नई सुबह के इंतजार में सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र

By: Feb 15th, 2018 12:05 am

राजेश शर्मा

लेखक, रोहड़ू, शिमला से हैं

आज देश के कई राज्यों ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में काफी तरक्की कर ली है, जिससे वहां सुशासन की सीढि़यां आसान हुई हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश सरकार के अधीन सूचना प्रौद्योगिकी का एक अलग विभाग है, जो इस दिशा में विकास हेतु कार्य कर रहा है, परंतु यह भी आम आदमी देख रहा है कि इस मोर्चे पर प्रगति कितनी हुई है…

देश-प्रदेश में बार-बार डिजिटल इंडिया की बात दोहराई जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार डिजिटल इंडिया का महत्त्व बता चुके हैं। आज देश के कई राज्यों ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में काफी तरक्की कर ली है, जिससे वहां सुशासन की सीढि़यां आसान हुई हैं। हमारे पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी इस क्षेत्र में काफी तरक्की हुई है। हरियाणा सरकार की करीब सौ योजनाओं की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है, पर क्या इस क्षेत्र में हिमाचल ने अपने पड़ोसियों की तर्ज पर विकास किया? यह एक अध्ययन का विषय है। हिमाचल का आम आदमी कितना डिजिटल हुआ, सरकार और प्रशासन कितने ऑनलाइन हुए, हमारे गांव कितने डिजिटल हुए, प्रदेश में कितनी सेवाएं सरकार द्वारा आम लोगों तक ऑनलाइन माध्यमों से पहुंचाई गईं, इस पर एक व्यापक चर्चा हो सकती है। हालांकि हिमाचल प्रदेश सरकार के अधीन सूचना प्रौद्योगिकी का एक अलग विभाग है, जो इस दिशा में विकास हेतु कार्य कर रहा है, परंतु यह भी आम आदमी देख रहा है कि इस मोर्चे पर प्रगति कितनी हुई है।

आज प्रदेश के अधिकतर विभागों की वेबसाइट्ज बनी हुई हैं। इनके मार्फत शासन-प्रशासन और जनता के बीच के औचारिक फासले काफी हद तक मिट सकते हैं। हैरानी यह कि कई विभागों की अपनी साइट वर्षों से अपडेट ही नहीं हुई है। जिन कर्मचारियों-अधिकारियों पर इनके संचालन एवं रखरखाव का जिम्मा है, आखिर वे कर क्या रहे हैं? प्रदेश में डिजिटलाइजेशन की दिशा में कई परियोजनाएं चल रही हैं, पर अमलीजामा पहनाने से पहले ही इनमें से अधिकतर दम तोड़ जाती हैं। डिजिटल राशन कार्डों में इतनी त्रुटियां हैं कि उन्हें चलन में नहीं लाया जा सकता। इसलिए उचित मूल्य की कई दुकानों पर आज भी पुराने राशन कार्ड ही चलन में हैं। योजना अभी शुरू ही हुई थी कि दम तोड़ती हुई प्रतीत हो रही है। डिजिटल पंचायत का कार्य काफी समय से चला रहा है, परंतु अभी तक न तो कई परिवारों का इस मंच पर पंजीकरण हुआ है और न ही जन्म व मृत्यु के विवरण यहां मौजूद हैं। करीब सात वर्षों से हम जमीनों के नक्शे को डिजिटल बनाने में लगे हैं, परंतु आज भी हमें ट्रेसिंग पेपर पर हाथ से ततीमा ट्रेस करना पड़ता है। स्कूलों में चलाया गया स्मार्ट क्लासेज का प्रोजेक्ट शिक्षकों के गले की फांस बना हुआ है। सरकार के लाखों के कम्प्यूटर व अन्य उपकरण धूल फांक रहे हैं। आज भी हमारे बच्चे सूचना-प्रौद्योगिकी की तकनीकों से अनभिज्ञ हैं।

वर्ष 2009 में सरकार द्वारा हर पंचायत में लोकमित्र केंद्र निजी क्षेत्र के सहयोग से खोले गए। आज वे उद्यम बीमार पड़े हैं। लक्ष्य था कि लोकमित्र केंद्रों के माध्यम से सरकारी सेवाएं ऑनलाइन मंच पर हर क्षेत्र में उपलब्ध कराई जाएंगी, परंतु तब से अब तक सरकार की एक-दो सेवाओं के सिवाए उनके पास कुछ नहीं है। उद्देश्य तो यह भी था कि राजस्व व अन्य विभागों से संबंधित सभी प्रमाण पत्र लोगों को घरद्वार ऑनलाइन उपलब्ध होंगे, परंतु तब से अब तक वे तमाम सेवाएं ऑनलाइन नहीं हुईं। हमें आज भी एक प्रमाण पत्र लेने के लिए मीलों का सफर करना पड़ता है। लोगों को आज भी छोटे-मोटे काम के लिए तहसील के दफ्तरों में लाइन बनानी पड़ती है।

रही बात आम जनता के डिजिटल तौर पर साक्षर होने की, तो आज हिमाचल की पचास फीसदी जनसंख्या की इस विधा में हालत निल बटे सन्नाटा जैसी है। आज भी अधिकतर लोग बैंक या डाकखाने में अपना पैसा जमा करने व निकालने के लिए कतारों में खड़े होते हैं। आज भी बैंक अकाउंट खोलने के लिए बैंक अधिकारी की धौंस सहनी पड़ती है। आज भी सरकारी कार्यों की समीक्षा ऑनलाइन नहीं है। आज भी हमारे साक्षात्कार कक्ष ऑनलाइन नहीं हैं। आज भी हमारे प्रदेश में ऑनलाइन एफआईआर को मान्यता नहीं। आज भी हमें बिजली-पानी के कनेक्शन लेने के लिए सब-डिवीजन जाना पड़ता है। गरीब आदमी को सबसिडी लेने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। असल बात पर अगर गौर किया जाए कि हम आज सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पीछे खड़े हैं। इस मामले में कहीं दूर न जाकर पड़ोसी राज्यों से ही काफी कुछ सीख सकते हैं। यदि प्रदेश सरकार जनता को एक सक्षम, पारदर्शी एवं समयबद्ध प्रशासन देना चाहती है, तो इसे सबसे पहले सूचना-प्रौद्योगिकर तंत्र को दुरुस्त करना होगा। हर योजना व कार्यों की समीक्षा ऑनलाइन हो, ताकि पारदर्शिता के साथ-साथ आम जनता की भी भागीदारी सुनिश्चित हो।

प्रदेश सरकार को चाहिए कि जहां तक संभव हो सके, सरकारी सेवाओं का डिजिटाइजेशन किया जाना चाहिए, ताकि आम जनता को परेशानी न उठानी पड़े। पेपरलैस वर्क हो, ताकि प्रदेश का व्यय नियंत्रित हो। क्लास रूम ऑनलाइन हों, ताकि बस्ते के बोझ से मुक्ति के अलावा छात्र छूटी हुई कक्षाओं का बैकअप ले सकें। साक्षात्कार कक्ष और परीक्षा हाल ऑनलाइन हों, ताकि परीक्षार्थियों की सुविधा के साथ गड़बड़ी गुंजाइश को भी न्यूनत स्तर तक लाया जा सके। पंचायतें ऑनलाइन हों, ताकि गरीब किसान का समय बचे। सार्वजनिक स्थलों पर डिजिटल माध्यमों से सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त हों। हमें यदि प्रगति के पथ पर बढ़ना है, तो बजट में सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर्याप्त वित्त का बंदोबस्त करने के साथ-साथ इस क्षेत्र में एक स्पष्ट एवं कारगर नीति तैयार करनी होगी। प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री पर आम जनता की निगाहें टिकी हैं। अपेक्षा यही रहेगी कि इन बेशुमार उम्मीदों के साथ हम सबको बदलाव की एक नई सुबह अवश्य देखने को मिलेगी।


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