बज्रेश्‍वरी देवी शक्तिपीठ

By: Feb 3rd, 2018 12:10 am

जब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में काट दिया, तो सती के शरीर के ये 51 अंग जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। कहा जाता है कि कांगड़ा में सती का वाम वक्ष स्थल गिरा तथा यह बज्रेश्वरी शक्तिपीठ कहलाया …

माता बज्रेश्वरी देवी के प्रति अटूट श्रद्धा के कारण नगरकोट धाम कांगड़ा में वर्षभर यात्रियों का तांता लगा रहता है । परंतु चैत्र श्रावण और आश्विन के नवरात्रों में यहां विशेष मेलों का वातावरण होता है। मकर संक्रांति के उपलक्ष में आयोजित होने वाले घृत मंडल पर्व पर भी दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। कहते हैं कि जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं तथा देवताओं ने माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। उसी परंपरा के अनुसार यहां हर साल मकर संक्रांति के दिन देशी घी का मक्खन बनाकर माता की पिंडी पर चढ़ाया जाता है।

कथा

पौराणिक कथा के अनुसार सती पार्वती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपनी राजधानी में एक यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें सभी ऋषि-मुनियों को बुलाया गया था परंतु भगवान शंकर को उस में आमंत्रित नहीं किया था। इस अपमान को सहन न करने के कारण सती ने अपने पिता तथा अन्य उपस्थित ऋषि- मुनियों के सम्मुख हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। जब भगवान शंकर को इसका पता चला तो उन्होंने अपने गणों को यज्ञ विध्वंस करने की आज्ञा दे दी तथा स्वयं सती की मृत्यु को देखकर स्थिर हो गए। शंकर सती की देह को कंधे पर उठाकर ब्रह्मांड में घूमने लगे। सभी देवी- देवता भगवान शंकर की इस अवस्था को देख कर विनाश की आशंका से अत्यंत भयभीत हो गए। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को 51 भागों में काट दिया। सती के शरीर के ये 51 अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ स्थापित हो गए। कहा जाता है कि कांगड़ा में सती का वाम वक्ष स्थल गिरा तथा यह बज्रेश्वरी शक्तिपीठ कहलाया।

मंदिर का इतिहास-

कांगड़ा में माता बज्रेश्वरी का मंदिर 9वीं शताब्दी में से लेकर 10 वीं शताब्दी तक तंत्र विद्या का एक केंद्र रहा है। यह भारत के तंत्र विद्या केंद्रों में से एक था। 4 अप्रैल 1905 को समूचे कांगड़ा क्षेत्र में आए भीषण भूकंप की चपेट में माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर पूर्ण रूप से ध्वस्त हो गया था। लाखों रुपए की संपत्ति एवं हीरे-जवाहरात इस मलबे के ढेर के नीचे दबे रह गए। दिसंबर 1908 में मंदिर के पुनर्निर्माण एवं प्रबंध की तैयारी शुरू की गई। वर्ष 1914-15 में नए बनने वाले मंदिर का डिजाइन तैयार किया गया। भूकंप के 25 साल के बाद 1लाख 92 हजार रुपए की राशि मंदिर के निर्माण हेतु एकत्रित की गई। पालमपुर तहसील के द्रंग स्थान से निकाले गए पत्थर को मंदिर के प्रयोग के लिए स्वीकार  किया गया। सन् 1930 में वर्तमान मंदिर शिखर शैली में बनकर तैयार हुआ।

स्थापत्य कला व अन्य विशेषताएं-

मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की लगभग 40 मूर्तियां हैं जिन्हें 7 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच की निर्मित माना जाता है। माता की पिंडी के साथ एक त्रिशूल है, यह त्रिशूल सैकड़ों वर्ष पुराना है तथा अष्ट धातु से बना है। कहते हैं कि जिस स्त्री को प्रसव में कठिनाई आ रही हो, इस त्रिशूल के ऊपर जल चढ़ाकर एक पात्र में इकट्ठा करके उस स्त्री को पिलाने से तुरंत प्रसव हो जाता है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति के प्राण गले में फंसे हों, उसे भी इस त्रिशूल का जल पिलाने से तुरंत सद्गति प्राप्त होती है। यहां रोजाना माता का शृंगार करने के उपरांत माता की पिंडी की पूजा नहीं की जाती बल्कि उसके स्थान पर मां की पिंडी के आगे रखे श्री यंत्र की पूजा की जाती है। मंदिर में पूजा-अर्चना के समय प्रातः पुजारी शैय्या को उठाने के पश्चात आसन ग्रहण करके मंगल आरती करता है। जिसमें मां को पंचमेवा का भोग लगाया जाता है। फिर शृंगार उतारने के पश्चात पंचामृत सहित पिंडी महारानी के स्नान कराने के बाद पीले चंदन से लेप कर के आभूषणों से शृंगार किया जाता है। उसके बाद काले चने और पूरी का भोग लगाकर आरती की जाती है। आरती का समय सुबह 5:00 बजे होता है। दोपहर को 12:00 बजे मां की आरती के बाद चावल और दाल का भोग लगाया जाता है। इसी प्रकार रात्रि को 8:00 बजे मां के स्नान के उपरांत लाल चंदन से लेप करके फूलों से शृंगार किया जाता है।

इस समय भी चने और पूरी का भोग मां को लगाया जाता है। उसके पश्चात मां की शैय्या लगाई जाती है और मंदिर बंद होने से पूर्व मां को दूध, चना और मिठाई का भोग लगाया जाता है। वर्ष 1986 में मंदिरों के अधिग्रहण के बाद माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर भी ट्रस्ट के अधीन चलाया जा रहा है। जबकि मंदिर के चढ़ावे का कुल 40 फीसदी भाग पारंपरिक पुजारियों को उनकी बारी के अनुसार दिया जाता है।

निकटवर्ती धर्म स्थल

कांगड़ा में माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर के अलावा कपाल भैरव, वीरभद्र मंदिर, गुप्त गंगा ,अच्छरा कुंड, चक्र कुंड सूरजकुंड ,कुरुक्षेत्र दर्शनीय स्थल हैं। इन तीर्थों के अतिरिक्त भी बहुत से तीर्थ स्थल रामकुंड, सीताकुंड नैमिषारण्य क्षेत्र, गया तीर्थ, प्रयाग तीर्थ, चंद्रभागा मणिकरण तथा हरिद्वार तीर्थ आदि हैं। अंबिका देवी, आदिनाथ तथा लक्ष्मी नारायण ऐतिहासिक दुर्ग में स्थित हैं। कुंडलेश्वर, द्रोपदी और बाण गंगा के संगम टांडा के पास हैं। मंदिर परिसर में ध्यानू भक्त, प्राचीन भैरव मूर्ति , योगिनी खप्पर, तारा देवी मंदिर प्राचीन मूर्तियां तथा शिलालेख व धर्मशिला मौजूद हैं। धर्मशिला के बारे कहा जाता है कि इसके ऊपर कोई झूठा व्यक्ति पैर नहीं रख सकता। न्यायालयों के कई  मुकदमों में वादी प्रतिवादी की गवाही के लिए भी इसका कई बार प्रयोग होता रहा है। 5 हजार  वर्ष पूर्व पुरानी चमत्कारी भैरव की मूर्ति बारे कहा जाता है कि कोई भी देवी आपदा भूकंप व महामारी के आने से पूर्व भैरव के नेत्रों से आंसू व शरीर से पसीना निकलना आरंभ हो जाता है। कांगड़ा से धर्मशाला मुख्यालय 18 किलोमीटर की दूरी पर है। जहां मकलोडगंज में बौद्ध मंदिर भागसुनाग तथा डल झील के अलावा अनेक अन्य दर्शनीय स्थल हैं। धर्मशाला में ही पर्यटन निगम का सूचना केंद्र है, जहां से पर्यटक स्थलों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कांगड़ा से ज्वालामुखी का प्रसिद्ध मंदिर 35 किलोमीटर तथा चामुंडा मंदिर 20 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा खनियारा में स्थित अघंजर महादेव की दूरी भी 20 किलोमीटर है।

आवास सुविधा

 कांगड़ा नगर में लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह के अलावा कई आधुनिक होटल एवं सराय मौजूद हैं। मंदिर न्यास की सराय में भी अग्रिम बुकिंग की व्यवस्था है। देश के विभिन्न भागों में सुचारू परिवहन व्यवस्था  दिन और रात्रि में उपलब्ध है।

पहुंचने का रूट चार्ट व दूरी

निकटतम रेलवे स्टेशन कांगड़ा मंदिर है और हवाई अड्डा कांगड़ा से 8 किलोमीटर दूर गगल  में है । जहां से दिल्ली के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। चंडीगढ़ की दूरी यहां से 226 किलोमीटर व जालंधर की दूरी 142 और पठानकोट की दूरी 84 किलोमीटर है। जबकि राजधानी शिमला की दूरी कांगड़ा से 225 किलोमीटर है। वॉल्वो, डीलक्स बस व सामान्य बसों के अलावा टैक्सी की सुविधा भी यहां से उपलब्ध है।

पहुंचने में लगने वाला समय

सड़कें अच्छी होने के कारण चंडीगढ़ से 4:30 घंटे में कांगड़ा पहुंचा जा सकता है। जबकि जालंधर 3:30 घंटे और पठानकोट से 2 घंटे में यहां पहुंचा जा सकता है।

किराए का ब्यौरा

लग्जरी कार में अगर सफर करना हो तो चंडीगढ़ तक के 5000 से 6000 रुपए किराया टैक्सी का चुकाना होगा जबकि दिल्ली हवाई सफर करना हो तो 7000 -8000 रुपए तक में दिल्ली का हवाई सफर किया जा सकता है। धर्मशाला, चामुंडा व ज्वालाजी के लिए भी एचआरटीसी के अलावा प्राइवेट बसों की सुविधा आसानी से उपलब्ध है।

खान-पान सुविधाएं

खाने पीने के लिए यहां आजादी से पहले के ढाबे की बात करें, तो पोलो  राम का ढाबा और कमल ढाबा यहां आने वाले यात्रियों का पसंदीदा ढाबा माना गया है। जहां लोग सस्ते और अच्छे खाने का लुत्फ  उठाते हैं। जबकि कांगड़ा में महंगे रेस्तराओं की भी कमी नहीं है। बेहतर रेस्तरां में बेहतरीन खाने का लुत्फ  उठाना हो, तो ‘द ग्रैंड राज होटल’, चिल्ली, रॉयल होटल, अभी भोजनालय व गौरव होटल में अच्छे खाने की सुविधा उपलब्ध है । सराय में ठहरने के लिए 200 से लेकर 400  रुपए तक भी अच्छे रूम उपलब्ध हैं। यहां डोरमेट्री  की सुविधा भी उपलब्ध हैं, जहां 50 रुपए से 100 रुपए तक में ठहर सकते हैं । गुप्त गंगा धाम में यात्रियों की टोलियों को हाल भी उपलब्ध करवाया जाता है, जहां बहुत सस्ते में यात्री रुक  सकते हैं।

– राकेश कथूरिया, कांगड़ा


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