नेरवा में लावारिस पशु बने सिरदर्द

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

नेरवा,चौपाल – सरकार गोधन को संरक्षित करने के लिए जितनी चाहे योजनाएं बना ले या जितने मर्जी फरमान जारी कर दे लोगों द्वारा बेकार हो चुके पशुओं को बेसहारा छोड़ने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जो गाय दूध देना बंद कर दे व बैल जोतने योग्य न रहे  अधिकांश लोग इन पशुओं को घरों से खदेड़ देते हैं। दूध देना बंद कर चुकी गउओं व बूढ़े हो चुके बैलों को तो लोग अकसर बेसहारा छोड़ ही देते हैं। अब तो लोगों ने छोटे- छोटे बछड़े-बछडि़यों को भी घरों से धकेलना शुरू कर दिया है। शिमला-नेरवा-फेडिज पुल मार्ग पर सैकड़ों आवारा पशु अकसर देखे जा सकते हैं। इनकी सबसे अधिक संख्या इस मार्ग पर रियुणी व देहा के बीच है। ये पशु दिन भर सड़क के किनारे जंगल में घास चरने के बाद शाम ढ़लते ही सड़क में अपना बसेरा कर लेते हैं। रियुणी और देहा के बीच के क्षेत्र में भयंकर ठंड पड़ती है। सर्दियों के मौसम में रात को तो इस क्षेत्र का तापमान शून्य से भी कम होता है। ये बेजुबान पशु इस भयंकर ठंड में जिंदगी और मौत की जंग लड़ते रहते हैं व कुछ पशु तो ठंड बर्दाश्त न कर दम तोड़ देते हैं। कुछ पशु जंगली जानवरों का शिकार बन जाते हैं। जंगली जानवरों के शिकार इन पशुओं के कंकाल अकसर सड़क के किनारे पड़े देखे जा सकते हैं। इसके आलावा नेरवा बाजार में भी आवारा पशुओं की बड़ी तादाद है। छोटे-बड़े सभी बाजारों में भी आवारा पशुओं की भीड़ लगी रहती है। उपमंडल चौपाल के छोटे-बड़े सभी बाजारों में लोगों द्वारा ऐसे सैकड़ों पशु छोड़े गए हैं। नेरवा, चौपाल, चंबी, कुपवी, झिकनी पुल, दवड्डा, बानी, गुम्मा आदि बाजारों में ये आवारा पशु दिन भर इधर-उधर मुंह मारते रहते हैं। भूख से कल्पते ये पशु बाजारों में दुकानों में रखे खाद्य पदार्थों पर तो मुंह साफ करते ही हैं। इन भूखे बेजुबान जानवरों को कागज, पॉलिथीन, जो भी मिल जाए खा जाते हैं। बाजारों में घूमने वाले ये पशु कई बार दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं। लोगों द्वारा छोड़े गए ये पशु फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। प्रत्येक पंचायत में गोसदन बनाने की सरकार की योजना भी मात्र कागजों तक ही सिमट कर रह गई है। लोगों को नई सरकार से उम्मीद है कि यह सरकार गोधन को बचाने के लिए जो योजनाएं लेकर आई है उनको जल्दी ही मूर्त रूप मिलेगा व दर-दर भटक रहा यह गोधन संरक्षित हो पाएगा।

 


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