बजट के बहाने ग्रामीण वोटबैंक पर निशाना

By: Feb 5th, 2018 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

केंद्रीय बजट ग्रामीण भारत पर केंद्रित है, जहां देश के लगभग 70 फीसदी मतदाता रहते हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली को अर्थशास्त्र के साथ राजनीति की मिलावट में कोई पछतावा नहीं है। पहले भी, जब बजट को चुनावों से जोड़ा गया, राजनीतिक दल इस तरह की परिपाटी का विरोध करते रहे हैं। वर्षों से आर्थिकी की राजनीति से मिलावट हो रही है। दुर्भाग्य से इससे बचने का कोई साधन नहीं है…

यह समझा जा सकता है कि केंद्रीय बजट ग्रामीण भारत पर केंद्रित है, जहां देश के लगभग 70 फीसदी मतदाता रहते हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली को अर्थशास्त्र के साथ राजनीति की मिलावट में कोई पछतावा नहीं है। पहले भी, जब बजट को चुनावों से जोड़ा गया, राजनीतिक दल इस तरह की परिपाटी का विरोध करते रहे हैं। वर्षों से आर्थिकी की राजनीति से मिलावट हो रही है। दुर्भाग्य से इससे बचने का कोई साधन नहीं है। बजट में उन लोगों की स्थिति सुधारने पर फोकस किया गया है जो गरीब हैं और गांवों में रहते हैं। राजस्थान के उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार इस बात को दर्शाती है। लोकसभा की एक सीट समेत सभी तीनों उपचुनाव कांग्रेस ने जीत लिए। क्या भविष्य के चुनावों में भी पार्टी का ऐसा प्रदर्शन जारी रहेगा? इसके बावजूद कहा जा सकता है कि इस समय माहौल कांग्रेस के पक्ष में है। एक नई किस्म की पद्धति उभर कर सामने आ रही है। जहां कांग्रेस सत्ता में है, वहां भाजपा जीत प्राप्त कर रही है और जहां भाजपा सत्ता में है, वहां कांग्रेस जीत रही है।

मतदाताओं के सामने इन दो दलों के अलावा चुनने के लिए और कोई विकल्प नहीं है। तीसरे मोर्चे के निर्माण की मांग उठ रही है, पर यह कुछ ही राज्यों तक सीमित है। तीसरा मोर्चा देश भर में उभरता नजर नहीं आ रहा है। वास्तव में तीसरा मोर्चा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस तथा बिहार में नीतीश कुमार के यूनाइटेड जनता दल व लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल तक सीमित होकर रह गया है। कांग्रेस का प्रभाव देश भर में है जिसके सामने विपक्ष के रूप में केवल भारतीय जनता पार्टी है। पंथनिरपेक्ष भारत में यह अद्भुत तथ्य है, क्योंकि भाजपा की विश्वसनीयता भी जानी-पहचानी है। नरम हिंदुत्व देश को परिग्रहण करता जा रहा है। जिस देश के संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता का उल्लेख है, वहां यह बेमेल सा लगता है। कोई भी व्यक्ति आसानी से यह आरोप लगा सकता है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना देश को दो राष्ट्रों में बांटने के लिए जिम्मेदार हैं, परंतु लोगों की ओर से प्रतिरोध न्यून ही रहा। बहुत पुरानी बात नहीं है, जब मैंने इस मसले पर भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन से बात की थी। उन्होंने जिन्ना को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा था कि उस समय के ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट रिचर्ड एटली भारत व पाकिस्तान के बीच किसी न किसी तरह की एकता चाहते थे। माउंटबेटन ने यह बात मुझे तब बताई थी, जब मैं उनसे कई दिनों के बाद मिला था। माउंटबेटन ने मुझे बताया था कि उन्होंने सबसे पहले महात्मा गांधी को विभाजन के फार्मूले पर विचार करने के लिए बुलाया था। गांधी ने जब विभाजन शब्द सुना, तो वह माउंटबेटन के कमरे से बाहर निकल आए थे। इसके विपरीत जिन्ना ने विभाजन का स्वागत किया था।

जब माउंटबेटन ने जिन्ना से पूछा था कि क्या वह भारत से किसी तरह का नाता रखना चाहेंगे, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए कहा था कि वह उन पर विश्वास नहीं करते। इस तरह एटली ने जिस संयुक्त भारत का सपना देखा था, वह टूट गया। संयुक्त भारत के लिए बजट की परिकल्पना करना एक कठिन कार्य है। कांग्रेस के अलावा कोई भी दल ऐसा नहीं है, जिसकी सभी राज्यों में उपस्थिति हो। अब कांग्रेस स्वयं एक के बाद एक राज्य में हारती जा रही है। इससे पैदा हो रहे शून्य को भाजपा भरती जा रही है, लेकिन सांप्रदायिक तरीके से। हिंदुत्व के प्रति इसका उद्घोषित झुकाव कहता है कि बजट का 80 फीसदी लाभ हिंदुओं को मिलेगा। इन स्थितियों में मेडिकेयर योजना मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक है। इस योजना के तहत 50 करोड़ लोगों को कवर किया जाएगा और पांच लाख रुपए तक की बीमा राशि होगी।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस कार्यक्रम को विश्व की सबसे बड़ी सरकार पोषित स्वास्थ्य योजना बताया है। उन्होंने हर संसदीय क्षेत्र में एक मेडिकल कालेज का वचन भी दिया है। इसका मतलब यह है कि देश भर में हिंदुओं को 180 मेडिकल कालेज व इतने ही अस्पताल उपलब्ध होंगे। इस योजना को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए संभावना है कि केंद्र सरकार राज्य पोषित अस्पताल भी चलाएगी। किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तथा प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के बाद राजग की यह तीसरी बड़ी बीमा योजना है। कुछ साल पहले सरकार की ओर से चलाई गई फसल बीमा योजना अब तक सफल रही है, जिसने 25 हजार करोड़ रुपए का कारोबार किया है। त्रासदी यह है कि पूरी शक्ति से हिंदुत्व का सामना करने के बजाय मुसलमानों को हाशिए पर छोड़ दिया गया है। इस तरह की परिपाटी के संबंध में जब मैंने बड़े मुस्लिम नेताओं को पूछा, तो उनका जवाब था कि हमारी हिंदुत्व से लड़ने की कोई इच्छा नहीं है। इसके बजाय हम अपने जान व माल की सुरक्षा चाहते हैं। इसका मतलब यह है कि नरेंद्र मोदी अगला चुनाव भी जीत सकते हैं। यह भाजपा के बजाय उनकी व्यक्तिगत जीत होगी। हिंदू मतदाताओं के रूप में उन्होंने विशेषकर ग्रामीण भारत में अपनी फसल बीज दी है। उनका थोड़ा-बहुत विरोध भी हो रहा है। उनके गृह राज्य गुजरात में भाजपा को कुछ सबक भी मिला है। वहां कांग्रेस ने अपने विधायकों की संख्या काफी बढ़ा ली है, हालांकि वह समविचारक दलों से मिलकर ही ऐसा कर पाई। यह भाजपा, विशेषकर नरेंद्र मोदी व अमित शाह के लिए चिंताजनक बात है। वे सोच रहे थे कि भाजपा राज्य में आसानी से जीत जाएगी, लेकिन कांग्रेस ने उसके इस ख्वाब को थोड़ा कठिन बना दिया है। कांग्रेस आगे भी इसी तरह जीत प्राप्त करती जाएगी, यह कहना अभी कठिन है। लेकिन नीतीश गैर भाजपा शक्तियों को लेकर जिस महा मोर्चे के गठन के लिए प्रयासरत हैं, वही केंद्र की मोदी सरकार को टक्कर दे सकता है।

एक नकारात्मक पक्ष यह है कि नीतीश कुमार इस समय बिहार में अपनी सरकार बचाने के लिए भाजपा का पक्ष ले रहे हैं। इसके लिए लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल से उन्होंने अलगाव कर लिया और अपनी पार्टी में भी विरोध का सामना किया। बेशक लालू अब भी लोकप्रिय हैं और उन्हें अनपेक्षित तबकों का भी समर्थन प्राप्त है। पशुचारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें जेल में बंद कर दिया गया है और इस समय वह रांची जेल में बंद हैं। इसके बावजूद लगता है कि उन्हें मतदाताओं का समर्थन हासिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब अपना समर्थन खो जाने का कोई डर नहीं है क्योंकि मतदाताओं पर उनका प्रभाव अब भी कायम है। इसके बावजूद वास्तविक तस्वीर इस साल कई राज्यों में हो रहे चुनावों के परिणाम आने के बाद ही साफ होगी। ऐसी भी अटकलबाजियां चल रही हैं कि नरेंद्र मोदी जल्द चुनाव करवा सकते हैं। हालांकि वास्तव में क्या होगा, इसके बारे में अभी कुछ कहना अंधेरे में तीर चलाने जैसा होगा।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com

 


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