हिमाचल-उत्तराखंड में किशाऊ बांध का विरोध

By: Feb 21st, 2018 12:05 am

शिलाई —भले ही गत 15 फरवरी को दिल्ली में हुई जल संसाधन मंत्री व छह राज्यों के मुख्यमंत्री की बैठक में हिमाचल-उत्तराखंड सहित छह प्रदेशों में किशाऊ बांध को लेकर सहमति बन ही गई है, लेकिन केंद्र व प्रदेश सरकारों को बांध से विस्थापित होने वाले हिमाचल व उत्तराखंड के लोगों से निपटना सबसे बड़ा पेंच है। विस्थापितों का कहना है कि सरकारें तो अपने-अपने लाभ तय करने के लिए बैठकें कर सहमति बना रही हैं, लेकिन उनका सब कुछ जलमग्न हो जाएगा। वे बेघर हो जाएंगे, उनके बारे में क्या नीति बनेगी।  सरकारें उन्हें कहां स्थापित करेगी बांध के निर्माण की बात चलते ही दोनों राज्यों के विस्थापितों की चिंता बढ़ने लगी है। रणनीति बनाने का दौर आरंभ हो गया है। किशाऊ बांध संघर्ष समिति के पदाधिकारी आगामी रणनीति बनाने में जुट गए हैं कि बांध निर्माण कैसे रोका जाए। हिमाचल व उत्तराखंड में बैठकों का दौर जारी है। दोनों राज्यों के विस्थापितों की बैठक में शामिल किशाऊ बांध संघर्ष समिति के अध्यक्ष मातवर सिंह तोमर, (उत्तराखंड) सोहन सिंह ठाकुर (हिमाचल) जौंसार बाबर समिति के आजीवन अध्यक्ष मुन्ना सिंह राणा, डा. भगत राम जोशी, वीर सिंह तोमर, गुमान सिंह तोमर, टिकम सिंह तोमर, वीरेंद्र सिंह चौहान, रूप राम तोमर, अतर सिंह चौहान, श्याम सिंह राणा, अजब सिंह चौहान, नरेश नेगी, धनी राम बिजल्वाण, प्रताप सिंह चौहान, उदय राम पांडेय सहित विस्थापित होने वाले दोनों राज्यों के लोगों का कहना है कि उन्हें बांध हरगिज मंजूर नहीं वे संघर्ष जारी रखेंगे तथा माननीय न्यायालय की शरण में भी जाएंगे। दस हजार करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली इस बहुउद्देश्यीय परियोजना से 660 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा और बांध बनने से छह राज्यों को 20 मिलियन क्यूसिक पानी दिया जाएगा। छह राज्यों व केंद्र सरकार मालोमाल हो जाएगी, लेकिन बांध बनने से हिमाचल के उपमंडल शिलाई व चौपाल के आठ राजस्व तथा 17 उपगांव तथा उत्तराखंड के पांच राजस्व तथा 12 उपगांव के किसानों की तीन हजार हेक्टेयर भूमि किशाऊ बांध की जद में आएगी, यह बांध ऐशिया का  दूसरा सबसे ऊंचा बांध होगा। बांध 236 मीटर ऊंचा, 680 मीटर चौड़ा होगा। बांध से बनने वाली झील की लंबाई 44 किलोमीटर होगी, जिसमें लगभग जल संग्रहण क्षमता 18 से 20 लाख घनमीटर होगी। किशाऊ बांध विस्थापितों का कहना है कि सरकार भूमि अधिग्रहण का कानून लगाकर भूमि अधिग्रहण करेगी और उन्हें मुआवजा देकर फारिक करेगी, लेकिन उनकी पुश्तैनी पैतृक जन्मभूमि, रहन-सहन, संस्कृति व सब कुछ जलमग्न हो जाएगा और हमेशा के लिए झील में दफन हो जाएगा, लेकिन वे अंतिम सांसों तक अपनी जन्मभूमि के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।

बांध से प्रभावित होंगे दोनों राज्यों के ये गांव

हिमाचल मोहराड़, मशवाड़, कुसेणू, डुडोग, चाकरी कंडियारी, नेरा, सियासू, चमेयारा, खनाणा, रईणी, बडालाणी, मिनस, गुम्मा, अंतरावली, उत्तराखंड के शंभर खेड़ा, मैलोथ, मझागांव, कोटा, मलेथा, गमरी, रामढुगा, बोहग, सावड़ा, आसोई, पिपीयारा, पाटण, सैंज, अटाल, चांजोई, हिड़सू, प्लासू अणू सहित दर्जनों उपगांव हैं। ये वे गांव हैं जो डूब क्षेत्र में आएंगे। इसके अतिरिक्त कई गांव डेंजर जोन में भी आ रहे हैं।


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