बाल मन में कचरा भरता फास्ट फूड

By: Feb 10th, 2018 12:05 am

अदित कंसल

लेखक, नालागढ़ से हैं

फास्ट फूड विद्यार्थियों में मानसिक प्रदूषण पैदा कर, उनकी मानसिक स्थिति अनियंत्रित कर रहा है। फास्ट फूड से विद्यार्थियों में आलस्य, ग्लानि व क्रोध बढ़ रहा है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ना-झगड़ना, गाली-गलौज, नशे की ओर प्रेरित होना, रात को जागना, दिन में सोना इत्यादि विद्यार्थियों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है…

निःसंदेह वर्तमान में विद्यार्थी पढ़ाई व करियर की चिंता के तले दबाव में हैं। वार्षिक परीक्षाएं एक बार फिर से सिर पर हैं। अंकों की दौड़ व प्रतिस्पर्धा के इस युग में विद्यार्थी जीवन असंतुलित व अव्यवस्थित होता जा रहा है। जहां एक ओर विद्यार्थियों की दिनचर्या बिगड़ रही है, वहीं खानपान भी असंतुलित हो रहा है। विद्यार्थियों  का जंक फूड या फास्ट फूड के प्रति बढ़ता आकर्षण चिंता का विषय है। विद्यार्थी अकसर जंक फूड जैसे सॉफ्ट ड्रिंक्स, बर्गर, पिज्जा, पास्ता, कुरकुरे, चिप्स, सैंडविच इत्यादि का धड़ल्ले से सेवन करते देखे जा सकते हैं। गली-चौराहों, पार्कों, स्कूल व कालेज के समीप रेहडि़यों व ठेलों पर फास्ट फूड आसानी से मिल रहा है। फास्ट फूड की दुकानों की बाढ़ सी आ गई है। फास्ट फूड कॉर्नर्स अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। कई विद्यार्थी तो अपने घरों में भी फास्ट फूड को ही प्राथमिकता देते हैं। भोजन को त्याग कर जब भूख व अकेलापन महसूस किया, फास्ट फूड खा लिया।

भारत 2020 तक विश्व के सबसे अधिक युवाओं का राष्ट्र बनने वाला है। भारत अपने इस सकारात्मक पक्ष का यथोचित लाभ तभी उठा पाएगा, जब उसकी युवा आबादी स्वस्थ एवं शिक्षित होगी। फास्ट व जंक फूड के कारण विद्यार्थियों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। विद्यार्थियों के शरीर गुब्बारों की तरह फैल रहे हैं, कुरूप व बेडौल होते जा रहे हैं। बचपन में ही बाल झड़ रहे हैं अथवा सफेद होते जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में करीब 22 फीसदी बच्चे फास्ट फूड की वजह से मोटापा और दूसरी बीमारियों से पीडि़त हैं। फास्ट फूड में शुगर व नमक की मात्रा अधिक होती है। अत्यधिक कैलोरीयुक्त होने के कारण फास्ट फूड शरीर के लिए घातक है। इससे बच्चों में मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, लीवर व हृदय की बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। आंखों पर मोटे-मोटे चश्मे लग रहे हैं। सिरदर्द की शिकायत बढ़ती जा रही है। मोटापे के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है, वहीं हिमाचल का मोटापे में देश में आठवां स्थान है। फास्ट फूड विद्यार्थियों की अधिगम क्षमता को ‘स्लो’ कर रहा है। विद्यार्थियों की सृजनात्मक व रचनात्मक सोच प्रभावित हो रही है। विद्यार्थियों में शोध व नवाचार का अभाव देखने को मिल रहा है। तार्किक शक्ति लगभग समाप्त होती जा रही है। स्मरण शक्ति व ध्यान का हृस हो रहा है। सोचने की शक्ति क्षीण हो रही है।

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित सम्राट ललितादित्य व्याख्यानमाला के दौरान प्रख्यात माइक्रो बायोलोजिस्ट प्रो. एसएस कंवर ने कहा कि वर्तमान समय में जंक फूड के कारण विद्यार्थियों की सहनशक्ति कम हो रही है। इसके कारण वे जल्दी आपा खो बैठते हैं। कुछ समय पहले नालागढ़ के एक सरकारी विद्यालय के जमा एक के छात्र द्वारा शारीरिक शिक्षक पर जानलेवा हमला करना तथ्य की पुष्टि करता है। फास्ट फूड विद्यार्थियों में मानसिक प्रदूषण पैदा कर, उनकी मानसिक स्थिति अनियंत्रित कर रहा है। विद्यार्थियों में नैतिकता व मानवीय मूल्यों का पतन देखने को मिल रहा है। फास्ट फूड से विद्यार्थियों में आलस्य, ग्लानि व क्रोध बढ़ रहा है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ना-झगड़ना, गाली-गलौज, नशे की ओर प्रेरित होना, रात को जागना, दिन में सोना इत्यादि विद्यार्थियों की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। बसों में बुजुर्ग व महिलाएं बच्चे को गोद में उठाए खड़ी रहती हैं, विद्यार्थी सीट छोड़ने को तैयार नहीं। बैंकों, डाकघरों, राशन की दुकानों, अस्पतालों  में शायद ही कोई वरिष्ठ नागरिकों को मदद करते दिखाई देता है। सड़कों पर दुर्घटनाग्रस्त लोगों को देखकर विद्यार्थी वर्ग मदद हेतु आगे आने की अपेक्षा वीडियो बनाने में दक्षता हासिल कर रहे हैं। फास्ट फूड शरीर में वासना बढ़ा रहा है। प्रदेश में छेड़छाड़ व बलात्कार जैसी घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। अपराधों का ग्राफ अवरोही क्रम में जा रहा है। छात्राओं के साथ अश्लीलता के मामले चरम पर हैं। कई छात्रों ने तो अपनी सहपाठी छात्राओं की फर्जी फेसबुक बनाकर अश्लील फोटो अपलोड कर दी। जंक फूड अविश्वास की भावना उत्पन्न कर रहा है। कहना न होगा कि अपराध को इसने बढ़ावा ही दिया है।

जंक फूड पर काबू पाने के लिए केरल सरकार ने पिज्जा-बर्गर जैसी चीजों पर ‘फैट-टैक्स’ लगा दिया है। हिमाचल प्रदेश में भी शिक्षा विभाग ने स्कूलों व कालेजों की कैंटीनों में फास्ट फूड  पर प्रतिबंध लगा रखा है। आवश्यकता है कि विद्यार्थियों को जंक फूड से होने वाले घातक परिणामों से अवगत कराया जाए। स्कूली पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत इसकी जानकारी विद्यार्थियों को दी जाए। स्कूल में अध्यापक प्रातःकालीन सभा में विद्यार्थियों को फास्ट फूड  से बचने की सलाह निरंतर दे सकते हैं। स्कूल प्रबंधन समितियों की बैठक में इस विषय पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए, ताकि अभिभावकों को भी फास्ट फूड  के दुष्परिणामों व उनके बच्चों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का पता चल सके।

विद्यार्थियों को समझना होगा कि यह फास्ट फूड  उनकी कार्यक्षमता, उत्कृष्टता व बौद्धिक क्षमता को ‘स्लो’ कर रहा है। विद्यार्थियों को अपनी दिनचर्या में सकारात्मक बदलाव करना चाहिए। स्वाद से अधिक स्वास्थ्य को महत्त्व देना चाहिए। प्रातः शीघ्र उठें, सैर करें, योग करें। पारंपरिक, सादा व सुपाच्य भोजन को प्राथमिकता देें। फास्ट फूड  को बाय-बाय करें। शरीर व मस्तिष्क को स्वस्थ रखें, तभी हम एक समृद्ध, सशक्त व समर्थ प्रदेश व देश की कल्पना को साकार कर सकेंगे।


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