प्रकृति का परिणाम होता है बच्चा

By: Feb 10th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं बच्चों पर

उनके विचार:

सभी बच्चे हमारे हैं। वे एक राष्ट्र का साझा धन होते हैं। ईसा मसीह हमें सलाह देते हैं कि अगर हमें इस संसार को स्वर्ग का राज्य बनाना है तो हमें बच्चों की तरह होना होगा। एक बच्चा प्रकृति का परिणाम होता है तथा यह हम ही हैं जो उनमें तेरा-मेरा, जाति, देश, राज्य आदि की भावना भरते हैं। यदि हम इस सब को अपने में से हटा लें, तो हम बच्चे बन जाएंगे। हमारे कंपार्टमेंट में लीवरपूल रेलवे स्टेशन पर एक महिला ने अपने बच्चे को छोड़ दिया। वह छुट्टी पर जा रहा था। हमने उसे खाने को बिस्कुट दिए। गंतव्य पर विभिन्न स्थलों के लिए जाने वाली बसें बच्चों का इंतजार कर रही थीं। बसों में बच्चों को बिस्कुट व दूध दिया जा रहा था। कस्बें में बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे जिनमें लिखा था कि सावधान, हमारे बच्चे छुट्टी पर जा रहे हैं। मुझे बताया गया कि वहां हर साल इस तरह के पोस्टर लगाए जाते थे। उन पर सामान्य रूप से बच्चे भी लिखा जा सकता था, लेकिन इसके बजाय हमारे बच्चे लिखा गया। यह बच्चों के प्रति सबके प्यार की अभिव्यक्ति थी। यह एक आदर्श है जो आत्मा को पुष्ट करता है। धन, शरीर को विकसित करता है। यह प्यार ही होता है जो प्यार को जन्म देता है। एक विधवा ने दोबारा शादी कर ली और जोड़ा उसकी पिछली शादी से पैदा हुए उसके बेटे की अनदेखी करने लगा। लड़के को अपने माता-पिता का समर्थन मिलना बंद हो गया। जब वह अपने घर से बाहर खेलने के लिए जाता था, तो अन्य लड़के उसे गालियां देते और तंग करते। वह अपने माता-पिता से बात नहीं करता था क्योंकि उसे उनका सहारा नहीं मिलता था। हमें अपने बच्चों का विश्वास जगाने के लिए उन्हें अपना सहयोग, समर्थन, प्यार व मार्गदर्शन देना चाहिए। बाल्यकाल की जो जिज्ञासा होती है, उसे खोना नहीं चाहिए। यह जिज्ञासा तब तक रहती है, जब तक आप विश्व को महान मानते हैं। यदि आप दावा करते हैं कि आप बैलगाड़ी जानते हैं, आप हल जानते हैं, तो आप उससे आनंद नहीं ले सकते। एक बार एक आदमी टैगोर के साथ घूम रहा था। उसने टैगोर का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, ‘‘देखो, देखो, एक गधा।’’ इसमें मासूमियत थी। टैगोर कहते हैं कि जिज्ञासा को जिंदा रखने के लिए हम गधे को ड्राइंग रूम में नहीं रख सकते, लेकिन जो कलाकार गधे को देखेगा, वह इस उद्देश्य से उसे पेंट कर सकता है। जिज्ञासा को शांत करने के लिए यह कलाकार का योगदान है। यह जिज्ञासा की स्तुति है तथा इसे हमेशा जिंदा रखना चाहिए। आज के दिनों में बच्चे सापेक्ष रूप से ज्यादा परिपक्व हैं। इससे बचपन का आकर्षण खत्म हो जाता है। हर व्यक्ति चतुराई के बजाय मासूमियत से प्यार करता है। जब हम पक्षियों को चुग्गा डालते हैं, तो चिडि़या, बतख व अन्य पक्षी उसे खाने आते हैं। हम कौवे को भगा देते हैं तथा इस बात के लिए उत्सुक रहते हैं कि बतख अनाज पर ज्यादा चोंच चलाए। हम सभी जानते हैं कि कौवा चालाक होता है, जबकि बतख अपनी मासूमियत के लिए जानी जाती है। हमें अपने बच्चों के सामने एक मिसाल कायम करनी होती है। एक सिख जनरल व उनकी पत्नी अपने बेटे सहित मेरे पास आए। पत्नी अपने मनके के बारे में बताने लगी। यह जोड़ा मेरे बिस्तर पर बैठने से हिचकिचाने लगा और नीचे बिछी दरी पर बैठ गया। मेरे कमरे में प्रवेश करते ही उन्होंने मेरे पांव छू लिए। उनके बेटे ने बाल काटे हुए थे और उन्होंने मुझसे सिख धर्म व विश्वास के बारे में सवाल पूछे। उन्होंने मुझसे कर्म के बारे में भी पूछा। मैंने जवाब दिया, ‘‘ जो व्यक्ति सही पथ पर नहीं रहता, वह अपने कर्म से दूर हो जाता है।’’ मैंने उन्हें यह आभास कराने की कोशिश की कि सिख का बाल काटे हुआ बेटा इस स्थिति का परिणाम था।


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