चंदेल वंशीय राजपूत ने डाली कहलूर की नींव

By: Feb 21st, 2018 12:05 am

शुतुद्रु राज्य के छिन्न-भिन्न होने के बाद शिवालिक क्षेत्र बहुत से छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया, लेकिन यह अवस्था सदा नहीं रह सकती थी और मालवा से आए एक चंदेल वंशीय राजपूत ने स्थिति से लाभ उठाकर सतलुज घाटी में कहलूर राज्य की नींव डाली…

बिलासपुर

इतिहास : यह राज्य सतलुज नदी की निचली घाटी में दाहिने भाग के साथ लगती शिवालिक की पहाडि़यों में था। कहलूर राज्य की स्थापना से पहले इस क्षेत्र की क्या राजनीतिक स्थिति थी, ऐतिहासिक सामग्री के अभाव के कारण स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनत्सांग (भारत में 630-644 ई.) ने पूर्वी पंजाब तथा साथ में लगते पहाड़ी क्षेत्रों के राज्यों में जालंधर, कुल्लू तथा शतुद्रु का उल्लेख किया है। उसने जालंधर राज्य की पूर्व से पश्चिम तक की लंबाई 1000 ली. अर्थात 167 मील और उत्तर से दक्षिण तक की चौड़ाई 800 ली. यानी 133 मील का वर्णन किया। यदि लंबाई कोे ठीक माना जाए तो दक्षिण-पूर्व की ओर का शतुद्रु (और अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार सरहिंद) गया। उसने कुल्लू से शतुद्रु की दूरी दक्षिण की ओर 700 ली. अर्थात 117 मील लिखी है। कुल्लू से शतुद्रु तक की यात्र निश्चय ही कहलूर (बिलासपुर) होता हुआ गया होगा।  कनिंघम ने भी ह्वेनत्सांग की यात्रा को जो मानचित्र खींचा है, उसमें भी उसका मार्ग कहलूर क्षेत्र से दिखाया गया है। कनिंघम ने सरहिंद को ह्वेनत्सांग का शतुद्रु माना है। ह्वेनत्सांग ने शतुद्रु का घेरा 2000 ली. लिखा था, जो 333 मील होता है। यदि सरहिंद को शतुद्रु का मुख्य नगर माना जाए और सतलुज नदी का उत्तर पश्चिमी सीमा, तो इसका उत्तरी भाग शिमला की पहाडि़यों तक रहा होगा। दक्षिण में अंबाला तक और फिर अंबाला से शिमला तक का क्षेत्र इसके अंतर्गत रहा होगा। कनिंघम के अनुसार यदि इस परिधि को ध्यान में रखा जाए, तो शिमला से पश्चिम- दक्षिण की ओर की पहाड़ी रियासतें जिसमें कहलूर-बिलासपुर भी थीं, शतुद्रु के भाग रहे होंगे। हरमन गोतेज ने भी यही विचार व्यक्त किया कि बिलासपुर में सतलुज नदी के किनारे षण्मुखेश्वर (बिलासपुररी विकृति खनेसर) मंदिर (अब गोविंदसागर के तले आ गया है) सातवीं शताब्दी के शतुद्रु राज्य से ही संबंधित हो सकता है। बिलासपुर में ही आठवीं शताब्दी के पूवार्द्ध रंगनाथ मंदिर की नींव के पत्थर भी इस क्षेत्र की प्राचीनता की पुष्टि करते हैं। कब और कैसे इस राज्य का हृस हुआ कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है कि 11वीं शताब्दी के प्रथम दशक में जब उत्तर पश्चिमी की ओर से आए आक्रमणकारियों ने पंजाब के मैदानों को रौंद डाला, तो उसका प्रभाव उन राज्यों पर भी पड़ा, जिनके क्षेत्र शिवालिक तथा साथ में लगते मैदानी भाग में विस्तृत थे। केंद्रीय सत्ता क्षीण होती गई और सामंत उभरते गए। इस स्थिति में नए राजपूत राज्य अस्तित्व में आने लगे। शुतुद्रु राज्य के छिन्न-भिन्न होने के बाद यह क्षेत्र बहुत से छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया, लेकिन यह अवस्था सदा नहीं रह सकती थी और मालवा से आए एक चंदेल वंशीय राजपूत ने स्थिति से लाभ उठाकर सतलुज घाटी में कहलूर राज्य की नींव डाली।


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