मर्यादा की रामनवमी

By: Mar 24th, 2018 12:11 am

राम अपने भाई को राजा और स्वयं तपस्वी बने रहने में अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। सुविधाओं से भरे जीवन की अपेक्षा परमार्थ प्रयोजनों के लिए कष्ट- कठिनाई सहना श्रेयस्कर मानते हैं…

भगवान् के अवतार सदा अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना, साधुता का परित्राण और दुष्कृत्यों का विनाश, इन दो प्रयोजनों को लेकर होते हैं। जब भी, जो भी अवतारी देवदूत इस धरती पर आए हैं, तब उन्होंने बढ़ी हुई असुरता को निरस्त किया और डगमगाते हुए देवत्व का संतुलन संभाला है। जिनके भीतर इन दो प्रयासों के लिए तीव्र उत्कंठा जग रही हो, जिनका कर्त्तव्य इस दिशा में जितना प्रखर हो रहा हो, समझना चाहिए उनके अंतःकरण में भगवान् की उतनी ही ज्योति जगमगा रही है। अवतारी देवदूतों का जन्म, जयंती मनाने का भी प्रधान उद्देश्य यही है कि उन्हें जो कार्य अत्यधिक प्रिय हैं, जिसके लिए वे देह धारण करते और कष्ट सहते हैं, उनका अनुकरण-अनुगमन हम भी करें। यों तो अवतार चौबीस अथवा दस हुए हैं। पर उनमें प्रधानता भगवान् राम और कृष्ण को दी जाती है। इन्हीं की कथा-गाथाएं प्रख्यात हैं। रामलीला, कृष्णलीला भी इन्हीं की होती है। देव मंदिरों में इन्हीं की प्रतिमाएं हैं। अन्य अवतारों की भी चर्चा- प्रतिष्ठा है, पर इतनी नहीं, जितनी इन दो की। कारण कि इन दो का अवतरण, शिक्षण उन विशेषताओं से भरा पड़ा है, जिनकी मानवीय जीवन को समुन्नत, विकसित बनाने में नितांत आवश्यकता है। मर्यादाओं का पालन, कर्त्तव्य पर अविचल निष्ठा, व्यवहार में सौजन्य और अनीति के विरुद्ध प्रबल संघर्ष यह चारों ही लक्ष्य ऐसे हैं, जिन्हें रामचरित के कथा प्रसंगों में पग-पग पर पाया जा सकता है। जन्म से लेकर लीला समापन तक के सभी प्रसंगों में उत्कृष्ट आदर्शवादिता ही भगवान् राम चरितार्थ करते रहे। चारों भाई गेंद खेलते हैं, छोटे भाई भरत को विजयी सिद्ध करने और प्रसन्न करने के लिए राम हारने का अभिनय करते हैं। अपनी हेटी भी होती हो, पर छोटों को श्रेय मिलता हो, तो अपनी बात को भुला ही दिया जाना चाहिए। बचपन में ही महर्षि विश्वामित्र यज्ञ की रक्षा के लिए उन्हें मांगने आए, तो प्राण हथेली पर रख खुशी-खुशी तपोवन में चले जाते हैं। लाभ तो विश्वामित्र का और यज्ञ की रक्षा में अपने प्राणों का संकट, वे इस तरह नहीं सोचते; वरन् शुभकार्य कहीं भी किया जा रहा हो, कोई भी कर रहा हो, उसमें भरपूर सहयोग करना आवश्यक है। वे प्राणों तक का खतरा उठाकर ऋषि की पूरी सहायता करते हैं। किशोर होते हुए भी महाबलिष्ठ असुरों से जूझते हैं। विमाता कैकेयी वनवास देना चाहती हैं। विमाता को माता से बढ़कर उन्होंने माना और माता की प्रसन्नता के लिए वनवास स्वीकार किया। वन गमन स्वीकार करके उन्होंने पिता को अपनी प्रामाणिकता अक्षुण्ण बनाए रखने तथा वचन पालन का अवसर प्रदान किया। चित्रकूट में भरत मिलते हैं। वे वापस चलने का अनुरोध करते हैं। राज्य सुख भोगने को कहते हैं। राम अपने भाई को राजा और स्वयं तपस्वी बने रहने में अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। सुविधाओं से भरे जीवन की अपेक्षा परमार्थ प्रयोजनों के लिए कष्ट-कठिनाई सहना श्रेयस्कर मानते हैं, वे सुविधाओं को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं। हारे हुए दुर्बल शरीर का न्यायानुमोदित समर्थन करते हुए प्रचंड बलशाली से जूझते हैं। जन्म-जाति के आधार पर ऊंच- नीच की अवांछनीय मूढ़ता पर प्रहार करते हैं और शबरी के जूठे बेर खाते हैं। शूर्पणखा के रूप और वैभव भरे प्रस्ताव को अस्वीकार करके एक पत्नीव्रत की प्रबल निष्ठा का परिचय देते हैं। असुरता के आतंक से लड़ने में जब समझदार मनुष्य अपनी प्रत्यक्ष हानि देख साथ नहीं देते, तो नासमझ कहे जाने वाले पिछड़े वर्ग के वानरों की सेना गठित करते हैं और संसार को बताते हैं कि पाप बाहर से कितना ही बड़ा बलवान् क्यों न दिखता हो, भीतर से अत्यंत दुर्बल होता है और उसके विरुद्ध मनस्वी लोग उठ खड़े हों, तो असुरता की बालुका निर्मित दीवार ढहने में देर नहीं लगती। अनेक वरदानों से शक्ति- संपन्न रावण जब मारा गया और उसके शरीर में अनेक बाण-व्रण पाए गए, तो राम ने यही कहा, मेरा बाण तो एक ही लगा है, बाकी घाव तो उसके कुकर्मों के हैं, जो अपने आप ही फूटे हैं। अपनी विजय का रहस्य भी उन्होंने धर्म रथ पर आरूढ़ होना बताया है। न्याय नीति और सत्य में हजार हाथी के बराबर बल होता है। वह साधनरहित होते हुए भी अंततः विजयी होकर ही रहता है। प्रजा की प्रसन्नता के लिए अपनी पत्नी को वनवास भेजना, यज्ञ के अवसर पर पत्नी की आवश्यकता बताए जाने पर भी एक पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह की बात अंगीकार न करना, वृद्धावस्था में तप साधना करने के लिए वानप्रस्थ, संन्यास पर पराओं को स्वीकार करना जैसे अनेक प्रसंग ऐसे हैं, जिनका घटनात्मक वर्णन हजार प्रवचनों से बढ़कर है। रामनवमी के अवसर पर भगवान् राम का जन्म दिन मनाते हुए ऐसे ही घटनाक्रम और प्रसंग सुनाए जाएं ताकि जन साधारण को राम-भक्ति के रूप में उनके अनुगमन की प्रेरणा मिले। रामनवमी ऐसे ही संदेशों और प्रेरणाओं से भरी हुई है। लोगों को यही समझाया जाना चाहिए कि भगवान् राम के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने के लिए उन्हें उनके संदेश हृदयंगम करने पड़ेंगे।

॥ पर्व पूजन क्रम॥

*  रामनवमी पर भगवान् राम का चित्र देवमंच पर सजाया जाए। उनके साथ देवी माता सीता, बंधुगण एवं आदर्श सेवक हनुमान् भी हों।

॥ श्रीराम आवाहन॥

*           भगवान् श्रीराम के जन्म दिवस के पावन पर्व पर उनका प्रकाश हम सबके अंतःकरण में और वातावरण में अवतरित हो, ताकि उनके अनुरूप क्रम अपनाने और जीवन में श्री- समृद्धि और संतोष का संचार करने में हम समर्थ हों।

॥ श्री सीता आवाहन ॥

*           पवित्रता और निष्ठा की मूर्ति मां सीता पवित्र प्रवाह बनकर हम सब में संचरित हों, ताकि हम अपूर्णता को पूर्णता में बदल सकें।

॥ हनुमान् आवाहन॥

*           भक्तराज हनुमान् प्रभु समर्पित पुरुषार्थ की प्रचंडधारा के रूप में अवतरित- संचरित हों, जिससे स्वार्थ और निष्क्रियता के फंदे कटें, असुरता क्षीण हो और जीवन धन्य बने।  संकल्प के बाद यज्ञ, दीपयज्ञ, आरती आदि समापन के उपचार किए जाएं।


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