महात्मा गांधी से पे्ररित होकर स्टोक्स ने खादी पहनी

By: Feb 7th, 2018 12:05 am

स्टोक्स देश भर में राजनीतिक परिवर्तनों के प्रति बड़े संवेदनशील थे। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर  खादी पहनना शुरू की और अपने पश्चिमी कपड़ों की होली जलाई। राष्ट्रवादी कार्यों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और 1922 ई. में छह महीने लाहौर जेल में कैद रखा…

सत्यानंद स्टोक्स

सैम्युल ईवानस स्टोक्स फिलाडोल्फिया के क्यूएकर वंशज धनी इंजीनियर-व्यापारी का बेटा था, जो ऐलिवेटर (ऊपर उठाने) तकनीक में योगदान के लिए प्रसिद्ध था। नौजवान सैम्युल व्यापार करने में अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने का इच्छुक नहीं था और 22 वर्ष की आयु में उसने येल विश्वविद्यालय में पढ़ाई छोड़ दी और मानव सेवा को चुना। भारत की जल यात्रा पर चल पड़ा और 1905 ई. में सुबाथू में कुष्ठ घर पहुंचा। उसे तब बड़े भूचाल से तबाह हुए कांगड़ा में व्यवसायहीन लोगों की सहायता के कार्य को भेज दिया गया। उसके बाद वह कोटगढ़ में क्रिश्चियन मिशन हाउस आए। 1910 ई. में एक परित्यक्त चाय का बाग खरीदा, शादी की और कोटगढ़ में बडू बाग को अपना घर बनाया। संस्कृत सीखी, पूर्वी और पाश्चात्य विचारों का अध्ययन किया और अपने जीवन दर्शन को ‘सत्यकाम’ नाम की पुस्तक में प्रतिपादित किया। 1932 ई. में आर्य समाज के तत्त्वावधान में हिंदू बन गए और सैम्युल ईवानस से सत्यानंद कहलाने लगे। आरंभ में स्टोक्स पारंपरिक कृषि करते थे व बडू बाग में गेहूं व जौ पैदा करते थे। इसके साथ मटर, बीन्ज, लीमा बीन्ज, कद्दू और गोभी सहित सब्जियां उगाते। कोटगढ़ क्षेत्र के स्थानीय किसानों के साथ घुल मिलकर अपनी पहचान बनाई। उनकी जीवनशैली को अपनाया और सायंकाल हुक्का पीकर आराम फरमाते। स्टोक्स देश भर में राजनीतिक परिवर्तनों के प्रति बड़े संवेदनशील थे। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर  खादी पहनना शुरू की और अपने पश्चिमी कपड़ों की होली जलाई। राष्ट्रवादी कार्यों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और 1922 ई. में छह महीने लाहौर जेल में कैद रखा। शिमला जिला से बेगार उन्हीें के प्रयत्नों से समाप्त हुई। सेबों को पहाड़ों में उगाया जाता रहा था, किस्में इंग्लैंड में लोकप्रिय थीं, उनको अंग्रेजों द्वारा कुल्लू में आरंभ किया गया और कोटगढ़ के मिशन हाउसेज में भी शुरू किया गया। मनचाही किस्में Cox’s Belnheim Orange, Newton ß Russel थीं, जो कि तीक्ष्ण चटपटी और खट्टी थीं। स्टोक्स ने हिमाचल प्रदेश में 6000 फुट से अधिक ऊंचाई पर छोटे किसानों के लिए सेब और सेब की संस्कृति को एक व्यापारिक फसल के रूप में उगाना शुरू किया। अपने हाथ से काम करते हुए व अपने हाथों से पेड़ों की काट-छांट करते थे और मार्केट के लिए डिब्बा बंद करने से पहले बड़ी सावधानी से उनके आकार, रंग और गुणवत्ता के आधार पर उनको वर्गीकृत करते। इससे उन किसानों को लाभ मिला, जिनके पास सीमांत असिंचित भूमि थी, जहां वे गेहूं या जौ की एक ही फसल उगाते थे। 20वीं शताब्दी के आरंभ में अमरीका व्यापारिक फसलों और कलम की हुई किस्मों के पेटेंट के युग में प्रवेश कर चुका था। स्टोक्स ने सटार्क बंधुओं से सेबों की नई पेटेंट की हुई स्वादिष्ट किस्मों को, जो परीक्षण क्षेत्रों में भी थीं, चुना। 1925 में स्टोक्स ने 1 डालर प्रति पौधे के हिसाब से नर्सरी के पौधे आयात किए और जिन किसानों ने मांग की थी, उन्हें मुफ्त में ही उन पौधों को बांटा।


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