कर अदायगी के बंधन

By: Feb 8th, 2018 12:05 am

विकास की वैतरणी पार करने में उम्मीदों-उत्साह के साथ-साथ वित्तीय जोखिम उठाने का सहयोग भी चाहिए। अमूमन हिमाचली कर अदायगी में जनसहयोग की परंपरा से हटकर माहौल व्याप्त है, इसलिए सारे कामकाज की पद्धति में प्रदर्शन की कीमत सरकारी खजाना अदा करता है। सियासी तौर पर इसे अशुभ संकेत माना जाता है कि सरकारी सुविधाओं और राज्य की अभिलाषा में जनता का अंशदान भी जुड़े। इसलिए राज्य का बजट केवल सरकारी खजाने की आमदनी में भारी भरकम ऋण उठाने की शक्ति है। यही मर्ज धीरे-धीरे स्थानीय निकायों में नागरिक व्यवहार की पैरवी बन चुका है। ऐसे में हिमाचल बजट से पूर्व नगर निगम धर्मशाला ने अपने अस्तित्व के विराम से बाहर झांकने के लिए शहरी निवासियों के फर्ज का अलख जगाया है। जाहिर है यह नागरिक संस्कृति बदलने का संकल्प और भविष्य को छूने का स्वाभाविक इरादा है। अब तक टैक्स फ्री माहौल में नगर निगम से यह आशा की जाती रही है कि विकास और सुविधाओं का विस्तार बिना जनसमर्थन और वित्तीय सहयोग के पूरा होता रहे, मगर अब चुनौतियां अपने व्यावहारिक तख्त पर, नए आर्थिक संसाधन जुटाने की कसरत कर रही हैं। इसे महज राजनीतिक दृष्टि से देखेंगे, तो यह तुलना शुरू हो सकती है कि पूर्व सरकार ने शहर को अपनी उदारता से नवाजा, जबकि अब अस्तित्व की चुनौती सामने खड़ी है। हमारा मानना है कि नगर निगम में शामिल इलाकों में आवश्यक सुविधाओं के लिए राज्य की दूरगामी योजना बजटीय समर्थन के बिना दिक्कतें बढ़ेंगी। नगर निगम को अपना आर्थिक खाका पुख्ता करना चाहिए और इसके लिए कर अदायगी के हर चरण को जरूरत के अनुसार जन समर्थन चाहिए, लेकिन इसके दायरे में शामिल क्षेत्रों को सर्वप्रथम मूलभूत सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। इन ग्रामीण इलाकों को शहरी आलोक में देखने से पूर्व स्ट्रीट लाइट, अंडरग्राउंड डस्टबिन, टायलट, पक्की तथा वाहन चलने योग्य गलियों, सेक्टर के हिसाब से सामुदायिक भवन, मैदान व मनोरंजन सुविधाओं के बिना कर लगाने का तर्क व्यावहारिक नहीं होगा। दूसरी ओर बाहरी वाहनों पर अगर टैक्स लगता है, तो इसका उपयोग पार्किंग सुविधाओं पर होना चाहिए। नगर निगम इसे ग्रीन टैक्स की श्रेणी में रखेगा, तो आमदनी से शहरी व्यवस्था जुड़ेगी। शराब व फिल्म शो पर लग रहा टैक्स सीधे पर्यटन उद्योग से कुछ मांग रहा है, अतः देखना यह होगा कि नगर निगम अपनी भूमिका में पर्यटक को किस तरह सहूलियतें देता है। इसमें दो राय नहीं कि नगर निगम को अपनी आय बढ़ाने के सेतु खड़े करने पड़ेंगे, लेकिन जनता के सामने सुनहरी पिक्चर बनानी तथा जमीनी तौर पर सजानी पड़ेगी। नगर निगम चाहे, तो क्रिकेट एसोसिएशन के साथ मिलकर हर आगंतुक से कुछ कर वसूल कर इसका इस्तेमाल क्रिकेट स्टेडियम के साथ एक बड़ी पार्किंग के निर्माण में कर सकता है। शहर में निवेशक को आवश्यक भूमि उपलब्ध कराने के लिए भूमि बैंक की स्थापना करे, तो आमदनी का कटोरा भरेगा। इसके लिए विभिन्न योजनाओं व हिमाचल सरकार की मदद से नालों का चैनेलाइजेशन करके भू-बैंक का क्षेत्रफल बढ़ाया जा सकता है। शहरी संपत्तियों पर वैध व अवैध कब्जों का मूल्यांकन करके जुर्माना या नई दरों से कर या किराया हासिल नहीं होता, तो सामान्य जनता, नगर निगम को केवल राजनीतिक इकाई ही मानेगी, जबकि इसे सामाजिक व सांस्कृतिक इकाई के रूप में स्थापित करना होगा। प्रदेश के शहरी विस्तार को समझने के लिए धर्मशाला नगर निगम की व्यवस्था एक मॉडल तभी बनेगी, जब सरकार भी इस उत्तरदायित्व को समझेगी। राज्य केवल लाल लकीर खींच कर मंडी व सोलन जैसे शहरों में नगर निगम बनाने की प्रक्रिया से हाथ नहीं खींच सकता। शहरी आबादी के नक्शे पर आर्थिक संसाधनों की ऊर्जा विकसित की जा सकती है, बशर्ते योजनाओं को स्वावलंबन की प्राथमिकता से जोड़ें। उदाहरण के लिए धर्मशाला नगर निगम दायरे के तहत अगर प्रस्तावित आईटी पार्क को जोड़ा जाए, तो आमदनी का एक हिस्सा शहरी व्यवस्था को सुधार सकता है। इसी तरह पर्यटन की विभिन्न परियोजनाएं व मनोरंजन की अधोसंरचना शहरी आय में वृद्धि करेगी। हिमाचल की कर प्रणाली में सुधारों का एक श्रम जाहिर तौर पर नगर निगम धर्मशाला कर रहा है। ऐसे में जनता इस संदेश की क्या रसीद देती है, इस पर आगामी सफर निर्भर करेगा।


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