मोदी बनाम मोदी विरोधी

By: Mar 19th, 2018 12:05 am

चुनावी समीकरण साफ  होते जा रहे हैं। 2019 के चुनाव प्रधानमंत्री मोदी बनाम मोदी-विरोधी मोर्चे के बीच होंगे। अब उस मोर्चे का आकार क्या होगा? उसका नेतृत्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करेंगे या यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी अथवा ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू सरीखे नेताओं में से कोई करेगा, फिलहाल यह तय होना शेष है। प्रधानमंत्री मोदी अपने एजेंडे पर कायम हैं। उनके सामने 2022 का ‘नया भारत’ है, जब देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा। कांग्रेस किसान और नौजवान के मुद्दे चिह्नित कर चुनाव लड़ना चाहती है। राहुल गांधी ने कांग्रेस महाधिवेशन में भी यही प्रलाप किया है कि देश थका हुआ है। देश खतरे में है। सरकार डर और खौफ  पैदा कर लागों को बांट रही है। विपक्ष की तमाम दलीलें, बहसें किसान, गरीब, मजदूर, दलित-पिछड़े, अल्पसंख्यक और नौजवानों को रोजगार तक ही सिमटी रही हैं। या 15 लाख रुपए, काला धन, भ्रष्टाचार और 2 करोड़ नौकरियों पर रटे-रटाए सवाल हैं। प्रवक्ता तोते की तरह बोलते दिखाई देते हैं। बेशक देश के संदर्भ में ये चिंताएं गौरतलब हैं, लेकिन सिर्फ ये ही चिंताएं नहीं हैं। कई और प्राथमिकताएं भी हैं, जो राजनीति से गायब रखी गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी की आत्मा में देश के 130 करोड़ से अधिक नागरिकों के उत्थान और विकास के संकल्प हैं। एक टीवी चैनल द्वारा आयोजित ‘राइजिंग इंडिया’ सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने इसकी परिभाषा दी और उसे देश के तमाम नागरिकों के स्वाभिमान, संकल्प और आत्मगौरव के भाव से जोड़ा। अपने महत्त्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने खुलासा किया कि लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में जिन 18,000 से ज्यादा गांवों में बिजली पहुंचाने का संकल्प लिया गया था और अफसरों को 1000 दिन का वक्त दिया गया था, उनमें से 16,452 गांवों में ‘उजाले’ बिखर चुके हैं। इनमें से करीब 13,000 गांव पूर्वोत्तर में हैं। आजादी के 70 साल बाद देश के हजारों गांवों के नागरिकों को बिजली नसीब हुई है। हजारों ने पहली बार बिजली को देखा और महसूस किया है। यह ‘अंधकारमय विरासत’ किसने दी थी? क्या सोनिया गांधी के लिए यह भी ‘जुमलेबाजी’ है? बिजली मुहैया कराने के ‘ड्रामे’ यूपीए सरकार ने किए थे, जिसके तहत खंभे गाड़ने, तार बिछाने को ही ‘विद्युतीकरण’ करार दिया जाता रहा था। आज देश के 13 करोड़ से ज्यादा घरों में शौचालय हैं, जो संख्या 2014 तक करीब 6.5 करोड़ थी। करीब 3.5 करोड़ घरों में ‘उज्ज्वला’ योजना के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं। यह सिलसिला अब भी जारी है। हर रोज औसतन 40 किलोमीटर सड़कों के निर्माण का लक्ष्य तय किया गया है। अब भी औसतन 28-30 किलोमीटर सड़क हर रोज बनाई जा रही है। देश थका हुआ है या कांग्रेस की दृष्टि और सोच कमजोर हो रही है? यह सोनिया-राहुल गांधी को विचार करना है। फिजूल की बयानबाजी से इन राष्ट्रीय प्रयासों को छिपाया नहीं जा सकता। ‘मोदीकेयर’ के तहत 50-60 करोड़ नागरिक स्वास्थ्य सेवाओं और मुफ्त इलाज प्राप्त कर सकेंगे। हरेक को 5 लाख रुपए सालाना तक की मदद सरकार देगी। यह राष्ट्रीय बजट की घोषणा है, प्रधानमंत्री मोदी ने किसी रैली में नहीं कहा है। पहले टीकाकरण की दर मात्र एक फीसदी थी, जो अब 6 फीसदी से ज्यादा है। 2025 तक भारत को क्षयरोग मुक्त बनाने का संकल्प भी लिया गया है। विश्व स्तर पर यह लक्ष्य 2030 तक का है। क्या ये विकास, समाज कल्याण और राष्ट्रीय संतुलन के प्रतिमान नहीं हैं? कांग्रेस भी मानती है कि यह ‘वक्त बदलाव का’ है, लेकिन बुनियादी तौर पर बदलाव का व्यावहारिक काम मोदी सरकार कर रही है। इनके अलावा, सौर ऊर्जा को लेकर आज भारत दुनिया में सूत्रधार बना है और कई देशों के गठबंधन का नेतृत्व कर रहा है। हम जीडीपी की विकास दर, दुनिया में उभरती तीसरी अर्थव्यवस्था, विदेशी मुद्राकोष, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भारत की मौजूदगी की फिलहाल बात ही नहीं कर रहे हैं। भारत आज दुनिया की बड़ी डिजिटल मार्केट बनता जा रहा है। मोदी सरकार 2018 में ‘मुद्रा’ योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपए के कर्ज देगी। उनसे रेहड़ीवालों, फुटपाथवालों, छोटे कारोबारियों, दलित-पिछड़ी जमातों की महिलाओं के कारोबार बढ़ेंगे। सरकार अभी तक ऐसे 11 करोड़ से अधिक स्वरोजगार मुहैया करा चुकी है। संगठित क्षेत्र में भी नौकरियों में 40 फीसदी के करीब वृद्धि हुई है। माना जा सकता है कि कई जगह नौकरी और भर्तियों को लेकर विवाद सामने आए हैं, असंख्य हाथ अब भी रोजगार से खाली हैं, लेकिन तमाम तोहमतें मोदी सरकार पर चस्पां नहीं की जा सकतीं। वह निष्क्रिय नहीं बैठी है। मोदी विरोधियों को समझना चाहिए कि सरकारी नौकरियां ही जरूरी नहीं हैं, बल्कि औसत भारतीय के हाथ में रोजगार होना जरूरी है। इस संदर्भ में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत उनके तमाम प्रवक्ता और विपक्ष के अन्य नेता देश को गुमराह कर रहे हैं। उनका अध्ययन ही अधूरा है। यदि राष्ट्रीय, संसदीय मुद्दों पर भी प्रधानमंत्री ‘जुमलेबाजी’ करते रहे हैं, तो उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में घसीटा जा सकता है। प्रधानमंत्री कानूनन देश के प्रति जवाबदेह हैं। यदि विपक्ष झूठ की जुगाली कर रहा है, तो 2019 का जनादेश साफ  कर देगा।


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