रक्षा मंत्री की फाइल में हिमाचल

By: Feb 21st, 2018 12:05 am

हिमाचल की सैन्य पृष्ठभूमि से निकले राष्ट्रीय जज्बात को यूं तो किसी अरदास की जरूरत नहीं, लेकिन राष्ट्र की परिभाषा में इस योगदान का मूल्यांकन होना लाजिमी है। ऐसे में जब प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हिमाचली संवेदना का परिचय देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीता रमण से कराते हैं, तो सरहद पर शहादत के सम्माननीय अध्याय खुल जाते हैं। यह विडंबना है कि वर्तमान परिदृश्य में राज्य इकाई का संघीय महत्त्व संसदीय क्षेत्रों की संख्या पर निर्भर करता है, जबकि प्रति व्यक्ति के हिसाब से राष्ट्रीय मूल्यांकन में हिमाचल के सैन्य योगदान को वांछित परिचय मिलना चाहिए। हिमाचल ने सैन्य दृष्टि के अलावा प्राकृतिक संसाधनों व बड़ी बांध परियोजनाओं के जरिए हमेशा कुर्बान होने की मिसाल पेश की है, मगर देश के राजनीतिक कोने और बिछौने ने यह कबूल ही नहीं किया कि नाइनसाफी की भी एक हद होती है। राज्य के अधिकार पुनः मुख्यमंत्री के मार्फत सिर उठा रहे हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि राष्ट्रीय शहादत की शुमारी में तीस फीसदी कुर्बानियां, हिमाचली नायकों की तिरंगे में लिपट कर घर लौटने की पवित्र कहानी है। शौर्य के राष्ट्रीय दस्तावेज भी यह पुष्ट करते हैं कि जहां वीरता के ग्यारह सौ पदक या चार परमवीर चक्र सलाम करते हों, वहां भारत माता के चरणों में न्यौछावर होने का अर्थ क्या है और ऐसी पृष्ठभूमि की अमानत में देश को सेना के स्तंभ सौंपने चाहिए। वर्षों से हिमाचल के नाम पर रेजिमेंट की स्थापना, आयुध कारखाना व डोगरा रेजिमेंट के मुख्यालय की दरकार को दरकिनार करने की वजह नहीं पूछी गई। पुनः इन्हीं प्रश्नों के गुलदस्ते में, देश के हिसाब से हिमाचल अपने अधिकार का उत्तर ढूंढ रहा है, तो निर्मला सीता रमण को उन कंधों को देखना होगा जो दुश्मन के खिलाफ आग उठाकर मुकाबला करते हैं। हिमाचल रेजिमेंट के प्रश्न पर अतीत में भी प्रस्ताव के खिलाफ जो शर्तें खड़ी हुईं, कमोबेश वैसी ही स्थिति भर्ती कोटा मुकर्रर करके हमारी सैन्य पृष्ठभूमि पर प्रतिकूल टिप्पणी जैसी है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सैन्य दृष्टि से लेह रेल परियोजना के अलावा कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की अनिवार्यता में राष्ट्रीय परियोजना की संभावना की पुष्टि करते हुए आग्रह किया है, तो पठानकोट एयरबेस हमले के बाद इस दिशा में आगे बढ़ना होगा। सीमांत राज्य होने के कारण भी हिमाचल का सामरिक महत्त्व बढ़ जाता है और इस तरह सड़क, रेल व विमान सेवाओं का नागरिक व सैन्य इस्तेमाल देश की आवश्यकता के अनुरूप संभव है। कारगिल युद्ध के सबक से पठानकोट-मनाली सड़क का औचित्य जिस तरह बढ़ा, उसी तरह भविष्य में मनाली-लेह रेल परियोजना का हकीकत में आना भी माना जाता है। किन्नौर के सीमावर्ती इलाकों में सड़कों का नया जाल राष्ट्रीय जरूरत है, तो कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार के मायने भी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ जुड़ते हैं। इस लिहाज से मुख्यमंत्री ने रक्षा मंत्रालय के दायरे में हिमाचल की तरक्की व भविष्य को रेखांकित करते इरादे जाहिर किए हैं। निश्चित रूप से हिमाचल में अगर सामरिक दृष्टि से परियोजनाओं पर काम शुरू होता है, तो इससे पर्वतीय विकास की तमाम अड़चनें भी दूर होंगी। हिमाचल के अपने आर्थिक संसाधन व राष्ट्रीय मापदंड ऐसी किसी परियोजना के पक्ष में नहीं हैं, अतः सामरिक रणनीति के तहत केंद्रीय बजट ही मददगार साबित होगा। अगर मनाली-लेह रेल परियोजना से हिमाचल जुड़ता है, तो प्रदेश की आर्थिकी को एक नया आकार और संभावनाओं को तराशने में बल मिलेगा। देश की रक्षा मंत्री की फाइल में हिमाचल के जिन बुनियादी सवालों का पिटारा मुख्यमंत्री ने खोला है, उस पर ईमानदारी से विचार हो तो ये तमाम परियोजनाएं राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करती हुईं, वीर सैनिकों की धरती को नमन करेंगी।


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