैमाना लोगों के रहन-सहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरणीय स्थिति, आय के संसाधन जैसे पहलुओं को शामिल कर तैयार किया जाता है। निश्चित तौर पर भारत का आम आदमी आज भी वैसा उन्नत एवं आदर्श जीवन नहीं जी रहा है, जैसा हमसे पिछडे़ एवं विकासशील इकसठ देश जी रहे हैं। आम जनता के कल्याण की कसौटी पर भारत दुनिया के इकसठ विकासशील देशों से पीछे होकर यदि दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनता है, तो ऐसे शक्तिशाली होने पर कई सवाल खड़े होते हैं?

मोदी के शासनकाल में यह संकेत बार-बार मिलता रहा है कि हम विकसित हो रहे हैं, हम दुनिया का नेतृत्व करने की पात्रता प्राप्त कर रहे हैं, हम आर्थिक महाशक्ति बन रहे हैं और दुनिया के बड़े राष्ट्र हमसे व्यापार करने को उत्सुक है। ये घटनाएं एवं संकेत शुभ हैं। आर्थिक सर्वेक्षण में इन शुभ स्थितियों की बाधाओं को दूर करने के संकेत भी दिए गए हैं। देश की विकास दर को लेकर वैश्विक वित्तीय संस्थाओं की सकारात्मक टिप्पणी से भी नोटबंदी के मामले में सरकार को राहत मिली है। विदेशी निवेश बढ़ने और शेयर बाजार के लगातार बढ़ते ग्राफ से भी उम्मीदें बंधी हैं। उम्मीद की इन किरणों के बीच अंधेरे भी अनेक हैं। सबसे बड़ा अंधेरा तो देश के युवा सपनों पर बेरोजगारी एवं व्यापार का छाया हुआ है। सेवा क्षेत्र में भारत को चीन, ब्राजील व फिलीपींस आदि से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। इसके बावजूद इसमें इजाफे की तरफ रुझान बनना हमारी मौजूदा शक्ति का परिचायक कहा जाएगा। हमारी सबसे ज्यादा चिंता कृषि, ग्रामीण व रोजगार सृजन के क्षेत्र में होनी चाहिए।

ऑक्सफेम ने समावेशी विकास सूचकांक जारी करने के साथ-साथ एक और रिपोर्ट जारी की, जो दुनिया में बढ़ती विषमता की तरफ संकेत करती है। भारत के संदर्भ में यह रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। इसमें बताया गया है कि भारत में अमीरों और गरीबों के बीच खाई जिस तेजी से बढ़ रही है, वह बहुत ही चिंताजनक है। पिछले साल देश में कुल उत्पन्न हुई संपत्ति का तिहत्तर फीसद हिस्सा मात्र एक फीसद लोगों के पास चला गया, जबकि उससे पहले के साल में यह आंकड़ा अट्ठावन फीसद का था। भारत में विषमता बढ़ने की रफ्तार विश्व के औसत से ज्यादा है, जबकि भारत का राजकाज एक ऐसे संविधान के तहत चलता है, जिसके अंतर्गत एक संतुलित एवं समतामूलक समाज की बात कही गई है। कुल मिलाकर देखें तो आज भारत के एक फीसद अमीरों के पास जितनी संपत्ति है, वह चालू साल के केंद्र सरकार के बजट के बराबर है। क्या मोदी सरकार भी अमीरों को ही प्रोत्साहन देने एवं अमीरी को ही बढ़ाने वाली है। शायद यह स्थिति भारत को दुनिया की आर्थिक महाशक्ति तो बना दे, लेकिन देश में आर्थिक असंतुलन भी बढे़गा। गरीब अधिक गरीब होता जाएगा, देश की कुल संपत्ति के सत्ताइसवें हिस्से से सवा अरब लोगों की जरूरतें कैसे पूरी होंगी?

मोदी सरकार के जन हितैषी होने का दंभ भरने के बावजूद हालत यह है कि हर साल लाखों लोग इलाज के अभाव में मर जाते हैं। ऐसे लोगों की तादाद बहुत बड़ी है, जो गंभीर बीमारियों की सूरत में जान बचाने का खर्च नहीं उठा सकते। दूसरी ओर, मुट्ठी भर लोगों के लिए आलीशान पांच सितारा अस्पताल हैं। यही हाल शिक्षा का है। अब सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए रेल में भी तत्काल एवं प्रीमियम जैसी सुविधाएं बढ़ा रही है, यह खाई ही है अमीरी एवं गरीबी के बीच। यह समावेशी विकास के मामले में भारत का ग्राफ ऊपर चढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है। संयुक्त राष्ट्र की हर साल आने वाली मानव विकास रिपोर्ट भी इसी हकीकत की याद दिलाती है। समस्या यह है कि हमारे नीति नियामक इस सच्चाई से आंख चुराते रहे हैं या बडे़ सपनों की दुनिया में छोटे लोगों की जिंदगी को नजरअंदाज किया जा रहा है। इन बुनियादी सवालों के बीच भारत दुनिया में नई उम्मीद का कारण तो बन रहा है। इसी कारण से वह आर्थिक महाशक्ति भी बन ही जाएगा। फिच की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में सबसे अहम भूमिका उसके बढ़ते बाजार की है। यूरोपीय देशों में वित्तीय संकट का मुख्य कारण है उनके बाजारों के आकार में आया ठहराव। इसके विपरीत भारत का बाजार बढ़ता ही जा रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में आर्थिक वृद्धि दर 6.75 प्रतिशत रहेगी, जबकि 2018-19 यह सात से साढ़े सासत फीसद तक पहुंच सकती है।

जीएसटी आने के बाद अप्रत्यक्ष करदाता 50 प्रतिशत बढ़ गए हैं, जबकि नोटबंदी से वित्तीय बचत को प्रोत्साहन मिला है। महंगाई न बढ़ने को बीते वित्त वर्ष की उपलब्धि बताया गया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की महंगाई दर 3.3 थी, जो पिछले छह वित्तीय वर्षों में सबसे कम है। दूसरी अहम बात है लोगों की बढ़ती आमदनी। दो दशक पहले भारत का मध्यम वर्ग करीब 12 से 20 प्रतिशत था जो अब 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है। भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने का सबसे बड़ा निमित्त है शेयर बाजार से लेकर जिंस बाजार तक विदेशी कंपनियों को बेहतर रिटर्न मिलना। यही कारण है कि वे भारत में व्यापार एवं निवेश को काफी तवज्जो दे रही हैं। उनका तो हाल यह है कि नीतियों को अनुमति मिलने से पहले ही वे निवेश के लिए तैयार हैं। इन स्थितियों में नए साल में आर्थिक क्षेत्र का आसमान साफ लग रहा है। महंगाई ने भी यू-टर्न ले लिया है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App