हिमाचली पुरुषार्थ : भारत-अमरीका व्यवसाय में कड़ी बने वरुण

By: Feb 7th, 2018 12:07 am

धर्मशाला के वरुण रत्न सिंह ने व्यावसायिक स्तर पर भारत और अमरीका के रिश्तों को मजबूत करने की सराहनीय पहल की है। वरुण भारत और हिमाचल प्रदेश में अमरीकी व्यवसायियों के साथ मिलकर नए स्वरोजगार और रोजगार के आयाम स्थापित करने के लिए कार्य करने जा रहे हैं। साथ ही वरुण रत्न सिंह डिवेलपमेंट लॉजिक कंपनी की स्थापना करके प्रदेश के युवाओं को डिजिटल इंडिया के तहत रोजगार से जोड़ चुके हैं…

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में स्थित धर्मशाला के वरुण रत्न सिंह ने व्यावसायिक स्तर पर भारत और अमीरीका के रिश्तों को मजबूत करने की सराहनीय पहल की है। वरूण भारत और हिमाचल प्रदेश में अमरीकी व्यावसायियों के साथ मिलकर नए स्वरोजगार और रोजगार के आयाम स्थापित करने के लिए कार्य करने जा रहे हैं। साथ ही वरुण रत्न सिंह डिवेलपमेंट लॉजिक कंपनी की स्थापना करके प्रदेश के युवाओं को डिजिटल इंडिया के तहत रोजगार से जोड़ चुके हैं। वरुण ने जब इंजीनियरिगं की पढ़ाई पूरी की, तो उनके समक्ष विदेशों में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध थे। इस सबके बावजूद अपने प्रदेश में ही आकर नया स्कोप शुरू करके युवाओं को भी रोजगार प्रदान करने की पहल की है। वरुण ने हिमाचल प्रदेश की ऐतिहासिक संस्कृति कांगड़ा मैनेचर पेंटिंग को जीवित और प्रोमोट करने के लिए कांगड़ा आर्ट प्रोमोशन सोसायटी की भी स्थापना की। यह संस्था पिछले 10 वर्षों से विभिन्न कलाकारों को अच्छा मंच प्रदान करके प्रमोट करने का कार्य कर रही है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में वरुण रत्न सिंह का जन्म नौ फरवरी 1981 को हुआ। वरूण की माता अंजु रत्न जीएवी सीनियर सेकेंडेरी स्कूल में प्रिंसीपल के रूप में सेवाएं प्रदान कर रही हैं। जबकि पिता स्वर्गीय रत्न सिंह चंदेल टाउन एंड कंट्री विभाग में डिविजनल प्लानर के पद पर कार्यरत थे। वरूण की पत्नी शिल्पा जैन डिवेलपमेंट लॉजिक कंपनी की सह-संस्थापक है। वरुण ने अपनी आरंभिक पढ़ाई दसवीं तक सेक्रेड हार्ट हाई स्कूल, सिद्धपुर (धर्मशाला) और जमा दो की पढ़ाई जीएवी स्कूल, कांगड़ा में की। वरुण ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई नोर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी और इंस्टीच्यूट ऑफ रूरल मैनजमेंट आनंद, गुजरात से की। एमबीए का अध्ययन करते हुए उन्हें अमूल-टाटा स्कोलरशिप भी प्रदान की गई। इंजीनियरिगं में पढ़ाई करते हुए एक दुर्घटना में उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने विदेशों में सेवाएं प्रदान करने के बजाय अपने देश और प्रदेश में ही नए विकल्प तलाश कर रोजगार शुरू किया। वह चाहते तो अपनी शैक्षणिक योग्यता की बदौलत विदेशों में अच्छा-खासा पैसा कमा लेते, लेकिन ‘स्व’ की भावना ने उन्हें कभी अपनी मिट्टी से दूर नहीं होने दिया। वरुण रत्न सिंह ने देश भर के चुनिंदा 25-30 शहरों में चलने वाले ग्लोबल रोपर चैप्टर को स्मार्ट सिटी धर्मशाला में भी शुरू किया है। उनके द्वारा प्रदेश और शहर के युवाओं की सामाजिक समस्याओं के निदान में भागीदारी सुनिश्चित की गई। डिजिटल इंडिया की मुहिम को सफल बनाने के लिए वरुण ग्रामीण स्तर तक इंटरनेट और वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं। डिवेलपमेंट लॉजिक कंपनी के तहत ही शहर के मुख्य संस्थानों को इंटरनेट की दुनिया से जोड़ा जा रहा है। ग्लोबल उपभोक्ताओं को सर्विस एक्सपोर्ट करने का कार्य भी धर्मशाला शहर से ही किया जा रहा है। उन्हें कन्फेडेरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री में हिमाचल के सदस्य के रूप में शामिल किया जा चुका है। इसके अलावा आईआईटी मंडी के इन्क्यूवेटर केटलिस्ट के बोर्ड ऑफ गवर्नर में भी स्थान प्रदान किया गया है। वरुण वर्ष 2015 में जेनेवा में आयोजित वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की कान्फ्रेंस में भी भारत की ओर से भाग ले चुके हैं।

-पवन शर्मा, धर्मशाला

जब रू-ब-रू हुए…

सरकारी नौकरी का ख्वाब छोड़ें युवा

क्या अब वक्त आ गया है कि हिमाचली युवा सरकारी नौकरी का ख्वाब पालना छोड़ दें, क्या  संभव है ?

मैं कई सालों से बोल रहां हूं। लेकिन शायद हमारी शिक्षा पद्धति ही ऐसी है, जिससे आधुनिक तकनीक के रोजगार की बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। सरकारी क्षेत्र में भी मात्र पांच से 10 फीसदी ही रोजगार है। हिमाचल विकसित राज्य है, यहां पर्यटन, आईटी और वैज्ञानिक कृषि के क्षेत्र में स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं।

आपने नौकरी की लकीर कैसे तोड़ी और यह कैसे संभव हुआ ?

पढ़ाई के दौरान ही मैंने विदेश जाने का ख्वाब छोड़कर हिमाचल में काम करने का निर्णय लिया था। अपने निर्णय पर अडिग होकर दिन-रात मेहनत की और मौजूदा स्थिति व बाजार की जरूरतों पर अध्ययन कर कार्य शुरू किया, जिससे आज इस मुकाम तक पहुंच पाया हूं।

धर्मशाला जैसे छोटे से शहर से सारे विश्व में प्रगति का सांचा खींचना कितना कठिन है ?

धर्मशाला भले ही छोटा शहर हो, लेकिन लगातार प्रयास और दृढ़ निश्चय से मंजिल हासिल करना मुश्किल नहीं है। यहां बेहतर काम करने वाले लोगों की कमी है। जो अच्छा पढ़-लिख लेते हैं, वे अपने राज्य की बजाय बाहर की तरफ भागते हैं। हिमाचल में वर्ल्ड क्लास ट्रेनिगं सुविधा न होने से उस स्तर के लोग तैयार नहीं हो पाते हैं। ऐसे में आपको जमीनी स्तर से कार्य शुरू करना पड़ता है।

अब तक अंतरराष्ट्रीय जगत से आप कैसे रू-ब-रू हुए और तरक्की की इन राहों पर चलने का सिद्धांत क्या रहा ?

सीमित साधनों के साथ और ओपन मांइड होकर कार्य करते हैं। नए आइडियाज को क्रियान्वित करते हैं। हर प्रतिस्पर्धा में मुकाबला करने को तैयार रहने के साथ-साथ देश-विदेश में नए संबंध बनाकर उन पर कार्य किया जाता है।

भारत-अमरीका के रिश्तों में आपकी तलाश किस क्षेत्र में कितनी सफल मानी जा सकती है ?

भारत-अमरीका रिश्तों को लेकर अभी मैंने शुरुआत ही मात्र की है। व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए अमरीका भी कार्यालय खोले जाएंगे और अमरीकी बिजनसमेन भी हिमाचल पहुंचेंगे।

डिजिटल इंडिया में हिमाचल की संभावना का कैसे मूल्यांकन करेंगे ?

डिजिटल इंडिया में काफी संभावनाएं हैं। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा हिमाचल इसमें काफी आगे है। यहां पर बेसिक सर्विसेज मिल रहे हैं, जो कि आने वाले समय में काफी आगे बढ़ेंगी।

प्रदेश में इस बीच इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन हिमाचली पढ़े-लिखे नौजवान अगर सक्षम साबित नहीं हो रहा, तो दोष कहां है ?

संस्थानों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन क्वालिटी की बहुत अधिक कमी है। गुणात्मक शिक्षा देने वाले शिक्षकों की कमी भी मुख्य कारण है। युवाओं को मूलभूत सुविधाएं न मिलने के कारण भी उन तक आधुनिक तकनीक नहीं पहुंच पा रही है, और न ही युवा गहराई तक पहुंचकर अध्ययन कर पा रहे हैं।

आपकी दृष्टि में हिमाचली शिक्षित युवा को किस समाधान की ओर चलना होगा और यह कैसे होगा ?

युवा सपने तो संजो लेते हैं, पर उस दिशा में सही ऊर्जा के साथ गहराई तक नहीं पहुंच पाते। लोग बिना काम को सीखे और पर्याप्त अनुभव के बिना ही अधिक उम्मीद करने लगते हैं, जिससे कुछ भी सही नहीं हो पाता है।

ग्लोबल रोपर चैप्टर की शुरुआत करके आप किस मिशन पर काम कर रहे हैं ?

युवाओं को पर्यटन नगरी धर्मशाला से जोड़ने के लिए इस दिशा में प्रयास किए हैं। लेकिन इस क्षेत्र के संभावनाओं के हिसाब से युवा काम करने को तैयार नहीं होते हैं।

डिजिटल इंडिया के एजेंडा पर युवा शक्ति को आप कैसे प्रोत्साहित करेंगे ?

डिजिटल इंडिया के लिए कैंप, करंट ट्रेंड और सोशल मीडिया से जागरूक कर रहे हैं।

हिमाचल के कलात्मक व सांस्कृतिक पक्ष में आप कितनी सफलता के साथ जुड़ पाएं हैं और अब तक के अनुभव का निष्कर्ष क्या है ?

पिछले एक दशक से कांगड़ा पेंटिगं के माध्यम से 40 से अधिक कलाकारों को जोड़ने का काम किया है। एनजीओ के माध्यम से फेलोशिप भी दी जा रही है। कांगड़ा पेंटिंग की जीआई करवा दी गई है।

इस दिशा में सरकारी प्रयास क्यों विफल रहते हैं। आप वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिमाचली प्रयासों में क्या जोड़ना चाहेंगे, ताकि हम अपने अतीत से जुड़ी संस्कृति, कला व धरोहर मूल्यों को सलामत रख सकें ?

सरकारी प्रयास फेल नहीं होते हैं, हांलाकि सरकार पर भी इसकी निर्भरता रहती है।

हिमाचली के शैक्षणिक स्तर व सरकार की शिक्षा नीति को आप वर्तमान युग की प्रतिस्पर्धा में कहां पिछड़ा मानते हैं और इस लिहाज से युवाओं व अभिभावकों को आपकी राय क्या रहेगी ?

हिमाचल में पिछले एक दशक में ही शिक्षण संस्थान आए हैं। आईटी के क्षेत्र में करंट ट्रेंड से शिक्षण मैच नहीं करते हैं। अभी पुराने ढर्रे पर ही चलाया जा रहा है।

हिमाचल में गैर सरकारी संगठन या कंपनी खड़ी करने के लिए व्यवस्थागत व विभागीय तौर पर क्या अपेक्षा रहती है। क्यों नहीं हिमाचली युवा स्वरोजगार की चुनौतियों या स्टार्टअप जैसे जोखिम उठा पा रहे हैं ?

स्टार्टअप तो हाल ही में देश में शुरू हुआ है। हिमाचल में बेसिक चीजें आना शुरू हुई हैं, जिन्हें युवाओं तक पहुंचाने की जरूरत है। सरकार अपना कार्य कर रही है, लेकिन प्रतिभावान युवाओं तक पहुंच नहीं बन पाई है।

प्रदेश को आप किस तरह मुकम्मल होता देखेंगे। आपकी आशा किस क्षेत्र से है ?

हिमाचल में तीन क्षेत्र है जिनमें विकास हो सकता है। इसमें पर्यटन, आईटी और वैज्ञानिक कृषि में अपार संभावनाएं हैं।


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