कहानी

By: Mar 11th, 2018 12:04 am

विकास के पड़ाव

जालंधर जाती बार ख्याली राम नाई की दुकान पर नए शहर में पहली बार बाल कटवाने बैठा था। पहले से कतार में बैठे पांच ग्राहक अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। मैं भी अपनी बारी के लिए बैठ गया। ख्याली राम बहुत पहुंची हुई हस्ती मालूम हुई। पहले पंद्रह मिनट में उसने केंद्र और राज्य की सरकार बातों-बातों में पलट दी। तीसरे नंबर के ग्राहक प्रोफेसर सूद ने बाल कटवाती बार ख्याली राम के कई सवालों को नजरअंदाज कर कोई जवाब नहीं दिया। आदतन ढीठ ख्याली राम ने नए मुद्दे पर पैंतरा बदला, ‘प्रोफेसर साहब! आपको क्या लगता है, क्या इस गांव की दो पंचायतें बन जानी चाहिए।’ प्रोफेसर ख्याली राम को कोई जवाब नहीं दे रहे थे। अपनी लगातार उपेक्षा के चलते ख्याली राम ने मेरी तरफ  मुखातिब होकर पूछा, ‘क्यों भाई साहिब, आप बताओ, इस गांव की दो पंचायतें बननी चाहिए।’ मैंने खामोशी से सिर क्या हिलाया, ख्याली राम मेरे पीछे पड़ गया। ‘नहीं नहीं, भाई साब! हम तो अब अपने गांव को नगर बनवाना चाहते हैं।’

एक बुजुर्ग  सज्जन भी एक किनारे बैठे थे। उन्होंने कहना शुरू किया, ‘ख्याली राम! यह गांव रियासत कालीन नगर है। राजा रघुनाथ ने इसका सपना देखा था। उन्होंने अपनी नई राजधानी इसी नगर में बसाई। उनके वंशज लक्षमण सिंह और राजा चैन सिंह ने भी इस गांव को नया विकासशील नगर बनाने का पूरा यत्न किया।’ वहां बैठे एक सज्जन ने पूरा समर्थन देते हुए कहा कि यह गांव नगर जरूर बनना चाहिए ताकि तेजी से विकास सुनिश्चित  हो सके। अब गांव को नगर बनाने की बहस जंग तीव्र गति पकड़ती जा रही थी। भोलाराम ने तो गांव को नगर बनाने की जोरदार वकालत की। उन्होंने यहां गांव के रेलवे स्टेशन का हवाला रिकार्ड सहित दर्ज करवाया, ‘हजूर! हम पांचवीं में पढ़ते  थे, इस गांव में रेलमंत्री ने रेलवे स्टेशन का शिलान्यास कर नया नगर बसाने की परिकल्पना की थी।’ वह मेरी ओर देखते हुए बोला, ‘जनाब! वह मंत्री रेलवे स्टेशन के शिलान्यास के कुछ दिनों बाद समस्तीपुर बम विस्फोट में मारा गया। आज 45 साल बाद यहां रेलगाड़ी उस रेल मंत्री के कारण पहुंची। रेलवे वालों ने उस रेल जन्मदाता दिवंगत रेल मंत्री की याद में उसकी आदमकद प्रतिमा अथवा नाम लिखना भी मुनासिब नहीं समझा।’

तभी एक राजनेता वहां आ धमके! बोले!! किसको नगर बनवाना है, यहां बहुत भारी टैक्स जनता पर लग जाएंगे। गरीब जनता त्राहि-त्राहि पुकारेगी। मैं चुपचाप सारी चर्चा सुनता आ रहा था। एकाएक राजनेता का स्वर चेतावनी वाला रूखा था। बोला, ‘जब तक हम नहीं चाहते यह गांव सपने में भी नगर नहीं बन सकता। जो हमारी सीमाएं लांघकर गांव को नगर बनवाने की मांग करेगा, उसको हम देख लेंगे।’ मेरी हार्दिक इच्छा हुई कि उन राजनेता सज्जन का नाम पूछा जाए। मैंने अगले पल इरादा बदला। मुझे इस झमेले में क्यों पड़ना। एक पल मैं किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर अवाक सा ठगा रहा। मुझ सचमुच परदेशी को क्या लेना-देना। अब मेरी बाल कटवाने की बारी थी। नाई ख्याली राम ने मुझे पूछा, ‘आप इस गांव में नए लगते हैं। कहां से आए हैं, क्या करते हो, कहां रहते हो, आप शायद सीआईडी पुलिस में काम करते हो।’ अब मुझे इतने ढेर सारे प्रश्नों का उत्तर तलाश करना था। मैंने अपना परिचय आगे बढ़ाया। मैंने कहा, ‘मैं खबरनवीस हूं। पहली बार सत्तर के दशक में अपने दादा के साथ राजपुर जसवां में किसी दूर-पार के रिश्तेदारों की शादी में आया था। जैसा कि अभी-अभी एक सज्जन फरमा रहे थे। रेल मंत्री द्वारा रेलवे स्टेशन का शिलान्यास वाला ही दिन था। मैंने दादाजी से रेलवे शिलान्यास देखने का हठ किया था। नई जगह होने से मन में यह भी प्रबल भावना थी कि शायद उस रेलवे जंक्शन पर रेलगाड़ी देखने को मिल जाएगी। परंतु वहां इंतजार करने पर निराशा मिली। रेल मंत्री ने भाषण में उल्लेख किया था कि इस रेलवे जंक्शन से सारे हिमाचल को जोड़ा जा सकेगा। सामरिक महत्त्व के चलते रेलगाड़ी जम्मू-कश्मीर तक पहुंचाई जाएगी। यह सर्वसुलभ ब्राडगेज रेलवे ट्रैक होगा। इससे जम्मू-कश्मीर में तैनात सैनिकों  को रसद भी पहुंचाई जाएगी।’ नाई ख्याली राम मेरी बातों से काफी प्रभावित  हुआ। उसने मेरे लिए मेरे काफी इनकार करने पर भी स्पेशल चाय मंगवाई। मैंने बतलाया, ‘मुझे जालंधर में हिंदी मिलाप अखबार के संपादक विश्व कीर्ति यश जी से मिलने जाना है।’ ख्याली राम की चाय का आग्रह मैं टाल नहीं पाया। इतने में एक सरदार जी वहां आए। उन्होंने किसी व्यक्ति का पता पूछा। उनकी बातों से लग रहा था कि वह उस अंब गांव के नाम को लेकर भड़ास निकाल रहे थे। काला अंब! जौड़े अंब!! टेढ़ा अंब!!! पीपलू अंब!!!! आपणा सामान पूज्या काला अंब।

ख्याली राम बोला, ‘अंब के साथ नगर लगाकर इसे अंबिकानगर अंब की नई पहचान दे दी जानी चाहिए।’ मैंने अंब के छोटे से बस स्टाप से जालंधर की बस पकड़ ली। अपने तीन घंटे के सफर में मैंने अंब को नया अंबिकानगर बनवाने की तजवीज पर एक बड़ा आलेख साकार किया जिसे कलमबद्ध किया जाना था। अखबार के संपादक जी से अंब को अंबिकानगर नामकरण की चर्चा की तो वह इसे अनावश्यक कह कर टाल गए। कई साल के अंतराल बाद मुझे एक बार पुनः नाई ख्याली राम की दुकान में जाना पड़ा। मंडी जाने वाली बस काफी देरी से आनी थी। वहां एक बार पुनःअंब को अंबिकानगर की बहस छिड़ी। वहां पर काफी अपरिचित बैठे थे, जिनमें कोई कुलदीप कटवाल जी वहां आए। उन्होंने भी नामकरण की चर्चा में भाग लिया। मामा पंडित कृष्ण चंद ने बोला कि यह मामला लंबा चलेगा। एक अंग्रेज ने एक सयानी माई को कलकत्ता आकर पूछा, यह शहर कौन सा है। माई ने पिछले कल घास काटकर रखा था। उसने सोचा गोरा घास बारे पूछ रहा है। बोली, कल काटा। अंग्रेज ने शहर का नाम ही कलकत्ता कर दिया। बंबई से मुंबई, उड़ीसा से ओडीसा, बंगलौर से बैंगलूरू, मद्रास का चेन्नई-यह मसले लंबे चलते हैं। इस घटनाक्रम के कई सालों बाद मुझे 2000 में एक बार अंब आने का मौका मिला। मेरा सरकारी सेवा में यहां तबादला हुआ था। मैं आदतन ख्याली राम नाई की दुकान में गया। इस पुराने अंब को नया अंबिकानगर नामकरण हेतु अब कई साल बीत चुके थे। मुझे यह जानकर अपार खुशी है कि नया रेलवे स्टेशन बनकर इस गांव में अब रेलगाड़ी आ गई है। ख्याली राम जी ने बड़ी गर्मजोशी से मुझे अंब के बारे में कई विकास बुलंदियों को गिनाया। ख्याली राम बोला, ‘गुरूजी! अब सचमुच ही अंब के दिन बदलने वाले हैं! अब तो गुड़गांव से गुरूग्राम नामकरण भी मंजूर हो गया है। रेलगाड़ी के अंबाला-दिल्ली को रोजाना चलने से यकीनन अंब से अंबिकानगर का सब जगह प्रचार-प्रसार हो रहा है।’ मैंने भी खुशी जताई कि अब ललित मिस्रा रेल मंत्री का अंब रेलवे स्टेशन भी बहुत बड़ा अंबिकानगर-अंब रेलवे जंक्शन बनवाने का सपना साकार हो जाएगा।

           -राजीव शर्मा, अंबिकानगर, अंब,

                ऊना (साहित्य संवाद ग्रुप से)  


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