अपराध के छत्ते और पुलिस

By: Mar 24th, 2018 12:05 am

अपराध के जिस तंत्र का नाम माफिया है, उसकी शाखाओं में हिमाचल की चुनौती बढ़ रही है। शिमला में पुलिस साइंस कांग्रेस के मंथन में कानून व्यवस्था के अपरिहार्य बंदोबस्त तथा तकनीकी व वैज्ञानिक पक्ष को लेकर, भविष्य की सूरत में विभागीय समीक्षा हो रही है। ऐसे में हिमाचल के सामने अपनी भोली-भाली सूरत पर नशे जैसे दाग का होना चिंता का विषय है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्रादेशिक  चुनौतियों के बीच कानून-व्यवस्था के प्रहरियों को जो पाठ पढ़ाया है, वहां सारी परिपाटी को बुलंद करने की इच्छाशक्ति का परिचय भी लाजिमी तौर पर जुड़ता है। जाहिर है पिछली सरकार के दौर के जख्म जिस तरह कोटखाई व होशियार सिंह प्रकरण के नाम से लज्जित करते रहे हैं, उनसे रू-ब-रू हेल्पलाइन शुरू करके जयराम सरकार ने अपने इरादे जाहिर किए हैं। ऐसे में अगला हल्ला अगर नशे व माफिया के खिलाफ बोलना है, तो संगठित होते अपराध के छत्ते तोड़ने पड़ेंगे। यह साधारण किस्म के अपराध नहीं हैं और इसके लिए काबिलीयत, साहस व सामर्थ्य से भी आगे पुलिस को निष्पक्ष संकल्प शक्ति व स्वतंत्रता से कार्रवाई करने की छूट देनी होगी। दरअसल अपराध के खिलाफ सशक्त कानून-व्यवस्था के मायने बदल गए हैं और अब जांच के स्तर व निष्पक्षता के हिसाब से आधुनिक तकनीक की अनिवार्यता निरंतर बढ़ रही है। बेशक शिमला, मंडी व धर्मशाला में स्थापित क्षेत्रीय फोरेंसिक प्रयोगशालाओं के माध्यम से हिमाचली पुलिस का नजरिया बदला है, लेकिन बदलते अपराध को पकड़ने के लिए पुलिस अनुसंधान, ढांचे व ढर्रे में परिवर्तन तथा विकास की जरूरत है। साइबर क्राइम की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहुंच के कारण राज्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति पर कुप्रभाव पड़ा है, तो आर्थिक अपराध के कई संगठित गिरोह हमारे आसपास घूम रहे हैं। ऐसे में ज्ञान-विज्ञान के दर्पण में बेरोजगार हो रही युवा क्षमता का रिसाव होता है, तो अपराध की साजिश में पीढि़यों के खतरे बढ़ रहे हैं। इसी के साथ सोशल मीडिया के जरिए जो दुनिया हमारे आसपास घूम रही है, उसमें उचित-अनुचित के मानदंड नहीं हैं, लिहाजा युवा मन के विचारों में विद्वेष, दिशाहीनता तथा ग्लैमर से भरी अव्यावहारिक दुनिया पूरे समाज की रिवायतें बदल कर केवल आक्रोश का भयावह जंगल पैदा कर रही है। सोशल मीडिया की उपयोगिता के बजाय इसके जरिए पैदा हो रही उच्छृंखलता का  हिसाब, सामाजिक मूल्य चुका रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में सोशल मीडिया के जरिए लोक संस्कृति की पैरवी करने वाले समुदाय से कहीं अधिक विकृत मानसिकता के उद्वेग में फंसा चरित्र भी पनप रहा है और इससे निजात पाने के लिए समाज को नैतिकता के पैमाने सहज करने पड़ेंगे। मुख्यमंत्री जयराम ने युवा पीढ़ी पर केंद्रित आपराधिक षड्यंत्रों की ओर जिक्र करके अपनी तथा समाज की जिम्मेदारी बढ़ा दी है। शिक्षा का वर्तमान ढांचा जिस दिशा में युवा क्षमता को भटकने के लिए मजबूर कर रहा है, वहां बड़े प्रयास करने की जरूरत है, तो पाठ्यक्रमों की सादगी में जीवन को निरूपित करती विधाओं का श्रीगणेश भी करना होगा। हिमाचल में गीत-संगीत व कला क्षेत्र के विस्तार के अलावा खेलों की ओर रुचि बढ़ाने के लिए ढांचा और मौका बढ़ाना होगा, वरना अंधी दौड़ में फंसे युवा या तो राजनीति के मार्फत आशाएं बटोरने को उत्सुक हो रहे हैं या माफिया के जाल में कमाने की राह पकड़कर बर्बादी चुन रहे हैं। पर्यटन के मार्फत कमाई और लुटाई में फर्क करना कम होता जा रहा है, इसलिए हमारी छाती पर नशे की खेप उतर रही है या मनोरंजन के नाम पर अनैतिक धंधे पनप रहे हैं। बेशक समाज और संस्कृति की किलेबंदी असंभव है और यह भी कि केवल पुलिस ही एकमात्र उपाय नहीं, इसलिए हिमाचली परिप्रेक्ष्य में नागरिक समाज को भी नए संदर्भों में जागरूक होना होगा। प्रदेश के सीमांत इलाकों में अंतरराज्यीय संपर्कों से फैल रहे संगठित अपराध तंत्र के मुकाबले हिमाचल पुलिस की नफरी व सामर्थ्य बढ़ाना होगा। अब समय आ गया है, जब बड़े जिलों यानी शिमला, कांगड़ा, मंडी, सोलन व बीबीएन में पुलिस आयुक्त नियुक्त करने होंगे, जबकि अन्य में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के हिसाब से अलग-अलग पुलिस अधीक्षकों  के ओहदों को मंजूरी देनी होगी।


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