बिलासपुर के लेखकों का हिंदी में योगदान

By: Feb 11th, 2018 12:05 am

सरोकार

लेखन की कसौटी पर हिंदी का स्तर नापना या फिर परखना बहुत मुश्किल काम है। बिलासपुर हिमाचल प्रदेश का वह जिला है, जहां 1863 ई. में बिलासपुर नगर में राजा हीरा चंद ने प्रथम प्राथमिक पाठशाला खोली थी। 1887 ई. में राजा विजय चंद ने इस पाठशाला का दर्जा मिडल किया। 1899-1900 में राजा विजय चंद ने घुमारवीं और भाखड़ा में दो प्राथमिक पाठशालाएं खोलीं। जब राजा आनंद चंद 1930 में बिलासपुर के राजा बने तो उन्होंने अपनी इस रियासत में 21 प्राथमिक पाठशालाएं खोलीं। सन् 1948 तक जिला बिलासपुर में केवल एक हाई स्कूल व तीन मिडल स्कूल थे। 1952 में बिलासपुर नगर में एक इंटर कालेज शुरू हुआ था। राजा वीर चंद का बनाया व बसाया यह भू-भाग कलम से दूर ही रहता, अगर गणेश सिंह बेदी ने 1892 ई. में शशि वंश विनोद किताब तथा 1882 ई. में चंद वंश विलास किताब नहीं लिखी होती। ये किताबें बिलासपुर के इतिहास की सिरमौर ग्रंथ हैं। हम में से जितने ने बिलासपुर (कहलूर) के इतिहास पर अपनी कलमें चलाई हैं, इन्हीं दो किताबों का सहारा लिया है। बिलासपुर के मियां अच्छर सिंह द्वारा लिखा कहलूर का इतिहास भी सराहनीय है। राजशाही के समय अधिकतर लेखन टांकरी और उर्दू में हुआ है। उस समय न तो स्कूल थे और न ही कोई पढ़ाने वाला था, इसलिए हिंदी का चलन कम ही हुआ। कुछ मंदिरों में हिंदी जरूर पढ़ाई जाती थी, मगर लेखन नाममात्र का ही हुआ। बिलासपुर के नरोत्तम दत्त शास्त्री व कन्हैया लाल दबड़ा राजशाही के समय पढ़े तथा उसी समय हिंदी में लिखना शुरू कर दिया। नरोत्तम दत्त शास्त्री का लेखन बेशक आलोचनात्मक रहा हो, मगर साहित्य जगत में सराहनीय है। दबड़ा द्वारा किया गया लेखन कार्य उनकी निजी डायरियों में ही दफन हो गया है। उनकी एक डायरी बिलासपुर लेखक संघ ने उनके परिवार से प्राप्त की और उनके देहांत के पश्चात उनके द्वारा रचित हिंदी की कविताओं को एक किताब में छपवा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। दबड़ा बिलासपुर लेखक संघ के प्रधान भी रहे तथा अंतिम समय तक हिंदी साहित्य के प्रति वचनबद्ध रहे। घुमारवीं निवासी सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी देव राज शर्मा ने गुग्गा जाहरवीर पर उस समय शोध करके हिंदी किताब लिखी जब लोग केवल गुग्गा की मंडलियों से ही उस वीर की कथा सुना करते थे। बिलासपुर के गांव निऊं के रूप शर्मा, प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। इनका लेखन भी सराहनीय है। बिलासपुर लेखक संघ उन लेखकों का समूह है, जो निरंतर हिंदी साहित्य में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं। आज इस मंच में लगभग 65 सक्रिय सदस्य हैं जो हर रोज कुछ न कुछ हिंदी भाषा में नया लिख रहे हैं। कुछ स्तंभकार हैं, कुछ कवि हैं, कुछ कहानियां गढ़ते हैं और कुछ टीका-टिप्पणियां करने में मशहूर हैं। पूर्व प्रधानों के साथ-साथ वर्तमान प्रधान रोशन लाल शर्मा के प्रयासों से बिलासपुर लेखक संघ खूब फल-फूल रहा है।

रोशन लाल शर्मा की ही तरह पंडित जय कुमार द्वारा बिलासपुर से प्रकाशित शब्द मंच ने पता नहीं कितने नौसिखियों को हिंदी में कलम चलाना सिखाई है। डा. आरके गुप्ता हालांकि सुंदरनगर में रहते हैं, मगर हैं बिलासपुरी। हिंदी के एक सुलझे हुए लेखक हैं। इनकी 2014 में छपी किताब गुलदस्ता बहुत कुछ कहती है। बिलासपुर के गांव बध्यात के सुरेंद्र मिन्हास हैड न्यूज हिमाचल अखबार के संपादक हैं। बिलासपुर लेखक संघ के महासचिव सुरेंद्र मिन्हास की अलमारी इनके द्वारा लिखे साहित्य से भरी पड़ी है। अखबारों में खूब छपते हैं। इन्हें 2016 ई. में आथर्स गिल्ड आफ हिमाचल द्वारा सम्मानित किया गया। बिलासपुर के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य अमरनाथ धीमान उर्दू लेखक की तर्ज पर हिंदी में गजलें लिखते हैं। हाल ही में इनकी दो हिंदी गजलों की किताबें छप चुकी हैं। हटवाड़ के भीमसिंह नेगी की हिंदी कविताओं की दो किताबें भी छप चुकी हैं। ज्ञान चंद बैंस शारीरिक शिक्षक हैं। इनकी बरीणा नामक लघु कथाओं की किताब हांकें मार कर पुकारती है कि उनका लेखन किसी नामी ग्रामी साहित्यकार से कम नहीं है। बिलासपुर के जमथल निवासी जगदीश जमथली अपने आपको एक अदना सा साहित्यकार कहते हैं, यह उनका बड़प्पन है। इनकी किताब की हर कविता आज के परिवेश पर वार करती है। घुमारवीं के रामलाल पाठक का नाम लेते ही हिमाचल के सभी साहित्यकारों की याद आती है। उनके द्वारा लिखा साहित्य अभी तक संदूकों में ही बंद पड़ा है। बिलासपुर शहर के रौड़ा सेक्टर निवासी व हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग के सबसे बड़े दफ्तर में ज्वाइंट डायरेक्टर सुशील पुंडीर तो छुपे हुए साहित्यकार हैं। जब चाहे, जहां चाहे, हिंदी में कविता लिख डालते हैं। पुलिस विभाग में कार्यरत डीएसपी डा. रविंद्र कुमार ठाकुर की किताब में बिलासपुर की कहावतें व मुहावरे एकत्र किए गए हैं। जिला बिलासपुर में अगर हिंदी का सर्वश्रेष्ठ कवि ढूंढना हो तो नैनादेवी धार के गांव मंडयाली जाकर बदरी प्रसाद को ढूंढ लें। कविता के रास्ते वह अपनी बात भली-भांति कहने में सक्षम हैं। जिला बिलासपुर में हिंदी के बहुत कवि हैं, मगर बैरी मियां के सेवानिवृत्त अध्यापक जसवंत सिंह चंदेल, दोकडू गांव के वीरबल धीमान, घुमारवीं के दिनेश कुमार, रौड़ा सेक्टर के रतन चंद निर्झर, पत्रालय गांव की कविता सिसोदिया, निचली भटेड़ के अनिल शर्मा नील व वयोवृद्ध सेवानिवृत अध्यापक द्वारका प्रसाद तथा कुछ अन्य लेखकों के नाम शीर्ष पर हैं। एक लेख में बिलासपुर के साहित्यकारों का हिंदी के प्रति योगदान लिख देना संभव नहीं है। मैं तो एक नौसिखिया हूं और पेशे से सैनिक रहा हूं। मैं पिछले तीन वर्षों में चार किताबें हिंदी में पाठकों तक पहुंचा चुका हूं। मैं आखिर में कहना चाहता हूं कि बिलासपुर के लेखकों का हिंदी के प्रति योगदान सराहनीय है।

-कर्नल जसवंत सिंह चंदेल


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